Paddy disease: भारत में धान एक प्रमुख फसल है. वहीं इसकी खेती देश के लगभग सभी राज्यों में होती है. लेकिन कई बार इनमें लगने वाले रोगों के कारण किसानों का बड़ा नुकसान हो जाता है. आज हम धान में लगने वाले बकानी रोग के बारे में आपको जानकारी देंगे. साथ ही उसके प्रबंधन के बारे में भी बताएंगे. मालूम हो कि बकानी रोग धान की पौधों पर पाया जाने वाला पथोजनिक रोग है. इस रोग का कारण पिरीकीटोस्पोरा ग्रिसा नामक कीटाणु होता है, जो कि धान के पौधों को प्रभावित करता है.
कब और कैसे लगता है यह रोग?
धान की फसल में यह रोग किसी निश्चित समय में नहीं लगता है, बल्कि धान में लगने वाला यह रोग बीजों को खेतों में लगाने के समय से लेकर फसलों के परिपक्व होने तक के समय में किसी भी अवस्था में लग सकता है. धान में इस रोग के होने का प्रमुख कारण पहले की फसलों में बचे हुए उनके कारक होते हैं. फसल में इस रोग के लग जाने के बाद पौधे कमजोर होकर टूटने लगते हैं.
बकानी रोग से कैसे करें बचाव?
धान में लगने वाले बकानी रोग से प्रबंधन के लिए किसानों को पहले से ही तैयारी करनी चाहिए. इसके लिए आप धान के बीजों को नमक और पानी के मिश्रण में धो लें. आपको इसकी मात्रा के बारे में जानकारी होना भी जरूरी है. मालूम हो कि इसके लिए आपको सबसे पहले 20 लीटर पानी में 150 ग्राम तक नमक मिला लेना है. इसके बाद इस घोल में धान के बीज डाल कर कुछ देर के लिए ऐसे ही छोड़ दें. इसके बाद पूरी तरह से रोगों से सुरक्षा के लिए 2 ग्राम प्रति लीटर की दर से कार्बेन्डाजिम को मिला कर रख दें. कार्बेन्डाजिम बाज़ार में डब्लू पी जी की बाविस्टिन के नाम से मिल जाता है. अब इस घोल में बीजों को 24 घंटे तक पड़े रहने दें. इसके बाद आप इन बीजों को अपने खेतों में बुआई के लिए प्रयोग में ला सकते हैं.
पौधों में भी करें छिड़काव
आपको इस प्रक्रिया के बाद जब बीजों को खेतों में लगा देना है. इसके बाद जब यह फसल कुछ बड़ी होती है तो आप इसमें ट्राईकोडर्मा पाउडर का छिड़काव भी कर सकते हैं. इससे पौधों की सुरक्षा और भी बढ़ जाती है. छिड़काव करते समय आपको 10-20 ग्राम प्रति वर्ग मीटर के अनुसार मानक को तय करना होगा.
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इसके बाद आप धान में लगने वाले बकानी रोग से निजात पा सकते हैं.
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