छत्तीसगढ़ की पहाड़ियों पर पर भी तिब्बतियों के लिए शरणार्थी कैंप बनाए गए हैं. मैनपाठ में बसे हुए तिब्बती, अपने साथ एक खास तरह का बीज अपने साथ लेकर आए थे जिन्हें टाऊ के बीज कहते हैं. इन दिनों राज्य के जशपुर जिले के पंडरापाठ की पहाड़ियों में टाऊ की फसल लहरा रही है. तापमान गिरने के साथ ही ओस की बूंदें इन फसलों पर गिर रही हैं और पहाड़ी वादियों में इसके फूल दूर-दूर तक नजर आने लगे हैं.
उपवास में खाने के काम आता है इसका आटा
यह एक ऐसी फसल है जिसका उपयोग बड़े पैमाने पर जापानी और चीनी अपने दैनिक भोजन में करते रहे हैं. इसके साथ ही जापानी पक्षियों के चारे के रूप में भी इसका इस्तेमाल होता है. भारत में टाऊ की फसल को फलाहारी भोजन माना जाता है और उपवास के दौरान इसका आटा खाया जाता है. मैनपाठ और पंडरापाठ में उगाए जाने वाला टाऊ यहां के किसानों की आए का प्रमुख जरिया है. यहां से यह फसल जापान को निर्यात की जाती है. आज कल मोमोस नामक फास्ट फूड भी बाजार में काफी चलन में आया है. इसे बनाने के लिए भी टाऊ के आटे का इस्तेमाल होता है.
ठंड से फसल को हो रहा फायदा
सर्दी के मौसम में 1 से 2 डिग्री तक नीचे गिरने वाला पारा औऱ भारी मात्रा में होने वाला हिमपात इस फसल के लिए आदर्श होता है. अनुकूल परिस्थितियों ने किसानों को इस फसल की ओर आकर्षित किया है. यहां से मौनपाट गए कुछ ग्रामीण किसानों ने एक प्रयोग के तौर पर इस फसल का प्रयोग किया है. अच्छी फसल के पकने पर साल दर साल टाऊ फसल के रकबे में भी बढ़ोतरी हुई है. फिलहाल जिले में 2 हजार एकड़ में टाऊ की फसल होने का अनुमान लगाया जा रहा है. इस फसल पर कीट व्याधियों का असर भी काफी कम होता है.
टाऊ की तरफ आकर्षित हो रहे सैलानी
टाऊ के फूल पंडरापाठ और मैनपाठ की पहाड़ियों को और भी खूबसूरत बना देते हैं. दूर-दूर तक खेतों में फैली हुई इसकी फसल में खिले खूबसूरत फूल यहां आने वाले सैलानियों को बेहद आकर्षित करते हैं. ये फलाहारी आटे के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. यहां 30 रूपये किलों की दर से खरीदे जाना वाला टाऊ कुट्टू का आटे का फलाहारी आटा बनकर 200 रूपये किलों में बिकता है.
किशन अग्रवाल, कृषि जागरण
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