मिटटी में ट्राइकोडर्मा नामक फफूंद (Trichoderma Fungus) पाया जाता है, जो मिटटी और बीजों में पाए जाने वाले हानिकारक फफूंद को नष्ट कर पौधे को स्वस्थ्य रखने में सहायक होता है. यह एक प्रकार का जैविक फफूंदी नाशक है. जो पौधे की वृद्धि के लिए उपयुक्त माना जाता है.
जी हाँ, पौधों में कई तरह के रोग लग जाते हैं, जिससे बचाव के लिए किसान रासायनिक दवाओं का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन जहां एक तरफ इस रसायनिक दवा से रोगों से निजात मिलती है, लेकिन फसलों में विष का प्रभाव कहीं ना कहीं रह जाता है. धान, गेहूं, दलहनी, औषधीय, गन्ना और सब्जियों की फसल में प्रयोग करने से उसमें लगने वाले फफूंद जनित तना गलन, उकठा आदि रोगों से निजात मिल जाती है. इसका प्रभाव फलदार वृक्षों पर भी लाभदायक है. ट्राइकोडर्मा सभी सरकारी बीज भंडारों दवा की दुकानों में उपलब्ध है. किसान इसको अपना कर फसल की लागत कम कर सकते हैं.
केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, समस्तीपुर, बिहार के अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना के कृषि वैज्ञनिकों ने कहा कि आधुनिक तकनीकी में ट्राईकोडर्मा का उपचार किसानों के लिए हर हाल में फायदेमंद है. इसकी कीमत और लागत, दोनों रासायनिक दवाईयों से काफी कम है.
ट्राइकोडर्मा से कैसे करें उपचार (How To Treat Trichoderma)
-
इसके लिए किसान भाई पांच से दस ग्राम ट्राइकोडर्मा को 25 मिली लीटर पानी में घोल लें.
-
धान की नर्सरी और अन्य कन्द वाली फसलों में दस ग्राम ट्राइकोडर्मा का घोल एक लीटर पानी में बना कर छिड़काव कर सकते हैं.
-
नर्सरी पौध को तैयार घोल में आधे घंटे तक भिगो लें, इसके बाद रोपाई कर दें.
-
वहीँ एक एकड़ खेत में एक किलो ग्राम ट्राइकोडर्मा की सौ लीटर पानी में घोलकर उसका छिड़काव कर सकते हैं.
-
पौध के जड़ को ट्राइकोडर्मा के घोल में डुबोकर नर्सरी में लगा सकते हैं.
-
पौध रोपण के समय खेत में प्रर्याप्त मात्रा में ट्राइकोडर्मा का प्रयोग कार्बनिक खादों जैसे, कम्पोस्ट, खल्ली, के साथ मिलाकर करें .
-
खड़ी फसल में भी इसका प्रयोग पौधों के जड़ के पास कर सकते हैं.
-
खेत में इस घोल को डालते वक़्त जैविक खाद का ही इस्तेमाल करें.
-
खेत में प्रर्याप्त नमी बनाये रखें.
ट्राइकोडर्मा से लाभ (Benefits of Trichoderma)
-
इस घोल के इस्तेमाल से पौधों में होने वाले आर्द्रगलन, उकठा, जड़-सड़न, तना सड़न , कालर राट, फल-सड़न जैसी रोगों को नियंत्रित किया जाता है. जिन पौधों में मिटटी के पोषक तत्व की कमी से रोग लगते हैं, उनकी रोकथाम के लिए किया जाता है.
-
जैविक विधि के रूप में ट्राइकोडर्मा सबसे उत्तम एवं सफल प्रयोग होने वाला रोग नियंत्रक माना जाता है. बीज के अंकुरण के समय ट्राइकोडर्मा बीज में हानिकारक फफूँद के आक्रमण तथा प्रभाव को रोक देता है और बीजों को मरने से बचाता है.
-
यह भूमि में उपलब्ध पौधों, घासों एवं अन्य फसल अवशेषों को सड़ा- गलाकर जैविक खाद में परिवर्तित करने में सहायक होता है.
-
यह घोल पौधे की अच्छी बढ़वार करने में सहायक होता है .
-
इसका प्रभाव मिट्टी में सालों साल तक बना रहता है, तथा रोग को रोकता है.
-
इससे पर्यावरण भी दूषित नहीं होता है.
Share your comments