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मूली की वैज्ञानिक खेती करने का तरीका, उन्नत किस्में और खरपतवार नियंत्रण

जड़वाली सब्जियों में मूली का एक महत्वपूर्ण स्थान है इसका प्रयोग कच्चे रूप में सलाद बनाकर एवं सब्जी बनाकर किया जाता है. मूली का तीखा स्वाद इसमें मौजूद तत्त्व आइसोथायोसायनेट्स के कारण होता है. मूली के बिना कोई भी सलाद अधूरी सी रहती है. यह विटामिन एवं खनिज लवणों का अच्छा स्रोत है इसी कारण सें इसको छोटे से स्थान में बनायी गृह वाटिका सें लेकर बड़े स्तर पर उगाया जाता है.

विवेक कुमार राय
radish cultivation

जड़वाली सब्जियों में मूली का एक महत्वपूर्ण स्थान है इसका प्रयोग कच्चे रूप में सलाद बनाकर एवं सब्जी बनाकर किया जाता है. मूली का तीखा स्वाद इसमें मौजूद तत्त्व आइसोथायोसायनेट्स के कारण होता है. मूली के बिना कोई भी सलाद अधूरी सी रहती है. यह विटामिन एवं खनिज लवणों का अच्छा स्रोत है इसी कारण सें इसको छोटे से स्थान में बनायी गृह वाटिका सें लेकर बड़े स्तर पर उगाया जाता है. मूली जल्दी तैयार होने वाली रूपांतरित जड़ है जोकि बुवाई के लगभग 40 सें 50 दिनों मे तैयार हो जाती है. यदि किसान भाई वैज्ञानिक तरीके से इसकी खेती करे तो कम समय में ही अच्छा मुनाफा कमाया सकते है. यह सर्दियों में उगायी जाने वाली फसल है परन्तु आजकल कई उन्नतशील किस्मों के विकास के कारण इसको सालभर उगाया जा सकता है. इसकी खेती एकल फसल, अंतःफसल के रूप में की जाती है साथ ही इसको अन्य फसलों के लिये तैयार की गयी क्यारियों के चारो तरफ मेड़ों पर भी उगाया जा सकता है.

भूमि एवं जलवायु

मूली को प्रायः सभी प्रकार की मृदाओं में आसानी से उगा सकते है. परन्तु अच्छी पैदावार के लिये जीवांशयुक्त दोमट या बलुई दोमट मृदा, जिसका पी.एच. मान 6.5 से 7.5 के मध्य हो उतम माना गया है. मूली की किस्में जलवायु सम्बन्धी जरूरतों व तापमान में बहुत विशिष्ट होती है. इसलिए किसी विशेष मौसम में सही किस्म का चयन अति महत्वपूर्ण होता है. इसके स्वाद, बनावट और आकार को अच्छा बनाने हेतु 100 सें. 150 सें. तापमान अनुकुल रहता है अधिक तापक्रम पर इसकी जड़े कड़ी तथा कड़वी हो जाती है.

उन्नत किस्में

 किस्मों का चयन हमेशा जलवायु एवं क्षेत्र विशेष के आधार पर ही करनी चाहिए क्योकिं इनका प्रदर्शन इन्ही कारको पर निर्भर करता है. मूली की किस्मों का दो भागो में बांटा गया है:-

एशियाई किस्में (फरवरी से सितम्बर)

पूसा चेतकी, पूसा रेशमी, पूसा देशी, अर्का निशांत, काशी श्वेता, काशी हंस, हिसार मूली नं.-1, कल्याणपुर-1, जौनपुरी, पंजाब अगेती, पंजाब सफेद इत्यादि .

यूरोपियन किस्में (अक्टूबर से फरवरी)

व्हाइट आइसकिल, रैपिड रेड व्हाइट टिप्ड, स्कारलेट ग्लोब पूसा हिमानी, इत्यादि. कुछ महत्वपूर्ण किस्मों की विशेषताये निम्न प्रकार सें हैः-

पूसा चेतकी

जड़े पूर्णतया सफेद, नरम, मुलायम, ग्रीष्म ऋतु की फसल में कम तीखी़, 15 से 20 से.मी. लम्बी, तथा 40 से 45 दिन में तैयार हो जाती है. मध्य अप्रैल से अगस्त तक बुवाई के लिए उपयुक्त है. औसत उपज 250 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है.

हिसार मूली नं. 1

 जड़ें सीधी और लम्बी बढ़ने वाली होती है जोकि सफेद रंग की होती है. बुवाई के 50-55 दिन बाद खुदाई के लिए तैयार हो जाती है जोकि सितम्बर से अक्टूबर माह तक बुवाई हेतु उपयुक्त है.

