करेला कुकुरबिटेसी कुल का फसल है, जिसका वनस्पतिक नाम मोमोरडिका केरेसिंया है. छत्तीसगढ़ के सभी क्षेत्रों में इसकी खेती की जाती है, जिसका उपयोग सब्जी के रूप में किया जाता है जो कि विभिन्न पोषक व विटामिन से परिपूर्ण व खाने में स्वादिष्ट होता है. इसकी खेती वर्ष में दो बार खरीफ और जायद में की जाती है. संकर बीज उत्पादन के लिये खरीफ से अच्छा जायद का मौसम होता है.
पुष्प जैविकी व पुष्पन :- करेला एक उभयालिंगाश्री पौधा है, जिसमें नर व मादा पुष्प एक ही पौधे पर आते हैं एक ही पौधों पर नर व मादा पुष्पों की पहचान आसानी से की जा सकती है. नर पुष्पों के डंटल मादा फुलों से लम्बे होते हैं व फुलों का रंग पीला होता है. मादा फुलों के नीचे करेले जैसे आकृति पायी जाती है तथा नर पुष्पों की संख्या मादा से बहुत ज्यादा होती है. करेले में संकर बीज उत्पादन के लिये उसके पुष्पन समय की सही जानकारी होना अति आवश्यक है पुष्पन सुबह 05 : 30 से 9.30 बजे तक होती है तथा इसी समय वर्तिकाग्र पराग ग्राही होता है. नर पुष्पों में परागकण सुबह 7.30 तक प्रचुर मात्रा में खिल जाते हैं अतः परागण का कार्य उसी समय कर देना चाहिए जब वर्तिकाग्र पूर्ण रूप से पराग्राही हो.
भूमि :- अच्छी संकर बीज उत्पादन के लिये अच्छी भूमि का चुनाव अति आवश्यक है इसके लिये अच्छी उपजाऊ, दोमट भूमि करेले की खेती के लिये उपयुक्त होती है. जहां सिंचाई व जल निकास की उचित व्यवस्था हो.
जलवायु :- शुष्क और नमीं दोनों प्रकार के मौसम में इसकी खेती होती है लेकिन शुष्क वाली मौसम जब तापमान 25-33 डिग्री से हो इसकी खेती के लिये अच्छी होती है लेकिन फसलकाल के दौरान पाला पड़ने व कई दिनों तक लगातार वर्षा होते रहने से फसल को नुकसान पहुंचता है. बीजों के जमाव के लिये 22-25 डिग्री. सेन्टीग्रेड तापमान सबसे अच्छी होती है.
बीज दर व बीजोपचार :- बीजों की बुवाई दो प्रकार से की जाती है
1. बीज द्वारा
2. पौध रोपण द्वारा
सिधी बीजों की बुवाई मार्च के प्रथम सप्ताह में बीजो को 2-3 से.मी. के गहराई में कर देनी चाहिए लेकिन इस विधि से बुवाई करने से बीजों की उत्पादकता में कमी आ जाती है. अतः अच्छे बीज उत्पादन के लिए पौध रोपण विधि सबसे अच्छी मानी जाती है.
पृथ्क्करण दूरी :- फसलों की पृथ्क्करण दूरी से आशय 2 खेतों के बीच की दूरी से है जहां उसी फसल काल के दौरान बगल वाले खेत में भी करेले की ही फसल ली जा रही हो जिस खेत में करेले का संकर बीज उत्पादन ही करना है वहां से 1000 मीटर की दूरी तक करेले की कोई अन्य दूसरी किस्म नहीं लगी होनी चाहिए तथा नर मादा पौधे की बीज कम से कम 5 मी. की दूरी रखना चाहिए ताकि अन्य किस्म के परागकण संकर बीजोत्पादन को प्रभावित न करें.
खाद एवं उर्वरक :- फसलों की अच्छी बढ़वार व अच्छे किस्म के बीज प्राप्त करने के लिए खाद व उर्वरक की उचित व सही मात्रा ही फसलों को देना चाहिए. इसके लिये बुवाई से 25-30 दिन पूर्व 30 टन गोबर या कम्पोष्ट खाद प्रति हेक्टर की दर से भूमि में मिला देना चाहिए बुवाई से पहले नालियों में 50 कि.ग्रा. डी.ए.पी. 50 कि.ग्रा. पोटाश को प्रति हेक्टेयर की दर से मिलायें. बुवाई 20-25 दिन बाद स्पंज के समय 30 कि.ग्रा. यूरिया व 50 से 55 दिन बाद फलन के समय 30 यूरिया शाम के समय जब मृदा में अच्छी नमी हो तक डालना चाहिये.
फसल अंतरण :- करेले की संकर बीज उत्पादन के लिये नर व मादा पौधे की बुवाई अलग अलग नालियों में की जाती है इसके लिये नाली से नाली की दूरी 2 मीटर पौधे से पौधे की दूरी 50 से.मी. व मेड़ो की ऊंचाई 50 से.मी. रखनी चाहिए. नर व मादा पौधों का अनुपात संकर बीज उत्पादन के लिये आवश्यक होता है. जिसके लिये 1/4 भाग नर पौध व 4/5 भाग मादा पौध लगाना चाहिए.
परागण :- करेला का पुष्प छोटा व मुलायम होता है जो कि आसानी से टूट जाता है अतः परागण के समय पूरी सावधानी बरतनी चाहिए. करेला में परागण हाथ से किया जाता है, मादा पौधो से नर पुष्पों को अलग कर लिया जाता है साथ ही मादा पुष्पों को शाम के समय बटर पेपर से ढ़क दिया जाता है व हवा आने जाने के लिये बटर पेपर में 4-5 छिद्र कर देते हैं. नर पुष्पों को बटर पेपर से ढ़क देते है अगले दिन नर पुष्पों को तोड़कर पेपर हटाकर हाथ से परागकण एकत्रकर ब्रश की सहायता से मादा पुष्पों में परागण करें. परागण के बाद मादा पुष्पों को पुनः बटर पेपर से ढ़क दें व 8-10 दिन बाद ही हटाये इस प्रकार एक पौध में 4-5 संकरण ही बनायें.
फसल सुरक्षा :- आवश्यकता पड़ने पर समय समय पर निंदाई -गुड़़ाई करते रहना चाहिये व अवांछित पौधों को निकाल देना चाहिए, जिससे कि अन्य किस्म के पौधे व अन्य खरपतवार पौधों के साथ पोषक तत्वों के लिये प्रतिभागी न बनें व मुख्य फसल की उचित वृद्धि एवं विकास हो.
फसल तुड़ाई व बीज निकालना :- परागण के 28-30 दिन बाद जब फल पूरी तरह से पक जाये तो तुड़ाई कर लेना चाहिये, लेकिन ध्यान रहें फल ज्यादा न पकने पाये, क्योंकि ज्याद पकने से बीज गिरने लगती है. पके फलों को दो भागों में फाड़कर हाथ से बीज निकालकर मिट्टी या रेत से रगड़कर फलों से चिपचिपी झिल्ली निकाल लेनी चाहिये इसके बाद बीजों को साफ पानी से धोकर सुखा लेना चाहिए.
उपज :- 300 से 375 कि.ग्रा. बीज प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो जाता है.
लेखक:
ललित कुमार वर्मा, हेमंत कुमार, सोनू दिवाकर, तरूणा बोरले
पंडित किशोरी लाल शुक्ला उद्यानिकी महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, राजनांदगांव (छ.ग.)
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