पूरे विश्व में बगीचे के लिए चाइना एस्टर (कैलिस्टेपस चाइनेन्सिस निस) बहुत ही लोक प्रिय फूल है। यह कर्त्तन पुष्प के लिए खुली जगह (बगीचे) अर्द्धछाया गृह तथा हरित घर में उगाया जाता है। इसके फूल विभिन्न रंगों में खिलने तथा लम्बे समय तक ताजा रहने के कारण सजावट के लिए बहुत ही पसंद किये जाते हैं। यह फूल एस्टेरेसी कुल का पौधा है जिसका उत्पत्ति स्थान चीन देश माना जाता है। इसके फूल से मनमोहक रंगोली, माला, पुष्पविन्यास बनाया जाता है। एस्टर की बौनी किस्मों को गमले और खिड़की बक्से में लगाते हैं।
किस्म-
चाइना एस्टर के किस्मों को लम्बाई के आधार पर तीन वर्गों में बाँटा गया है.
1. लम्बा किस्म: इस वर्ग के पौधे की ऊँचाई 70 से 90 सें. मी. होती हैं तथा फूल बड़े खिलते हैं। इसके किस्म हैं: अमेरिकन ब्रान्चिंग, वकेट पाउडरपफ, चिकुमा स्टोन, कम्पीमेंट सिरीज, मैट सुमोटो, जाइन्ट मासागनो, जाइन्ट ऑफ़ कैलिफोर्निया, पाइओनी, टोटेम पोल।
2. मध्यम किस्म: इस वर्ग के पौधे की ऊँचाई 50-60 सें.मी. होती है तथा फूल मध्यम आकार के नीले, गुलाबी, सफेद, लाल इत्यादि रंगों के होते हैं। इसके किस्म हैं: जाइन्ट कोमेट, जाइन्ट ग्रीगो, क्योटो पोमपोम, ओस्ट्रीच प्लम, युनिकम।
3. बौनी किस्म: इस वर्ग के पौधे की ऊँचाई 20 सें.मी. होती है तथा फूल मध्यम से छोटे आकार के विभिन्न रंगों में खिलते हैं। इसके किस्म हैं: कलर कार्पेट, कोमेट, ड्वार्फ क्राइसेन्थिमम, मिलेडी, पिनोचीओ, एस्टेरिस। भारत में भी कुछ किस्में विकसित की गई हैं जैसे पूर्णिमा, वायलेट कुसन, कामिनी, फूलगणेश वाइट, फूलगणेश वायलेट, फूलगणेश पिंक, फूलगणेश पर्पल।
मिट्टी एवं जलवायु -
चाइना एस्टर की अच्छी वृद्धि के लिए उपजाऊ, अच्छी जल निकास वाली दोमट मिट्टी अच्छी होती है। यह उष्ण और समशीतोष्ण जलवायु में सुगमता से जाड़े के समय में उगाया जाता है, तथा शीतोष्ण जलवायु में इसे गर्मी के समय लगाया जाता है। हरित घर (ग्रीन हाउस) में इसका सालों भर तापमान, आर्द्रता और प्रकाश को नियंत्रित कर उत्पादन किया जाता है।
नर्सरी एवं बीज दर-
बीज को बीज बक्से या ऊँची क्यारियों में डाल कर बिचड़ा तैयार कर सकते हैं। भारत में जून से अक्टूबर तक किसी भी समय पौधा तैयार कर सकते हैं। बीज के अंकुरण के लिए उचित तापमान 210 + 40 सेंटीग्रेट अच्छा होता है। एक एकड़ क्षेत्र के लिए लगभग 125-150 ग्राम बीज पर्याप्त होता है। नर्सरी के लिए मिट्टी, बालू तथा गोबर खाद के मिश्रण 1:1:1 से 1 मीटर चौड़ी तथा 3-5 मीटर लम्बी क्यारियाँ तैयार करनी चाहिए। प्रति किलो बीज को 3 ग्राम कार्बेन्डाजीम दवा से उपचारित कर नर्सरी क्यारियों में डालना चाहिए। बीज को 5 सें.मी. फासले वाली कतार पर 1 सें.मी. दूरी पर गिराना चाहिए तथा बीज को सड़ी गोबर खाद या छनी हुई पत्ती की खाद से ढँक देना चाहिए। इस प्रकार की 3 से 5 क्यारियाँ एक एकड़ क्षेत्र में पौधा लगाने के लिए उपयुक्त होती हैं। चीटी तथा अन्य कीड़ो से बीज को बचाने के लिए लिन्डेन धूल का छिड़काव करना चाहिए। नर्सरी में महीन हजारे (रोजकेन) से पानी देते रहना चाहिए जिससे नमी बने रहे। परन्तु नर्सरी बेड ज्यादा गीला नहीं होना चाहिए, नहीं तो आर्द्र गलन बीमारी लगने की सम्भावना बढ़ जाती है।
