कपास की खेती नगदी फसल के रूप में होती है. इसकी खेती से किसानों को अच्छा मुनाफा मिलता है. इसकी खेती भारत के कई राज्यों में की जाती है. बाजार में कपास की कई प्रजातियाँ आती हैं, जिनसे ज्यादा पैदावार मिलती है. सबसे ज्यादा लम्बे रेशों वाली कपास को अच्छा माना जाता है. इसकी ज्यादा पैदावार तटीय इलाकों में होती है. कपास की खेती में ज्यादा मेहनत लगती है. इसका उपयोग कपड़ा बनाने में ज्यादा किया जाता है. इसके बीज से तेल भी निकाला जाता है, बचा भाग पशुओं को खिलाया जाता है. खास बात है कि कपास को सफ़ेद सोना कहा जाता है, तो आइए आपको कपास की खेती की पूरी जानकारी देते हैं.
उपयुक्त जलवायु और मिट्टी
इसकी खेती के लिए किसी खास जलवायु की ज़रूरत नहीं पड़ती है, इसलिए कपास की खेती हर जगह की जा सकती है. वैसे शुरूआत में न्यूनतम 16 डिग्री सेन्टीग्रेट तापमान होना चाहिए, तो वहीं फसल बढ़वार के समय लगभग 21 से 27 डिग्री सेन्टीग्रेट तापमान अच्छा माना जाता है. इसकी खेती के लिए बलुई, क्षारीय, कंकड़युक्त और जलभराव वाली भूमियां उपयुक्त रहती हैं. अन्य सभी भूमियों में कपास की खेती की जा सकती है.
उन्नत किस्में
बाज़ार में कपास की कई उन्नत किस्में आती हैं, लेकिन इन सभी किस्मों को उनके रेशों के आधार पर बांटा गया है. खासतौर पर इन्हें तीन भागों में रखा गया है.
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छोटे रेशों वाली कपास
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मध्यम रेशों वाली कपास
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बड़े रेशों वाली कपास
खेत को तैयार करना
सबसे पहले खेत की अच्छे से जुताई कर लें और उसे कुछ दिनों के लिए खुला छोड़ दें. अब खेत में गोबर की खाद डालें. इसके बाद खेत की 2 से 3 बार जुताई कर दें, ताकि खेत में गोबर का खाद अच्छे से मिल जाए. अगर बारिश न हो, तो खेत में पानी (पलेव) छोड़ दें और इसके सूखने के कुछ दिन बाद खेत की जुताई कर दें. ध्यान दें कि इस बार खेत की मिट्टी को समतल करके पाटा लगा लें. इसके बाद खेत में उर्वरक डालकर खेत की जुताई के साथ-साथ खेत में पाटा लगा दें. इसके एक दिन बाद खेत में बीज को लगाया जाता है. कपास के बीज को शाम के वक्त लगाया जाता है.
बीज रोपाई का समय
कपास के बीजों को उनकी प्रजातियों के अनुसार बोया जाता है. अगर खेत में सिंचाई की उचित व्यवस्था है, तो इसकी रुपाई अप्रैल से मई के बीच कर सकते हैं. इससे फसल को पकने का वक्त मिल जाता है. अगर सिंचाई की उचित व्यवस्था नहीं है, तो उस खेत को तैयार करना पड़ता है. जब पहली बारिश हो, तब खेत में उर्वरक डालकर तुरंत बीजों की रोपाई कर देना चाहिए.
बीज रोपाई करने का तरीका
अगर देशी किस्म की कपास को खेत में लगा रहे हैं, तो दो कतारों के बीच लगभग 40 सेंटीमीटर और दो पौधों के बीच लगभग 30 से 35 सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिए. अगर अमेरिकन किस्म के बीजों को खेत में लगा रहें हैं, तो दो कतारों के बीच लगभग 50 से 60 सेंटीमीटर और पौधों के बीच लगभग 40 सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिए. एक एकड़ में लगभग चार किलो बीज लगाना चाहिए. इसको ज़मीन के अंदर लगभग 4 से 5 सेंटीमीटर नीचे डालना चाहिए. इसके अलावा अधिक क्षारीय भूमि में कपास की खेती करने के लिए मेड़ों के ऊपर बीज लगाएं.
कपास की सिंचाई
इसकी खेती में कम पानी की ज़रूरत पड़ती हैं. अगर बारिश ज्यादा होती है, तो इसे शुरुआती सिंचाई की ज़रूरत नहीं पड़ती, लेकिन अगर बारिश न हो, तो इसकी पहली सिंचाई लगभग 45 से 50 दिन बाद या पत्तियां मुरझाने पर कर देनी चाहिए.
कपास की तुड़ाई
इसकी तुड़ाई सितम्बर और अक्टूबर महीने में शुरू होती है. जब कपास की टिंडे लगभग 40 से 60 प्रतिशत खिल जाएं, तो पहली तुड़ाई कर देनी चाहिए. इसके बाद जब सभी टिंडे खिल जाएं, तो दूसरी तुड़ाई कर दें.
कपास की पैदावार
किसानों को कपास की खेती से अच्छी आमदनी होती है. इसकी अलग-अलग किस्मों से अलग-अलग पैदावार मिलती हैं. जहां देशी किस्मों की खेती होती है, वहां लगभग 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और जहां अमेरिकन संकर किस्मों की खेती होती है, वहां लगभग 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार हो सकती है. बाजार में इसका भाव 5 हज़ार प्रति क्विंटल के हिसाब से होता है, इसलिए किसान एक हेक्टेयर से एक बार में लगभग 3 लाख से ज्यादा पैसा कमा कर सकते हैं.
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