मूली एक ऐसी फसल है जिससे किसान को कम समय में अधिक कमाई कर सकता है. मूली की अच्छी पैदावार लेने के लिए वैज्ञानिक तरीक से खेती करना जरूरी है. मूली एक खाद्य जड़ वाली सब्जी है जो जल्दी उगने वाली और सदाबहार फसल है. मूली में विटामिन बी, कैल्शियम, कॉपर, मैग्नीश्यिम, रिबोफलेविन, एसकॉर्बिक एसिड, फॉलिक एसिड और पोटाश्यिम का मुख्य स्त्रोत है. इनकी खेती पूरे भारत में की जाती है. यह कम खर्च में अधिक उत्पादन देने वाली सलाद के लिए उत्तम फसल है. मूली का सेवन लिवर और पीलिया के मरीजों के लिए फायदेमंद है.
मूली की खेती के लिए जलवायु (Climate for Radish)
मूली के लिए ठंडी जलवायु उपयुक्त होती है. अच्छी बात ये है कि इसे अधिक तापमान वाले इलाकों में भी उगाया जा सकती है. मूली की खेती के लिए 10-15 डिग्री सेल्सियस तापमान सर्वोत्तम माना गया है. अधिक तापक्रम पर इसकी जड़े कड़ी और स्वाद में कड़वी हो जाती हैं.
मिट्टी का चुनाव (Selection of soil)
मूली की बुवाई मैदानी क्षेत्रों में सितंबर से जनवरी तक की जाती है जबकि पहाड़ी इलाकों में अगस्त तक बोई जाती है. मूली की खेती के लिए सभी तरह की मिट्टी/भूमि उपयुक्त है, लेकिन अच्छा उत्पादन के लिए जीवांशयुक्त बलुई दोमट मिटटी उचित है. इसकी बुवाई के लिए मिटटी का पी.एच. मान 5.5-6.8 होना चाहिए. चिकनी और भारी मिट्टी में इसकी जड़/ कंद ठीक से विकसित नहीं होती.
मूली की उन्नत किस्में (Improved varieties of Radish)
मुली की उन्नत किस्में इस प्रकार है-
पूसा चेतकी: यह किस्म अप्रैल-अगस्त में बोने के लिए अनुकूल है. यह जल्दी पकने वाली किस्म नरम, बर्फ जैसी सफेद और मध्यम लंबी होती है. इसकी औसतन पैदावार 105 क्विंटल प्रति एकड़ है. ग्रीष्म और वर्षा ऋतु के लिए ये किस्म उपयुक्त है.
पूसा हिमानी: इस किस्म की बिजाई जनवरी-फरवरी महीने में की जाती है. बिजाई के बाद यह किस्म 60-65 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है. इसकी औसतन पैदावार 160 क्विंटल प्रति एकड़ है.
पूसा रेशमी: यह अगेती किस्म 50-60 दिनों में तैयार हो जाती है.
पूसा देशी: यह किस्म उत्तरी मैदानों में बुवाई के लिए अनुकूल हैं. मूली की यह किस्म 50-55 दिनों में तैयार होती है.
अर्का निशान्त: यह लंबी और गुलाबी जड़ों वाली किस्म जो बुवाई के 50-55 दिनों बाद तैयार हो जाती है.
जापानीज व्हाइट: यह किस्म नवंबर-दिसंबर महीने में बोने के लिए अनुकूल है. ये किस्म पछेती बुवाई के तौर पर मानी जाती है. इसकी औसतन पैदावार 160 क्विंटल प्रति एकड़ रहती है.
इसके अलावा पंजाब पसंद, पंजाब सफेद मुली-2 भी उन्नत किस्में है.
बुवाई/रोपण का तरीका (Method of sowing/ planting)
बुवाई करने से पहले बीज को 2.5 ग्राम थीरम या 2 ग्राम केप्टान प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करे. मूली की बुवाई करने से पहले खेत की 5-6 बार जुताई करने के बाद पाटा अवश्य चलाएं. मूली की बुवाई के लिए गहरी जुताई की जरूरत होती है ताकि इसकी जड़ें आसानी से विकसित हो सके. खेत की तैयारी के समय अच्छी सड़ी गोबर की खाद का इस्तेमाल करे. ये खाद 5-10 टन प्रति एकड़ की दर से अन्तिम जुताई के बाद मिट्टी में मिलाएं. मूली के लिए बीज दर 4-5 किलो प्रति एकड़ उचित रहता है.
मुली की बुवाई मेड़ों और समतल क्यारियो में की जाती है. लाइन से लाइन या मेड़ों से मेंड़ो की दूरी उचित होनी चाहिए. लाइन से लाइन की दूरी 45 से 50 सेंटीमीटर और मेंड़ो की ऊंचाई 20 से 25 सेंटीमीटर रखी जाती है. पौधे से पौधे की दूरी 5-8 सेमी पर और बुवाई 3 से 4 सेंटीमीटर की गहराई पर करनी चाहिए.
पौध संरक्षण (Plant protection)
मूली की फसल में कुछ कीट और रोगों का प्रकोप होता है जिसे पहचान कर इसका समाधान समय पर करना जरूरी है ताकि फसल को नुकसान ना हो.
एफीड/ माहु (Aphid): ये हरे सफेद छोटे-छोटे कीट होते हैं. जो पत्तियों का रस चूसते हैं. जिससे फसल कमजोर हो जाती है इसकी वजह से उत्पादन घट जाता है. एफीड के प्रकोप से फसल को बचाने के लिए थायोमेथोक्सोम 25 डब्लू जी 100 ग्राम या इमिडाक्लोप्रिड 17.8% SL 80 मिली प्रति एकड़ 200 लीटर पानी के साथ छिड़काव करें.
