भारत में खुम्ब उत्पादन का इतिहास लगभग तीन दशक पुराना है परंतु लगभग दस से बारह
वर्षो के दौरान खुम्ब उत्पादन में लगातार वृद्धि दर्ज की गई है. खुम्ब ग्रामीण महिलाओं, बेरोजगार युवकों और कृषि मजदूर आदि के लिए रोजगार तथा अतिरिक्त आय का साधन बन सकता है. मशरूम एक मात्र ऐसा खाद्य है जिसके सेवन से सभी प्रकार के पौष्टिक तत्व शरीर में पहुंचते है जिससे कुपोषण को हटाया जा सकता है. खुम्ब अपने उच्च स्तरीय खाद्य मूल्यों के कारण ही सम्पूर्ण विश्व में अपना एक विशेष महत्व रखता है. खुम्ब में काफी मात्रा में प्रोटीन, फोलिक एसिड, विटामिन तथा मिनरल होते है. फोलिक एसिड का रक्तालपता (एनीमिया) को दूर करने में अपना चिकित्सीय महत्व है. इसके अतिरिक्त इसमें कई और चमतकारी गुण पाए जाते हैं. इनमें कार्बोहाइड्रेट्स की मात्रा कम पाई जाती है, जो कि भार घटाने में महत्वपूर्ण है.
ढिंगरी खुम्ब पौष्टिक, रोगरोधक, स्वादिष्ट तथा विशेष महक के कारण आधुनिक युग का एक महत्वपूर्ण खाद्य आहार है. यह विश्व में उगाये जाने वाले मशरूमों में तीसरा प्रमुख मशरूम है तथा भारत में इसका दूसरा स्थान है. इस मशरूम को खाने से शरीर में ग्लूकोज सहन करने की क्षमता बढती है जिससे मधुमेह रोगियों के उपचार में अत्यन्त लाभकारी पाया गया है. जल में घुलनशील कार्बोहाइड्रेट की उपस्थिति के कारण इसमें कैंसर रोधी गुण पाये जाते है साथ ही उत्सर्जन तन्त्र सम्बन्धी रोगों एवं कोलेस्ट्राल को कम करने में भी सहायक है.
भारत में इस खुम्ब का प्रयोग सब्जी के रूप में किया जाता है. खुम्बी की कई प्रजातियां भारत में उगाई जाती है. प्लुरोटस की प्रजातियों को सामान्यतया: ढींगरी खुम्ब कहते हैं. अन्य खुम्बियों की तुलना में सरलता से उगाई जाने वाली ढींगरी खुम्ब खाने में स्वादिष्ट, सुगन्धित, मुलायम तथा पोषक तत्वों से भरपूर होती है. इसमे वसा तथा शर्करा कम होने के कारण यह मोटापे, मधुमेह तथा रक्तचाप से पीडित व्यक्तियों के लिए आर्दश आहार है. आजकल ढींगरी की बारह से अधिक प्रजातियां भारत के विभिन्न भागों में उगायी जाती हैं. इनमें से प्लुरोटस सजोरकाजू, प्लुरोटस फ्लोरिडा, प्लुरोटस ऑस्ट्रिएटस, प्लुरोटस फ्लेबेलेटस तथा प्लुरोटस सिट्रोनोपिलेटस आदि प्रमुख प्रजातियां है.
ढींगरी मशरूम उगाने का सही समय
दक्षिण भारत तथा तटवर्ती क्षेत्रों में सर्दी का मौसम विशेष उपयुक्त है. उत्तर भारत में ढींगरी खुम्बी उगाने का उपयुक्त समय अक्तुबर से मध्य अप्रैल के महीने हैं. ढींगरी खुम्बी की फसल के लिए 20 से 35 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान तथा 80-85% आर्द्रता बहुत उपयुक्त होती है. उपलब्ध प्रजातियों को समय-समय पर पूरा साल बिना वातावरण को नियंत्रित किये वर्ष भर लगा कर किसान अतिरिक्त आयुपर्जन कर सकते हैं.
ढींगरी मशरूम को उगाने की विधि
पराल जोकि एक या डेढ़ साल से ज्यादा पुराना न हो व बरसात में भीगा हुआ न हो को 3-5 इंच के टुकड़ो में काटा जाता है फिर इस कटे पराल को बोरियों में भरकर साफ पानी में 10-12 घंटों के लिए भिगो दिया जाता है. इस भीगे हुए पराल को 70-75 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान वाले पानी में तकरीबन दो घंटे रखा जाता है या इसे इतनी देर पानी की भाप भी दी जा सकती है. इस तरह तैयार पराल को ठंडा करने के बाद इस में बीज मिलाया जाता है. ढींगरी का स्पान/बीज शीशे की बोतल या प्लास्टिक की छोटी थैलियों में मिलता है या आर्डर पर बनवाया जा सकता है. ढींगरी की खेती पोलीथीन की थैलियों (13 X 22 ईंच) में की जाती है. इन थैलियों में 6 इंच की दूरी पर आध-आध सेंटीमीटर के छेद कर दिये जाते हैं. एक थैली बीज, चार पोलीथीन की थैलियों के लिए पर्याप्त होती है. पोलीथीन की थैली का मूँह खोलकर उसमें थोड़ा सा स्पान डालकर उसके ऊपर चार इंच पराल की तह दबाकर लगा दी जाती है व हर तह के बाद थोड़ा स्पान बिखेर दिया जाता है. इतनी तह लगाये कि अंततः करीब छः इंच थैली खाली रह जाये. इस प्रकार करीब 5-6 पराल की तहें लग जाती है. सबसे ऊपर की तह पर भी थोड़ा सा स्पान जरूर डालें. अब सावधनी से थैली का मुँह एक छोटी रस्सी से बाँध् दें. इस प्रकार आप जितनी चाहे उतनी थैलियों में समय व जगह को ध्यान में रखकर उत्पादन शुरू कर सकते हैं.
