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Cotton Farming in India: भारत में कपास की खेती की चुनौतियां, समाधान और संभावनाएं

Cotton Farming in India: भारत में कपास की खेती एक प्रमुख नकदी फसल है, जिससे लाखों किसानों की आमदनी होती है. हालांकि इसे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जैसे- खराब अंकुरण, कीट, रोग और जलवायु बदलाव. आधुनिक जैविक तकनीकों को अपनाकर किसान इन समस्याओं से निपट सकते हैं और अच्छी आमदनी कमा सकते हैं.

विवेक कुमार राय
cotton farming in India
भारत में कपास की खेती: चुनौतियां, समाधान और संभावनाएं

भारत में कपास की खेती एक प्रमुख नकदी फसल के रूप में जानी जाती है, जो लाखों किसानों की जीविका का आधार है. देश में इसकी खेती मुख्य रूप से गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में की जाती है. इनमें गुजरात भारत का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है, जिसके बाद महाराष्ट्र और तेलंगाना का स्थान आता है.

कपास को खरीफ फसल के रूप में उगाया जाता है, जिसकी बुआई का समय क्षेत्र विशेष और जलवायु पर निर्भर करता है. उत्तर भारत में इसकी बुआई अप्रैल-मई में होती है, जबकि दक्षिण भारत में यह थोड़ी देर से बोई जाती है.

हालांकि, यह खेती लाभकारी मानी जाती है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से किसान इसकी खेती से पीछे हट रहे हैं. इसके पीछे कई वजहें हैं जैसे- बीज अंकुरण में समस्याएं, कीट व रोग, जलवायु परिवर्तन और बाजार में कीमतों का अस्थिर रहना. ऐसे में यह जरूरी है कि किसान इन समस्याओं से निपटने के लिए आधुनिक और जैविक तकनीकों को अपनाएं और खेती को करते रहें.

कपास की खेती किसानों को क्यों करनी चाहिए?

कपास की खेती किसानों के लिए आज भी एक लाभकारी विकल्प हो सकती है, यदि इसे वैज्ञानिक और जैविक तरीकों से किया जाए. भारत में कपास की भारी घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मांग है, जिससे किसानों को फसल के अच्छे दाम मिल सकते हैं. यह एक नकदी फसल है, यानी इससे सीधे आमदनी होती है. कपास के साथ उसकी बीज से तेल और खली भी मिलती है, जो अतिरिक्त आय का स्रोत बनती है. किसान एकीकृत फसल प्रबंधन - उन्नत और क्षेत्र के अनुरूप बीजों का प्रयोग, मिट्टी गुणवत्ता में सुधार, कम रसायनों का उपयोग और समुचित सिंचाई प्रबंधन के माध्यम से कपास की बेहतर फसल लेकर मुनाफा बढ़ा सकते हैं.

कपास की खेती किसानों को कैसे करना चाहिए?

कपास की खेती को टिकाऊ और लाभकारी बनाने के लिए किसानों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए. मिट्टी की जांच कर उचित तैयारी करें और उच्च गुणवत्ता वाले प्रमाणित बीजों का चयन करें. बीज अंकुरण की दर बढ़ाने के लिए जैविक उत्पादों का प्रयोग करें और फसल की बुआई उचित समय पर करें. कीट व रोग नियंत्रण के लिए नीम उत्पाद, फेरोमोन ट्रैप और जैविक सुरक्षा उपाय अपनाएं. सिंचाई का बेहतर प्रबंधन करें और फसल में नमी बनाए रखने के लिए विशेष जैव उत्पादों का उपयोग करें.

कपास की खेती के सामने प्रमुख चुनौतियां

1.बीज अंकुरण में कमी

कपास के खेतों में अंकुरण की दर कई क्षेत्रों में काफी कम हो गई है. इसका मुख्य कारण मिट्टी की सघनता और उसकी खराब भौतिक संरचना है. कठोर और भारी मिट्टी में हवा और पानी का प्रवाह बाधित होता है जिससे बीज को उचित तापमान और नमी नहीं मिलती. इसके अलावा कई बार निम्न गुणवत्ता वाले बीजों का उपयोग और अनियमित बुआई प्रक्रिया भी अंकुरण दर को प्रभावित करती है. परिणामस्वरूप, किसान प्रति एकड़ दो गुना बीज बोने लगते हैं, जिससे लागत तो बढ़ती है लेकिन अंकुरण में कोई विशेष सुधार नहीं होता.

2. कीट और रोगों का बढ़ता प्रकोप

कपास की फसल वाइट फ्लाई (सफेद मक्खी), पिंक बॉलवर्म (गुलाबी इल्ली), रेड स्पाइडर माइट, मिली बग और लीफ कर्ल वायरस जैसी बीमारियों से गंभीर रूप से प्रभावित होती है. विशेष रूप से गुलाबी इल्ली कपास के बॉल्स (गोलों) को अंदर से खाकर पूरी फसल को बर्बाद कर देती है. इन समस्याओं की सबसे बड़ी वजह एकरूप रासायनिक खेती, अत्यधिक कीटनाशकों का प्रयोग और एक ही फसल का बार-बार बोना (मोनोकल्चर) है. कीटों की प्रतिरोधक क्षमता समय के साथ बढ़ जाती है, जिससे सामान्य कीटनाशक बेअसर हो जाते हैं.

