रामतिल एक तिलहनी फसल है. भारत में इसकी सबसे ज्यादा खेती मध्य प्रदेश राज्य में की जाती है. यहां पर कुल 87 हजार हेक्टेयर भूमि में रामतिल की खेती होती है, जिसका कुल उत्पादन 30 हजार टन तक होता है. रामतिल की खेती भूमि के लिए काफी महत्वपूर्ण मानी जाती हैं, क्योंकि इसके पौधे भूमि के कटाव को रोकने के साथ-साथ भूमि की उर्वरक क्षमता को भी बढ़ाते हैं. रामतिल को सदाबहार फसल कहा जाता है, क्योंकि इसकी खेती सभी मौसमों में की जा सकती है. मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा, बैतूल, मंडला, डिन्डौरी, कटनी, उमरिया एवं शहडोल जिलों में इसकी खेती मुख्य रूप से की जाती है.
खेती का तरीका
मिट्टी
रामतिल की खेती के लिए उत्तम जल निकासी वाली गहरी दुमट भूमि उपयोगी मानी जाती है. खेत की तैयारी करते समय इसे हल से दो-तीन बार गहरी जुताई करें और बखर एवं पाटा चलाकर भूमि को समतल एवं खरपतवार रहित कर दें. इससे बीज समान गहराई तक पहुंचकर उचित अंकुरीत होकर पौधे का रुप ले लेते हैं.
बुआई
फसल की बुआई जुलाई के दूसरे सप्ताह से अगस्त माह के दूसरे सप्ताह के बीच की जाती है. रामतिल के बीजों को कतार में 30 सेंटीमीटर की दूरी तथा 3 सेंटीमीटर की गहराई पर लगाना चाहिये.
सिंचाई
रामतिल की खेती के लिए अच्छी सिंचाई की जरुरत होती है. खरीफ के मौसम में यह पूर्णतः वर्षा पर आधारित होती है. भूमि में कम नमी की दशा का फसल की उत्पादकता पर विपरित प्रभाव पड़ता है. यदि आपके पास सिंचाई के साधन उपलब्ध न हो तो इसकी खेती मंहगाई का सौदा हो सकती है.
रोग प्रबंधन की विधियां
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फसल को रोग से बचाने के लिए अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद, नीम खली या महुआ की खली के घोल का इस्तेमाल करें.
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इसकी फसल लगाने से पहले दलहनी फसलों का 3 वर्षों का फसल चक्र अपनायें. दलहनी पौधे मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा को संतुलित रखते हैं.
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ट्राइकोडर्मा बिरडी या ट्राइकोडर्मा हारजिएनम उर्वरक की 5 ग्राम प्रति किलो ग्राम बीज की दर से बीजोपचार करें.
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कटाई
रामतिल की फसल लगभग 100 से 110 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. जब पौधों की पत्तियां सूखकर गिरने लगे, फल्ली का शीर्ष भाग भूरे एवं काले रंग का होकर मुड़ने लगे तब फसल को काट लेना चाहिए. कटाई के उपरांत पौधों को गट्ठों में बाँधकर खेत में खुली धूप में एक से दो सप्ताह तक सुखाएं और उसके बाद इसे लकड़ी से पीटकर तिल को अलग कर लें.
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