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4 हजार साल पुरानी ऐसी फसल की खेती जो आज भी है आसान और मुनाफेमंद!

कृषि क्षेत्र में भारत काफी आगे बढ़ चुका है. फसलों की नई किस्म और नए-नए तरीकों पर गौर किया जा रहा है. ऐसे में कुछ ऐसी फसलें भी हैं, जो काफी पुरानी और मुनाफेमंद हैं. इस लेख में हम आपको ऐसी ही एक फसल के बारे में बताएंगे.

राशि श्रीवास्तव
रागी की विभिन्न किस्मों की प्रति हेक्टेयर औसतन पैदावार 25 क्विंटल के आसपास होती है.
रागी की विभिन्न किस्मों की प्रति हेक्टेयर औसतन पैदावार 25 क्विंटल के आसपास होती है.

कृषि क्षेत्र में भारत काफी आगे बढ़ चुका है. फसलों की नई किस्म और नए-नए तरीकों पर गौर किया जा रहा है. ऐसे में कुछ ऐसी फसलें भी हैं, जो काफी पुरानी और मुनाफेमंद हैं. जिनमें से एक है रागी, यह पहली अनाज की फसल है जिसे फिंगर बाजरा, अफ्रीकन रागी, लाल बाजरा आदि के नाम से जाना जाता है. जो भारत में करीब 4 हजार साल पहले लाई गई थी. आइये जानते हैं रागी की खेती कैसे करें जो मुनाफेमंद हो.

रागी की विशेषता- शुष्क मौसम में उगाया जा सकता है, गंभीर सूखे को सहन कर सकती है और ऊंचाई वाले क्षेत्रों में भी उगाई जा सकती है. कम समय वाली फसल है, 65 दिनों में कटाई कर सकते हैं. सभी बाजरा में सबसे ज्यादा उगाई जाने वाली फसल है. प्रोटीन और खनिजों की मात्रा ज्यादा है. महत्वपूर्ण अमीनो एसिड भी है. कैल्शियम (344 मि.ग्रा.) और पोटाशियम (408 मि.ग्रा.) की भरपूर मात्रा है. कम हीमोग्लोबिन वाले व्यक्ति के लिए बहुत लाभदायक है, क्योंकि लोह तत्वों की मात्रा ज्यादा है.

उपयुक्त मिट्टी- कई तरह की उपजाऊ और कार्बनिक पदार्थों से भरपूर मिट्टी में खेती की जा सकती है. लेकिन अच्छे उत्पादन के लिए बलुई दोमट मिट्टी सही मानी जाती है. भूमि में जलभराव ना हो. भूमि का ph मान 5.5 से 8 के बीच हो.

खेत की तैयारी- खेत में मौजूद पुरानी फसलों के अवशेषों को नष्ट कर खेत की मिट्टी पलटने वाले हलों से गहरी जुताई करें. जैविक खाद के रूप में पुरानी गोबर की खाद को डालकर अच्छे से मिट्टी में मिला दें. खाद को मिट्टी में मिलाने के लिए खेत की कल्टीवेटर के माध्यम से 2-3 तिरछी जुताई करें. खाद को मिट्टी में मिलाने के बाद खेत में पानी चलाकर खेत का पलेवा करें. फिर दोबारा जुताई करें.

उन्नत किस्में- रागी की बाजार में बहुत किस्म है. जिन्हें कम समय में अधिक पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है. जेएनआर 852, जीपीयू 45, चिलिका , जेएनआर 1008, पीइएस 400, वीएल 149, आरएच 374 उन्नत किस्में हैं. इनके अलावा भी कई किस्म हैं.

बीज की मात्रा और उपचार- रोपाई के लिए बीज की मात्रा बुवाई की विधि पर निर्भर करती है. ड्रिल विधि से रोपाई में प्रति हेक्टेयर 10 -12 किलो बीज लगता है. जबकि छिडक़ाव विधि से रोपाई में लगभग 15 किलो बीज लगता है. बीजों को उपचारित करने के लिए थीरम, बाविस्टीन या फिर कैप्टन दवा का इस्तेमाल करें.

बीज रोपाई का तरीका और समय

बीजों की रोपाई छिड़काव और ड्रिल दोनों तरीकों से होती है. छिड़काव विधि में इसके बीजों को समतल की हुई भूमि में किसान छिड़क देते हैं. उसके बाद बीजों को मिट्टी में मिलाने के लिए कल्टीवेटर के पीछे हल्का पाटा बांधकर खेत की 2 बार हल्की जुताई करते हैं. इससे बीज भूमि में लगभग 3 सेंटीमीटर नीचे चला जाता है. ड्रिल विधि से बीजों को मशीनों की सहायता से कतारों में लगाते हैं. कतारों में इसकी रोपाई के दौरान हर कतार के बीच लगभग एक फीट दूरी हो और कतारों में बोये जाने वाले बीजों के बीच 15 सेंटीमीटर के आसपास दूरी रखी जाए.

बुवाई का समय- पौधों की रोपाई मई के आखिर से जून तक की जाती है. इसके अलावा कई ऐसी जगह है जहां रोपाई जून के बाद भी होती है और कुछ इसे जायद के मौसम में भी उगाते हैं.

पौधों की सिंचाई- सिंचाई की ज्यादा जरूरत नहीं होती. क्योंकि खेती बारिश के मौसम में होती है. अगर बारिश समय पर ना हो तो पौधों की पहली सिंचाई रोपाई के लगभग एक से डेढ़ महीने बाद करें. फिर जब पौधे पर फूल और दाने आने लगें तब उनको नमी की ज्यादा जरूरत होती है. ऐसे में 10 से 15 दिन के अंतराल में 2-3 बार सिंचाई करें.

उर्वरक की मात्रा- उर्वरक की ज्यादा जरूरत नहीं होती. खेत की तैयारी के वक्त लगभग 12 से 15 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को खेत में डालकर अच्छे से मिट्टी में मिला दें. इसके अलावा रासायनिक खाद के रूप में डेढ़ से दो बोरे एनपीके की मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से खेत की आखिरी जुताई के वक्त छिड़ककर मिट्टी में मिला दें. 

खरपतवार नियंत्रण- बीज रोपाई के पहले आइसोप्रोट्यूरॉन या ऑक्सीफ्लोरफेन की उचित मात्रा का छिड़काव करें. जबकि प्राकृतिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण पौधों की निराई गुड़ाई करके होता है. पौधों की रोपाई के लगभग 20- 22 दिन बाद पहली गुड़ाई कर दें. प्राकृतिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए दो बार गुड़ाई काफी है. 

ये भी पढ़ेंः रागी (मडुआ) की खेती करने का तरीका, उन्नत किस्में और लाभ

फसल की कटाई- पौधे बीज रोपाई के लगभग 110 -120 दिन बाद कटाई के लिए तैयार होते हैं. जिसके बाद इसके सिरों को पौधों से काटकर अलग करें. दाने अच्छे से सूख जाएं तब मशीन की सहायता से दानों को अलग कर बोरों में भरें.

पैदावार और लाभ- रागी की विभिन्न किस्मों की प्रति हेक्टेयर औसतन पैदावार 25 क्विंटल के आसपास होती है. जिसका बाजार भाव 2700 रूपये प्रति क्विंटल के आसपास होता है. इस हिसाब से किसान एक बार में एक हेक्टेयर से 60 हजार रूपये तक की कमाई कर लेता है.

English Summary: A 4,000-year-old crop that is still easy and profitable! Published on: 03 December 2022, 05:59 PM IST

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