3. उच्च तापमान और सिंचाई प्रबंधन की कठिनाई

उत्तर भारत में जब कपास की बुआई अप्रैल-मई माह में होती है, तब तापमान कई हिस्सों में 40-45°C तक पहुंच जाता है. इस दौरान मानसून अभी तक नहीं पहुंचा होता, जिससे खेत में नमी बनाए रखने के लिए बार-बार सिंचाई करनी पड़ती है. इससे पानी की खपत और बिजली खर्च काफी बढ़ जाता है. साथ ही जिन क्षेत्रों में भूमिगत जल की उपलब्धता कम है, वहां कपास की खेती लगभग असंभव हो जाती है. जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा का पैटर्न भी अनिश्चित हो गया है जिससे फसल उत्पादन अस्थिर हो गया है.

चुनौतियों का समाधान: जैविक और टिकाऊ उपाय

1. बीज अंकुरण के लिए उपाय

बीज का अच्छा अंकुरण सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है कि मिट्टी नरम, हवादार और सूक्ष्मजीवों से भरपूर हो. जायटॉनिकि तकनीक पर आधारित विभिन्न उत्पाद, जो एक विशेष बायोडिग्रेडेबल पॉलिमर तकनीक पर आधारित है, मिट्टी की संरचना में सुधार कर उसे भुरभुरी और जलधारण क्षमता से भरपूर बनाते हैं. इसका उपयोग फसल की तैयारी के समय करने से बीजों का अंकुरण 95% तक बढ़ सकता है. इसके अलावा, जड़ क्षेत्र भी बड़ा होता है जिससे पौधा मजबूती से खड़ा रहता है और अधिक पोषण और पानी ग्रहण कर विपरीत मौसम में भी स्वस्थ रहता है.

2. कीट और रोग नियंत्रण के उपाय

कीटों की रोकथाम के लिए प्रारंभिक अवस्था में नीम-आधारित उत्पादों का प्रयोग करने से कीटों की वृद्धि को रोका जा सकता है. ज़ायडेक्स ने एक माइक्रो-एनकैप्सुलेशन तकनीक के माध्यम से नीम की गुणवत्ता और उपलब्धता को बढ़ाते हुए "जायटॉनिक नीम" बनाया है. यह पत्तियों पर लंबे समय तक चिपका रहता है और फसल पर एक अतिरिक्त सुरक्षा कवच बनाता है. फसल पर नीम के तत्व मौजूद होने से कीट पत्तियों पर अंडे नहीं दे पाते, जिससे उनकी संख्या सीमित हो जाती है.

इसके साथ ही, फेरोमोन ट्रैप (गंधपाशा) का प्रयोग करें, जो कीटों को आकर्षित कर फँसा लेता है. यह तकनीक रसायन-मुक्त और पर्यावरण हितैषी होती है. यदि रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग आवश्यक हो, तो उनकी प्रभावशीलता बढ़ाने के लिए "जायटॉनिक एक्टिव" (विशेष माइक्रो-एनकैप्सुलेशन तकनीक पर आधारित प्रभाव वर्धक) को रासायनिक दवाइयों में मिलाकर छिड़काव करें. इससे दवा का असर बढ़ जाता है और लंबे समय तक नियंत्रण बना रहता है.

3. सिंचाई प्रबंधन और उच्च तापमान से सुरक्षा

गर्मी के समय में सिंचाई की आवश्यकता और लागत दोनों बढ़ जाती हैं. इस स्थिति से निपटने के लिए किसान जायटॉनिक तकनीक आधारित उत्पादों के प्रयोग से मिट्टी में पानी की संग्रहण क्षमता बढ़ा सकते है. इससे पानी अधिक समय तक पौधे के लिए उपलब्ध रहता है. यदि खेत की तैयारी के समय ज़ायटॉनिक उत्पाद प्रयोग नहीं हुए हैं, तो खड़ी फसल में सिंचाई या वर्षा से पहले इनको खेत में फैला दें. यह मिट्टी की जल ग्रहण क्षमता बढ़ा कर कम पानी में भी फसल को पूरी नमी देने में सहायता करते हैं. साथ ही अधिक वर्षा की स्थिति में भी मिट्टी के नर्म होने के कारण पानी को सोखने की क्षमता बढ़ जाती है और पानी भरने के कारण होने वाले नुकसान से बचाव होता है.

इसके अतिरिक्त जायटॉनिक सुरक्षा का फसल पर छिड़काव कर सकते हैं. इसके प्रयोग से पौधों की पत्तियों पर एक पतली परत बनती है जो ओस की नमी को अवशोषित कर देती है, यह पौधे को आवश्यक नमी प्रदान करती है जिससे बार-बार सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती. यह तकनीक विशेष रूप से उन क्षेत्रों के लिए उपयोगी है जहां पानी की उपलब्धता सीमित है.

ऐसे में हम यह कह सकते हैं कि कपास की खेती में मौजूद चुनौतियों का समाधान किसान वैज्ञानिक और जैविक तरीकों को अपनाकर आसानी से कर सकते हैं. अब समय आ गया है कि किसान परंपरागत तरीकों से आगे बढ़कर वैज्ञानिक और नयी तकनीक पर आधारित समाधानों की ओर कदम बढ़ाएं और मुनाफेदार कपास की खेती करें.

English Summary: cotton farming in India benefits challenges, solutions and prospects in Hindi Published on: 07 May 2025, 12:20 PM IST

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