बिचड़ो का रोपण -
चाइना एस्टर के बिचड़ों को तब ही रोपना चाहिए जब उसमें तीन से चार पत्तियाँ निकल गई हों। बिचड़ों को शाम के समय रोपना चाहिए, क्योंकि वे इससे आसानी से स्थापित हो जाते हैं तथा पौधों की मृत्यु दर कम होती है। चाइना एस्टर के पौधों का प्रतिरोपण जुलाई से नवम्बर तक सभी भी किया जा सकता है। लेकिन अक्टूबर में रोपे गए पौधों से अच्छे फूल तथा बीज प्राप्त होते हैं।
खेत तैयारी-
खेत की जुताई 2 से 3 बार करके उसमें 5-6 टन गोबर की सड़ी खाद प्रति एकड़ की दर से मिलानी चाहिए। क्यारियों की लम्बाई अपनी सुविधा के अनुसार रखनी चाहिए तथा जल निकास की समुचित व्यवस्था रखनी चाहिए। खेत में पुरानी फसल के अवशेष तथा खरपतवार निकाल देना चाहिए।
दूरियाँ-
चाइना एस्टर के पौधे की अच्छी वृद्धि तथा फूल उत्पादन के लिए उचित दूरी आवश्यक होती है। अच्छी उपज के लिए कतार की दूरी 30 सें.मी.तथा पौधे से पौधे की दूरी 30 सें.मी. रखनी चाहिए। इससे फूल खिलने की अवधि तथा बीज उत्पादन भी बढ़ जाता है। एक एकड़ खेती के लिए 44, 445 स्वस्थ पौधों की आवश्यकता होती है।
खाद एवं उर्वरक-
फूलों की अच्छी पैदावार के लिए खाद एवं उर्वरक की जरूरत होती है। पोषक तत्व की कमी से पौधों की कम वृद्धि होती है तथा वे कम फूल देते हैं। खाद एवं उर्वरक का उपयोग प्रयोगशाला की अनुशंसा पर मिट्टी जाँच के आधार पर करना चाहिए। अच्छे फूल के उत्पादन के लिए 6 टन गोबर खाद, 150 किलो यूरिया, 500 किलो सिंगल सुपर फास्फेट तथा 140 किलो म्यूरेट ऑफ़ पोटाश प्रति एकड़ की दर से खेत की तैयारी के समय में मिला देना चाहिए। पौधा रोपण के एक महीना बाद 100 किलो यूरिया का उपनिवेश करना चाहिए। सूक्ष्म पोषक तत्व जिंक, कॉपर, बोरोन और मैगनीज का प्रयोग खेत में करने से फूल की गुणवत्ता अच्छी होती है।
सिंचाई-
चाइना एस्टर के लिए सभी अवस्थाओं में मिट्टी में नमी पौधे की वृद्धि के लिए आवश्यक है। किसी अवस्था में पानी की कमी उसकी वृद्धि, गुणवत्ता तथा उत्पादन को प्रभावित करती है। सिंचाई की आवश्यकता और अंतराल मुख्यत: मिट्टी एवं मौसम पर निर्भर करता है। भारी मिट्टी की अपेक्षा हल्की मिट्टी में सिंचाई की जरूरत ज्यादा होती है। जाड़े में 10 से 12 दिनों के अंतराल पर सिंचाई देना उचित रहता है।
खरपतवार नियन्त्रण
बरसात तथा जाड़े में खरपतवार ज्यादा बढ़ते हैं। बिचड़ों को उगाने के बाद समय-समय पर खरपतवार निकालते रहना चाहिए। खेत में पौधा लगाने के पहले डायुरान 1.25 किलो या सिमाजिन 1.5 किलो या एलाक्लोर 1.5 किलो प्रति हेक्टर की दर से छिड़काव करने पर खरपतवार कम निकलते हैं।
उपज
1. फूल: चाइना एस्टर में पूर्ण रंग आ जाने पर ही फूलों को काटना चाहिए। प्रति पौधा में 25 से 30 फूल आते हैं। प्रति एकड़ 25 से 27 क्विंटल फूल प्राप्त हो जाते हैं।
2. बीज उपज: जब बीज में 20% नमी से कम हो तब ही बीज निकालना चाहिए। बीज की मात्रा उसकी किस्म पर निर्भर करती है। अच्छी खेती से एक एकड़ में 25 से 50 किलो ग्राम बीज का उत्पादन होता है।
फूलदान जीवन-