इन तैयार थैलियों को एक ऐसे कमरे में रखें जिसका फर्श पक्का हो.इस कमरे का तापमान सर्दियों में 15- 20 डिग्री सेंटीग्रेड़ जाड़े वाली प्रजाति व गर्मियों में 25-35 डिग्री सेंटीग्रेड गर्मियों वाली प्रजाति व नमी की मात्रा 85-90 प्रतिशत के बीच हो. इस प्रकार कृषक पूरे वर्ष सही प्रजाति का बीज डालकर ढींगरी उत्पादन कर सकते हैं. बरसात के दो महीनों को छोड़कर पूरा वर्ष ढींगरी की फसल ली जा सकती है. सही समय पर सही प्रजाति का बीज डालने से ठण्डी व गरम हवा देने वाली मशीन की जरूरत भी नहीं रहती जिससे इसका उत्पादन-व्यय और भी कम हो जाता है. 12-14 दिनों में स्पान थैली के अंदर पराल में फैल जाता है . यह थैलियाँ बाहर से सफेद नज़र आने लगती है. अब यह थैलियाँ फसल देने के लिए तैयार है. इन थैलियों के ऊपर से पोलीथीन काट कर अलग कर दें. अंदर का पराल बिखरेगा नहीं बल्कि एक सफेद गट्ठे की तरह नजर आयेगा. इस गट्ठे को रस्सी की सहायता से बाँस के बने ढ़ांचों पर लटका देते हैं. एक से दूसरे गट्ठे की दूरी एक फुट रखनी चाहिए. दिन में आवश्यकतानुसार एक या दो बार पानी का छिड़काव करें. कमरे को हवादार रखें व ध्यान रखें कि गट्ठे सूखें नहीं. लटकाने के 6-7 दिनों बाद इनके चारों तरफ छोटे-छोटे सफेद दानें नजर आने लगते हैं जोकि 3-4 दिन में बड़े हो जाते हैं.
अब ढींगरी तोड़ने के लिए तैयार है.सप्ताह में एक दो बार ढींगरी तोड़ी जा सकती है.
ढींगरी के किनारों से मुड़ने से पहले तोड़ लेना चाहिए क्योंकि इससे इसके खराब होने की संभावना बढ़ जाती है व इसके आकर्षण एवं मुल्य में गिरावट आ जाती है. इस प्रकार एक किलोग्राम सूखी पराल से लगभग सात सो पचास ग्रा0 ताजी ढींगरी प्राप्त हो जाती है. तोड़ने के पश्चात इसे अतिशीघ्र बेचा जाना चाहिए. यदि किसी कारणवश यह न विक पाये तो इसे धूप में सुखाया जा सकता है या पिफर 450 सैंटीग्रेड पर गरम हवा देने वाली मशीन का उपयोग किया जा सकता है. सूखने पर मोड़ने से अगर यह टूट जाये तो समझना चाहिए कि यह ठीक से सूख गई है. 10 किलो ढींगरी सूख कर करीब एक किलो रह जाती है . ताजी ढींगरी को पोलीथीन की थैलियों में पांच-छः छोटे-छोटे छेद करके रखा जा सकता है. सूखी ढींगरी बेचने के लिए पोलीथीन में छिद्र की आवश्यकता नहीं होती.
इस प्रकार इस लाभप्रद व्यवसाय को अपनाकर ग्रामीण कृषक अपने जीवन-स्तर को ऊँचा उठाकर समाज में सम्माननिय जीवन व्यतीत कर सकते है इससे आय वृद्धि के साथ-साथ उनमें आत्म सम्मान की भावना भी आती है. चूँकि इस काम के लिए पूरा समय नहीं चाहिए इसलिए इसे एक लाभदायक घर के अंदर किये जाने वाले उप-व्यवसाय के रूप में भी अपनाया जा सकता है.
कुछ आवश्यक सुझाव
ढींगरी उत्पादन के लिए कमरा स्वच्छ एवं हवादार हो.
ढींगरी के गट्ठों पर पानी देते समय इस बात का ध्यान रखें कि पानीं की मात्रा ज्यादा भी न हो और इतनी कम भी न हो कि गट्ठा सूख जाए.
कमरे में नमी कम न होने दें.
हपफते में दो बार ब्लीचिंग पाउडर दो ग्राम प्रति दस लिटर पानी में घोल बना कर गट्ठों पर छिड़काव करें.
गट्ठे ज्यादा सूख रहे हों तो कमरे की खिड़कियों पर गीली बोरियाँ लटका दें ताकि नमीयुक्त हवा कमरे में आती रहे.
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