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ढैंचा की खेती में धमाकेदार कमाई, किसान की बंजर जमीन के लिए है वरदान है यह तकनीक

देश के कई राज्यों में किसान यूरिया की कमी से जूझते हैं. यहां की सरकारों को भी यूरिया की आपूर्ति करने के लिए परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इस बीच आपको एक ऐसी फसल की जानकारी दे रहे हैं जो यूरिया की कमी को पूरा करती है. ढैंचा की खेती किसानों के लिए मुनाफेमंद है क्योंकि यह नाइट्रोजन का बेहतरीन स्रोत माना जाता है.

राशि श्रीवास्तव
Dhaincha farming
Dhaincha farming

भारत में फसलों की पैदावार बढ़ाने के लिए यूरिया का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर होता है. क्योंकि इससे फसलों में नाइट्रोजन की आपूर्ति होती है जो पौधों के विकास के लिए बेहद जरूरी है. लेकिन यूरिया जैव उर्वरक नहीं है, जिसके कारण प्राकृतिक और जैविक खेती का मकसद पूरा नहीं हो पाता. हालांकि अब सामाधान के रूप में किसान ढैंचा की खेती पर जोर दे रहे हैं क्योंकि ढैंचा एक हरी खाद वाली फसल है जो नाइट्रोजन का बेहतरीन स्रोत है. ढैंचा के इस्तेमाल के बाद खेत में अलग से यूरिया की जरूरत नहीं पड़ती और खरपतवार जैसी समस्याएं भी जड़ से खत्म हो जाती हैं. आइये जानते हैं ढैंचा की खेती से जुड़ी जरूरी जानकारी

उपयुक्त जलवायु- ढैंचा की अच्छी पैदावार के लिए इसे खरीफ की फसल के साथ उगाते हैं. पौधों पर गर्म और ठंडी जलवायु का कोई खास असर नहीं होता लेकिन पौधों को सामान्य बारिश की जरूरत होती है. ढैंचा के पौधों के लिए सामान्य तापमान उपयुक्त माना जाता है. ठंडियों में अधिक समय तक तापमान 8 डिग्री से कम रहता है तो पैदावार में फर्क पड़ सकता है. 

मिट्टी का चयन- ढैंचा के पौधों के लिए काली चिकनी मिट्टी अच्छी मानी जाती है. हरी खाद का उत्पादन लेने के लिए किसी भी तरह की भूमि में उगा सकते हैं.  सामान्य पीएच मान और जलभराव वाली भूमि में भी पौधे अच्छे से विकास कर लेते हैं. 

खेत की तैयारी- सबसे पहले खेत की जुताई मिट्टी पलटने वाले उपकरणों से करना चाहिए, गहरी जुताई के बाद खेत को खुला छोड़ दें फिर प्रति एकड़ के हिसाब से 10 गाड़ी पुरानी सड़ी गोबर की खाद डालें और अच्छे से मिट्टी में मिला दें. अब खेत में पलेव कर दें और जब खेत की भूमि सूख जाए तो रासायनिक खाद का छिड़काव कर रोटावेटर चलवा देना चाहिए. जिसके बाद पाटा लगाकर खेत को समतल कर देते हैं.

फसल लगाने का समय-  हरी खाद की फसल लेने के लिए ढैंचा के बीजों को अप्रैल में लगाते हैं और पैदावार लेने के लिए बीजों को खरीफ की फसल के समय बारिश में लगाते हैं. एक एकड़ के खेत में करीब 10 से  15 किलो बीज की जरूरत होती है.

रोपाई- बीजों को समतल खेत में ड्रिल मशीन से लगाते हैं. इन्हें सरसों की तरह ही पंक्तियों में लगाया जाता है. पंक्ति से पंक्ति के बीच एक फ़ीट की दूरी रखते हैं और बीजों को 10 सेमी की दूरी के आसपास लगाते हैं. छोटी भूमि में ढैंचा के बीजों की रोपाई छिड़काव तरीके से करना चाहिए. इसके लिए बीजों को समतल खेत में छिड़कते हैं और फिर कल्टीवेटर से दो हल्की जुताई करते हैं दोनों ही विधियों में बीजों को 3 से 4 सेमी की गहराई में लगाएं.

ये भी पढ़ें: Dhan Ki Kheti से पहले खेत में लगाना है ढैंचा, बीज पर मिल रही 50% सब्सिडी

सिंचाई- पौधों को सामान्य सिंचाई की जरूरत होती है. पैदावार तैयार होने तक पौधों की 4-5 बार सिंचाई करें, क्योंकि ढैंचा के बीजों को नम भूमि में लगाते हैं  इसलिए पहली सिंचाई करीब 20 दिन बाद करे फिर एक महीने के अंतराल में दूसरी और तीसरी बार सिंचाई करना चाहिए. 

उपज और कमाई- ढैंचा की फसल करीब 4-5 महीने में कटाई करने के लिए तैयार हो जाती है, जब पौधों का रंग सुनहरा पीला दिखे तब फलियों की शाखाओं को काट लें और शेष बचे भाग को ईंधन के रूप में उपयोग करें. इसकी फलियों को धूप में सुखाकर मशीन की सहायता से बीजों को निकालते हैं. जिसके बाद उन्हें बाजार में बेचते हैं. एक एकड़ के खेत से करीब 25 टन की पैदावार मिलती है. बाजार में भाव 40-42 रूपये प्रति किलो होता है ऐसे में किसान बढ़िया मुनाफा कमा सकते हैं.

English Summary: Dhaincha farming earns a bang, it is a boon for barren land Published on: 19 April 2023, 02:01 PM IST

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