कल्याणपुर -1

 जड़ें सफेद, चिकनी, मुलायम और मध्यम लम्बी होती है. बुवाई के 40-45 दिन बाद फसल खुदाई के लिए तैयार हो जाती है.

पूसा रेशमी

जड़े 30 से 35 सें मी. लम्बी, ऊपरी भाग हरा तथा शेष भाग सफेद होता है. यह स्वाद में हल्की तीखी होती है. इसकी परिपक्वता अवधि 50 से 60 दिन होती है.

जापानी सफेद

 जड़ें 30 से 40 से.मी. लम्बी, बिलकुल सफेद, स्वाद में मीठी हाती है. यह अक्टूबर से दिसम्बर तक बुवाई के लिए उपयुक्त है.

पूसा हिमानी

जड़े 30 से 35 सें मी. लम्बी,यह स्वाद में हल्की तीखी तथा 50 से 60 दिन में तैयार होती है. दिसम्बर से फरवरी तक बुवाई के लिए उपयुक्त है.

खेत की तैयारी

खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा दो-तीन जुताई कल्टीवेटर या देशी हल से करके खेत को भुरभुरा बना लेना चाहिए. अन्तिम जुताई के समय गोबर की 200 क्विंटल प्रति हैक्टर की दर से सड़ी हुई खाद खेत में बिखेरकर मिला देनी चाहिए.

पोषक तत्व प्रबंधन

उर्वरकों की मात्रा मृदा की उर्वरकता तथा फसल को दी गयी कार्बनिक खादों की मात्रा पर निर्भर करती है. सामान्यतः 20-25 टन प्रति हैक्टर की दर से अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद को मृदा में भली भाति से मिला देते हैं. इसके अलावा 50 कि.ग्रा. नत्र्ाजन, 125 कि.ग्रा. सिंगल सुपर फॉस्फेट और 75 कि.ग्रा. म्यूरेट आफ पोटाश भी खेत में डाले. नत्रजन की आधी मात्रा एवं फास्फोरस व पोटाश की पुरी मात्रा को मेंड़ बनाने से पहले मिट्टी में अच्छी तरह मिला दे. इसके 20-25 दिनों बाद शेष बची नत्रजन की मात्रा को छिटकवां विधि सें खेत में समान रूप सें बिखेर देवे.

radish cultivation

बीज दर

 एक हैक्टेयर क्षेत्रफल के लिये 10 से 12 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है. परन्तु यह मात्रा एशियाई किस्मों के लिये 8 सें 10 किलोग्राम तक ही पर्याप्त होती है. बिजाई से पहले ब्रेसीकाल नामक दवा को 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज का उपचार करें.

बुवाई का तरीका

मूली की फसल डोलियों पर अच्छी होती है. अतः तैयार खेत में प्रजातियों के स्वभाव के आधार पर कतार से कतार की दूरी रखे. सामान्यतः लाइन से लाइन की दूरी 30-35 सेमी. की रखते है. तैयार डोलियों पर बीजों की बुवाई करे परन्तु ध्यान रखे बीज की गहराई 1-2 सेमी. से अधिक न हो. जब बीजों का जमाव ठीक ढंग से हो जाये उसके पश्चात् पौधे से पोधे की दरी 7-8 सेमी.  कर दे. घने पौधे होने के कारण जड़े अच्छी तरह विकसीत नही हो पायेगी.

सिंचाई

खेत में जब बीजों की बुवाई कर रहे हो उस समय पर्याप्त नमी का होना आवश्यक है इसके लिये पलेवा करके खेत तैयार करते है. यदि बिजाई के समय नमी कम है तो बिजाई के तुरन्त बाद सिंचाई करें. सिंचाई करते समय ध्यान रखें कि पानी उतना ही लगाए कि डोली में ऊपर तक नमी पहुंच जाए इससे जड़ों का विकास अच्छा होता है. गर्मियों में 4-6 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करे तथा सर्दियों में 10-12 दिनों के अंतराल पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करें.

खरपतवार नियंत्रण

 बुवाई के कुछ समय पश्चात् ही पौधों के आस-पास विभिन्न प्रकार के खरपतवार भी उग आते है जो कि पौधो के साथ-साथ पोषक तटवों, स्थान, नमी, आदि के लिए प्रतिस्पर्धा करते रहते है, इसके साथ ही यह विभिन्न प्रकार की कीट एवं बीमारियों को भी आश्रय प्रदान करते है. अतः जरूरी है जब खरपतवार छोटा रहे उसी समय खेत से बाहर निकाल दे इसके लिए मूली की फसल में 2-3 निराई-गुड़ाई कर देने से खरपतवार नियंत्र्ाण में रहते है. खरपतवारो को रसायनों से भी काबू में रखा जा सकता है इसके लिए स्टोम्प (पैन्डीमिथलीन) की 3.0 लीटर प्रति हैक्टेयर मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर बुवाई के बाद हल्की सिंचाई कर छिड़क देवे. परन्तु यह कार्य बीजों की बुवाई के 48 घंटो के अंदर ही पूर्ण करना होता है. प्रत्येक सिचाई के बाद मिट्टी चढाने का कार्य भी करे. समय पर निराई-गुड़ाई करने से मिट्टी भूरभूरी बनी रहती है जिससे जड़ों का विकास अच्छा होता है.