चाइना एस्टर के फूलों को काट कर फूलदान में रखकर इसकी सुन्दरता और भी बढ़ाई जा सकती है। पूर्ण खिले तथा अच्छे रंग के लिए फूलों को ही गुलदस्ते में रखना चाहिए। 0.2% सुकोज तथा 0.2% एल्युमिनियम सल्फेट के घोल में रखने पर 8 दिनों तक फूलों को सुरक्षित रखा जा सकता है।
रोग -
1. मुर्झा: यह “फ्युजेरियम ऑसीपोरम” फफूंदी से होने वाला मिट्टी जनित रोग है। इस रोग में पौधा मुर्झाने के बाद सूखने लगता है। रोग प्रतिरोधी किस्मों को लगाना चाहिए। बीज उपचार कर पौधे लगाने से रोग की संभावना कम होती है। वेविस्टीन दवा 2 ग्राम/ली. पानी में घोल कर 10 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए।
2. जड़ तथा कॉलर सड़न: यह रोग फायटोप्थोरा क्रिप्टोजिया फफूंद के कारण होता है। इस रोग में जड़ तथा जड़ से सटा तना सड़ने लगता है, जमीन में अधिक नमी रहने के कारण रोग की संभावना अधिक रहती है। नमी का समुचित समाधान कर रिडोमिल दवा का 2 ग्राम/ली. पानी में घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए।
3. पर्ण दाग: यह रोग “सेप्टोरिया कैलिस्ट्रेपी” फफूंद के कारण होता है। पत्तियों पर पहले पीला दाग तथा बाद में भूरा या काला हो जता है। इस रोग में डाइथेन एम-45 दवा 3 ग्राम/ली. पानी में घोल कर 7 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए।
4. पीलिया रोग: या “क्लोरोजिनस कैलिस्ट्रेफी” द्वारा वायरस से होने वाला रोग है। यह वायरस लीफ हॉयर कीट द्वारा फैलाया जाता है। इस रोग में पौधे छोटे रह जाते हैं तथा पत्तियाँ पीली हो जाती हैं। फूल भी पीले हरे रंग का हो जाता है। रोग ग्रसित पौधे को उखाड़ कर जला देना चाहिए तथा मिथाइन पाराथियान दवा 5 मि.ली./ली. पानी में घोल कर 10 दिनों के अंतराल पर छिड़कानी चाहिए।
कीट-
1. लीफ हॉपर: यह कीट रस चूस कर तथा पत्तियों को खाकर वायरस फैलाता है। इसकी रोकथाम के लिए मिथाइल पाराथियान दवा 5 मि.ली./ली. पानी में घोल कर 10 दिनों के अंतराल पर छिड़कनी चाहिए।
2. लीफ माइनर: यह नन्हा कीट पत्तियों के बीच में सुरंग बनाकर जाली के समान कर देता है। इस कीट का प्रकोप होने पर क्लोरोडेन या टोक्साफेन दवा 5 मि.ली./ली. पानी में घोल कर 10 दिनों के अंतराल पर छिड़कनी चाहिए।
3. एस्टर ब्लिस्टर बीटल: यह कीट पत्तियों तथा फूलों को खाकर नुकसान पहुँचाता है। इसकी रोकथाम के लिए मिथोक्सिक्लोर दवा 1-1.5 मि.ली./ली. पानी में घोल कर 5-7 दिनों के अंतराल पर छिड़कनी चाहिए।
4. स्पाइडर माइट: यह छोटा सूक्ष्म कीट पत्तियों का रस चूसकर पत्तियों को रंगहीन तथा खराब बना देगा है। कैलाथेन दवा 1 मि.ली./ली. पानी में घोल कर छिड़कनी चाहिए।
5. निमेटोड: यह जड़ों में रहकर जड़ों को खाकर सड़ा देता है जिससे पौधे सूखकर मरने लगते हैं। खेत में एल्डीकार्ब दाने का प्रयोग करना चाहिए।
6. माहू: यह कीट जड़ों तथा पौधे के ऊपर नुकसान पहुँचाता है जिससे पौधे कमजोर होकर मर जाते हैं। इसके लिए जड़ों के पास लिन्डेन घोल 2 मि.ली. या मालाथियान दवा 5 मि.ली./ली. पानी में घोल कर छिड़कनी चाहिए।
लेखक :
अभिनव कुमार एवं सचि गुप्ता
शोध छात्र
उधान एवं वानिकी महाविधालय
नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रोधोगिक विश्वविधालय, कुमारगंज, फैजाबाद
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