भारत में चने की खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार में की जाती है. चना एक ऐसी जलवायु की फसल है जो कि शीतोष्ण होती है. इसके फसल में फूल आने के बाद इसके लिए वर्षा का होना हानिकारक होता है, क्योंकि वर्षा के कारण फूल परागकण एक दूसरे से चिपक जाते है. इसकी खेती के लिए 24 से 30 डिग्री तापमान काफी ज्यादा लाभदायक होता है.
यह सेहत के लिए भी काफी उपयुक्त माना जाता है. इसीलिए आज हम आपको बताने जा रहे है कि चने की खेती किस तरह से की जाती है जो सभी के लिए लाभकारी होती है-
छोटे और मोटे अनाजों में शुमार चना की खेती केवल जायद में ही होती है. हम इस जायद को सांबा के रूप में भी जानते है. इसकी खेती आलू, सरसों, रई, गन्ने की फसल के काटने के बाद होती है. यह 65 से 70 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. उन्नत किस्म की बीज होने पर इससे अच्छी पैदावार होती है.
ऐसे करें भूमि की तैयारी (Prepare the land like this)
खेती की तैयारी को करने से पहले उपयुक्त भूमि का चुनाव महत्वपूर्ण है. इसके लिए अधिक सामान्य शाक्ति वाली मिट्टी काफी बेहतर होती है. इसके अलावा दोमट, मटियार जमीन इसके लिए सबसे ज्यादा उपयुक्त माना जाता है. खेत की तैयारी के लिए एक पलेवा करना चाहिए और जैसे ही ओट आ जाए इसकी तैयारी करके बुवाई कर देनी चाहिए.
बीज की मात्रा (Seed quantity)
इसकी खेती के लिए 5 से 8 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर बुआई के लिए पर्याप्त होते है. इसके बीज का छिलका पूरी तरह से कड़ा होता है, इसीलिए इसको बोने से पूर्व रात में ही पानी में भिगोकर और छायेदार जगह पर सूखाकर बोना चाहिए. इससे बीज का जमाव बेहतर होता है.
बीज बोने का समय (Sowing time)
इसकी फसल को फरवरी से लेकर मार्च तक बोया जाता है. लेकिन 15 मार्च के बाद फसल के बोने पर अधिक पानी की ज्यादा आवश्यकता पड़ती है तथा बाद में तापमान बढ़ जाने पर इसकी फसल प्रभावित हो जाती है.
बुवाई विधि (Sowing method)
इसके बीज को बोने से पहले खेत में पर्याप्त नमी को सुनिश्चित कर लेना चाहिए. इसकी बुवाई कतारों मे 23 सेमी की दूरी पर कर ली जाती है. बोने के लिए 4-5 सेमी रकूंडो की गहराई पर्याप्त है. बोने के15 दिनों बाद पौधों को निकालकर पौधे से पौधे के बीच की दूरी 7-8 सेमी कर लेनी चाहिए.
सिंचाई (Irrigation)
चने की फसल के लिए सिंचाई महत्वपूर्ण होती है. सिंचाई की संख्या, मौसम, मिट्टी और किस्म पर निर्भर करती है. अच्छी उपज को प्राप्त करने के लिए 6-8 सिंचाई की आवश्यकता होती है. इसकी सिंची हल्की होनी चाहिए. अगर फसल की बुवाई फरवरी में की जाएतो 4 से 5 सिंचाई पर्याप्त होगी. पहली सिंचाई को 2-3 पत्तियां आने पर कर सकते है. तापमान के बढ़ने पर इससे भी कम सिंचाई करनी पड़ती है.
निराई और गुड़ाई
जैसे ही पहली सिंचाई हो तुरंत आप खरपतवार को बाहर निकाल दें. इस तरह से फसल की पैदावार काफी बेहतर होगी और अधिक इसके कल्ले को निकाल दें. हल्की गुड़ाई भी 20-25 दिन के भीतर कर ली जाती है.
रोग (Disease)
यह फसल झुलसा रोग प्रभावित हो रहा है. इस रोग से बचने के लिए 2 किग्रा जिंक मैंगनीज कार्बोनेट और जीरम भी 80 प्रतिशत 2 किलोग्राम या जीरम 27 प्रतिशत 3.5 लीटर आवश्यक पानी में घोलकर डालना चाहिए. चना छेदक और तने की मक्खी का प्रकोप फसल को काफी नुकसान पहुंचा है. इनकी रोकथाम के लिए 1.250 कीटनाशक दवा का प्रय़ोग लाभदायक पाया है.
कटाई और गुड़ाई (Harvesting and weeding)
कोशिश की जानी चाहिए की इसकी कटी को ठीक समय पर कर लिया जाए. डंडे से चलाकर चारा अलग किया जाता है. फसल की कटाई अगर समय पर न की जाए तो दाने जमीन पर गिरने लगते है और उपज में कमी आ जाती है. इसकी फसल को तय समय पर तुरंत काट कर भंडारण के लिए रख लेना चाहिए.
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