फसल की खुदाई एवं उपज

किस्मों के अनुसार बीज की बुवाई से लगभग 40-45 दिनों में यह खुदाई के लिये तैयार हो जाती है. मूली की जड़ों को मुलायम अवस्था में खोद लेना चाहिए. जड़ों को सावधानीपूर्वक पत्तों सहित निकालें तथा समान आकार की जड़ों को बंडल (15-20 जड़) में बांध लें. अवांछनीय व खराब पत्तियों को निकाल कर जड़ों को पानी से धोएं जिससे जड़ों के ऊपर के रेशे व धब्बे साफ हो जाएं. बाजार में समय पर पहुंचाएं. जड़ों की उपज किस्मों एवं प्रबंधन पर निर्भर करती है. सामान्यतः 200-300 क्विंटल उपज मिल जाती है.

कीट एवं बीमारियां

 मूली में कीट और बिमारियां का आक्रमण बहुत कम होता है परन्तु कई बार फसल इनसें प्रभावित होने पर उपज में कमी आ जाती है. अतः यहा पर कुछ प्रमुख कीट एवं बिमारियां का विवरण दिया जा रहा है जिससें सही ढंग से इनको नियंत्र्ाित रखा जा सके.

मोयला या चैपा

 मोयला के शिशु (निम्फ) व प्रौढ़ (व्यस्क) दोनों ही पत्तियों से रस चूसते हैं,जिससे पौधे की बढ़वार रुक जाती है और पौधे में पीलापन आ जाता है. इसका प्रकोप जनवरी-फरवरी में अधिक होता है. 

नियंत्रण

1) आक्रमण के शुरू होने पर ग्रसित भाग को तोड़कर नष्ट कर देवें.

2) 4 प्रतिशत नीम गिरी या अजाडिरेक्टिन 0.03 प्रतिशत की 5 मिली दवा प्रति लीटर पानी के हिसाब सें किसी चिपकाने वाला पदार्थ के साथ मिलाकर छिड़काव करें.

3) कीट का अधिक प्रकोप होने पर

4) मिथाइल डिमेटान 25 ई.सी. या डाईमेथोएट 30 ई.सी या एसिटामिप्रिड 20 प्रतिशत 1.5 मिली प्रति लीटर पानीके हिसाब से छिड़काव करें. आक्रमण ज्यादा होने पर इसे 10 दिन बाद इसे पुनः दौहरावें.

सफेद रोली

ये फफूंद से फैलनी वाले बिमारी है. प्रभावित पत्तियों, तनों व पुष्प् वृंतों पर सफेद रंग के अनियमित गोलाकार धब्बे बन जाते हैं.

रोकथाम

खेत को खरपतवार मुक्त रखें.

खड़ी फसल में मैंकोजेब, जिनेब या रिडोमिल एम जेड-72 78 का 0.2 प्रतिशत की दर सें घोल बनाकर छिड़काव करे.

अल्टर्नेरिया पर्ण चित्ती रोगः

अंकुरण के बाद पौध के तनो पर छोटे काले रंग की चित्तीयां बन जाती है, जो बाद में बढकर पौध का आद्र विगलन कर देती है. प्रभावित पौधो की बढवार रूक जाती है साथ ही पत्तों व ग्रसित भाग पर भूरे या काले रंग के धब्बे बन जाते हैं.

रोकथाम

1.खेत को खरपतवार मुक्त रखें.

2.बीज को हमेशा उपचारित करके ही बुवाई करे.

3.खड़ी फसल में मैंकोजेब, जिनेब या रिडोमिल एम जेड-72 78 का 0.2 प्रतिशत या काॅपर आक्सीक्लोराइड को 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब सें छिड़काव करे.

डॉ. अनोप कुमारी (विषय विशेषज्ञ-बागवानी)
और
डॉ. गोपीचन्द सिंह (वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष)
कृषि विज्ञान केन्द्र, मौलासर -नागौर (कृषि विश्वविद्यालय, जोधपुर-342 304 राजस्थान)

English Summary: radish cultivation: Method of scientific cultivation of radish, improved varieties and weed control Published on: 13 December 2019, 11:40 AM IST

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