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मिर्च की फसल में लगने वाले रसचूसक कीट और इनका फसल पर प्रभाव

मिर्च एक नकदी मसाला फसल है. मसालों में इसकी अहम भूमिका है. भारत में मिर्च की खेती का महत्वपूर्ण स्थान है. भारत वर्ष में इसकी खेती व्यवासयिक रूप से प्राय: सभी राज्यों में की जाती है. मिर्च का प्रयोग हरी मिर्च की तरह एवं मसाले के रूप में किया जाता है, इसे सब्जियों और चटनियों में डाला जाता है. मिर्च में अनेक औषधीय गुण भी होते हैं.

हेमन्त वर्मा
chilli

मिर्च एक नकदी मसाला फसल है. मसालों में इसकी अहम भूमिका है. भारत में मिर्च की खेती का महत्वपूर्ण स्थान है. भारत वर्ष में इसकी खेती व्यवासयिक रूप से प्राय: सभी राज्यों में की जाती है. मिर्च का प्रयोग हरी मिर्च की तरह एवं मसाले के रूप में किया जाता है, इसे सब्जियों और चटनियों में डाला जाता है. मिर्च में अनेक औषधीय गुण भी होते हैं. मिर्च उत्पादन को किसान भाई और अधिक बढ़ा सकते हैं, परन्तु आमतौर पर देखा गया है कि उन्हें मिर्च में लगने वाले कीटों की पहचान एवं उनसे पौधों पर उत्पन्न लक्षणों के बारे जानकारी बहुत कम होती है. जिससे सही समय पर पहचान नहीं हो पाती और तरह तरह के रसायनों का प्रयोग कर लागत तो बढ़ ही जाती है किन्तु उत्पादन में भारी कमी हो जाती है. 

अतः मिर्च की फसल में लगने वाले प्रमुख कीट और उनसे उत्पन्न लक्षणों की सम्पूर्ण जानकारी इस प्रकार है-

मिर्च की फसल में लगने वाले प्रमुख कीट: 

थ्रिप्स: मिर्च की फसल में थ्रिप्स कीट भयंकर नुकसान पहुँचाता है. इन कीटों के वयस्क और शिशु दोनों पौधें को नुकसान पहुँचाते है. वयस्क थ्रिप्स में छोटे, पतले और भूरे रंग के पंख होते है, वहीं शिशु थ्रिप्स सूक्ष्म आकार के पीलापन लिए होते है.जब ये कीट मिर्च की पत्तियों के निचली सतह पर चिपका रहता है और पत्तियों का रस चूसता है. जिससे मिर्च की पत्तियों में झुर्रियां दिखाई देने लगती है तथा ये पत्तियां उपर की ओर मुड कर नाव के समान हो जाती है. अधिक प्रकोप होने पर पत्तियों का गुच्छा बन जाता है. जिसके कारण पौधों का विकास, फूल उत्पादन एवं फलों का बनना रुक जाता है. ये कीट वायरस जनित रोग को फैलाने में सहायक है.

एफिड या माहु: ये कीट छोटे, नरम शरीर के होते है जो शुरआत में हरे रंग के होते है जो जल्द ही पीले, भूरे या काले रंग के हो जाते है. ये आमतौर पर छोटी पत्तियों और टहनियों के कोनों पर समूह बनाकर पौधे से रस चूसते है तथा चिपचिपा मधुरस (हनीड्यू) छोड़ते है. इस मधुरस में फफूंदजनित या कवकजनित बीजाणु उत्पन होते है जो फफूंदजनित रोगों की संभावनाओं को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है. गंभीर संक्रमण होने पर पत्तियां और टहनियां कुम्हला जाती है या पीली पड़ जाती है. 

chilli

जैसिड: यह कीट हल्के हरे-पीले रंग के होते है. इसके वयस्क के अग्र पंखों पर काले रंग के दो धब्बे पाए जाते हैं. इस कीट का आक्रमण 15-20 दिन बाद दिखाई देता है. प्रभावित पत्तियों के ऊपर लाल रंग के धब्बे दिखाई देते हैं तथा ये पत्तियां आगे चलकर पीली होकर नीचे गिर जाती है. प्रभावित पत्तियों में कूपनुमा संरचना नीचे की ओर बनती है तथा फूल व फल झड़ने लगते है. 

सफेद मक्खी: इसके शिशु एवं वयस्क पत्तियों की निचली सतह पर चिपक कर रस चूसते है जिससे पत्तियां नीचे तरफ मुड़ जाती है. ये कीट पत्ती मोड़क रोग या चुरक मुरक रोग को फैलाने का काम करते है. इस कीट का वयस्क हल्का पीला तथा इसके पंख सफेद रंग के होते हैं.इस रोग के कारण पौधें की पत्तियां का आकार छोटा हो जाता है तथा रंग हल्का पीला हो जाता है. फूल व फल कम लगते है एवं विकृत हो जाते है. पौधा बोना दिखाई पड़ने लगता है.इसके अलावा ये कीट मोजैक रोग को फैलाने का कारण बनते है जिसमें हल्के पीले रंग के घब्बे पत्तों पर पड़ जाते है. बाद में पत्तियाँ पूरी तरह से पीली पड़ जाती है तथा वृद्धि रुक जाती है.  

मकड़ी: यह बहुत ही छोटे कीट होते है जो पत्तियों की सतह से रस चूसते है जिससे पत्तियां नीचे की ओर मुड जाती है. पत्तियों के खाने से सतह पर सफेद से पीले रंग के धब्बे हो जाते है. जैसे जैसे संक्रमण अधिक होता जाता है, पहले पत्तियाँ चांदी के रंग की दिखने लगती है और बाद में ये पत्तियां गिर जाती है.यह मकड़ी ऐसा जाल बुनती है जो धीरे- धीरे पुरे पौधें की सतह को ढक सकती है. जिससे फूलों व फलों की मात्रा के साथ- साथ गुणवत्ता में भी कमी आती है. 

English Summary: Chili’s sucking pest and their impact on chilli crops Published on: 24 October 2020, 12:05 PM IST

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