रोयदार सूँडी (Caterpillar): इस कीट की सूड़ी भूरे रंग की रोयेदार होती है जो पत्तियों को खाती है. कीट की रोकथाम के लिए इमामेक्टीन बेंजोएट 5% SG @100 ग्राम + बिवेरिया बेसियाना 250 ग्राम प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें.
अल्टरनेरिया झुलसा (Alternaria blight): यह रोग जनवरी से मार्च के दौरान बीज उत्पादन वाली फसल पर ज्यादा लगता है. पत्तियों पर छोटे घेरेदार गहरे काले धब्बे बनते हैं. अगर इस तरह के धब्बे दिखाई दे तो नीचे की पत्तियों को तोड़कर जला दें और पत्ती तोड़ने के बाद मैन्कोजेब 75% WP 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें.
खाद एवं उर्वरक (Manure & Fertilizer)
मूली की अच्छी पैदावार लेने के लिए 150 क्विंटल अच्छी सड़ी गोबर की खाद अन्तिम जुताई के समय मिट्टी में मिला दे. साथ ही नाइट्रोजन 25 किलो (यूरिया 55 किलो), फासफोरस 12 किलो (सिंगल सुपर फासफेट 75 किलो) प्रति एकड़ प्रयोग करना चाहिए. नाईट्रोजन की आधी मात्रा फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई से पहले तथा नाइट्रोजन दो भागों में बोने के 15 और 30 दिन बाद देना चाहिए.
सिंचाई व्यवस्था (Irrigation arrangement)
मूली की फसल में पहली सिंचाई तीन चार पत्ती की अवस्था पर करनी चाहिए. सर्दियों में 10 से 15 दिन के अंतराल पर तथा गर्मियों में प्रति सप्ताह सिंचाई करनी चाहिए. हल्की सिंचाई करें तथा अधिक मात्रा में सिंचाई करने से बचें. क्योंकि अधिक सिंचाई करने से मिट्टी सख्त हो जाती है और मूली की जड़ कंद भी ठीक से नहीं जम पाती है. गर्मियों के मौसम में, कटाई से पहले हल्की सिंचाई जरूरी है ताकि मूली ताजा बनी रहे.
खरपतवार प्रबंधन और अंतरश्स्यन क्रियाए (Weed management & intercultural operation)
मूली की अच्छी पैदावार के लिए खेत में खरपतवार न होने दें. हाथ से खरपतवार निकालना सही रहेगा. जरूरत पड़े तो कृषि औजार से भी खरपतवार निकाल सकते हैं लेकिन ध्यान रहे कि जड़ों को कोई नुकसान न हो. मूली की जड़ो में खरपतवार नियंत्रण करने के लिए पूरी फसल में 2 से 3 निराई-गुड़ाई करनी जरूरी है. रसायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण के लिए बुवाई के तुरंत बाद 2 से 3 दिन के भीतर 1.3 लीटर पेंडामेथलीन 30% EC @ 200 लीटर पानी के साथ घोलकर प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए.
मूली की खेती में निराई-गुड़ाई बाद जड़ों में मिट्टी चढ़ा दें. मूली की जड़ें मेड़ से ऊपर दिखाई दे रही हों तो उन्हें मिट्टी से ढकना जरूरी है नहीं तो धूप से जड़ें हरी हो जाती हैं. जिसकी वजह से मूली का स्वाद कड़वा हो सकता है.
तुड़ाई और भंडारण (Fruit harvesting and storage)
फसल की किस्म और मौसम के अनुसार, मूली बिजाई के 25-60 दिनों के बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है. जब जड़ें पूर्ण विकसित हो जायें तब कड़ी होने से पहले मुलायम अवस्था में ही खोद देना चाहिए. मुली की तुड़ाई हाथों से पौधे को उखाड़कर की जाती है. उखाड़ी गई जड़ों को धोएं और इनके आकार के अनुसार ग्रेडिंग करें. छांटने के बाद इन्हे बोरियां और टोकरी में अलग-अलग रखा जाता है.
उपज (Yield)
वैसे तो मूली का उत्पादन मिट्टी/भूमि की उर्वरक शक्ति, किस्म और जलवायु पर निर्भर करता है. फिर भी कम से कम मूली का उत्पादन 150 क्विंटल प्रति एकड़ तक रहता है.
लागत और मुनाफा (Cost and profit)
सामान्य तौर पर मूली 500 से 1200 रूपये प्रति क्विंटल की दर से बिकती है. सामान्य खेत से 150 से 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर भी उत्पादन निकलता है तो कम से कम मूल्य होने पर भी किसान 100000 रूपये प्रति हेक्टेयर तक आसानी से कमा लेता है.| सर्दी में की जाने वाली मूली की खेती अब गर्मी में भी की जा रही है. गर्मी के मौसम में पूसा बैसाखी मूली से 60 से 70 हजार रुपए प्रति एकड़ मुनाफा होता है.
अधिक जानकारी और बीज प्राप्त करने के लिए संपर्क सूत्र (Contact information to get more information and plant seeds)
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देश में बागवानी के कई सरकारी संस्थान और कृषि विश्वविद्यालय है जिनसे सम्पर्क कर सकते हैं.
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भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बेंगलौर या निदेशक 080-28466471 080-28466353 से सम्पर्क कर अधिक जानकारी ली जा सकती है.
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भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी या 5422635247 या 5443229007 से भी सम्पर्क किया जा सकता है.
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किसान हेल्पलाइन नंबर 1800-180-1551 पर भी सम्पर्क कर सकते हैं
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