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पीएम मोदी नाराज किसानों को समझने में कहां चूक गए?

स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह पहली बार है, जब अपनी मांगों को लेकर किसान इतनी बड़ी संख्या में सड़क पर डटे हैं. इससे पहले शायद ही कभी इतनी बड़ी संख्या में किसानों को एकजुट होकर सरकार को चुनौती देते देखा गया होगा.

अभिषेक सिंह
अभिषेक सिंह
Farmer Protect
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स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह पहली बार है, जब अपनी मांगों को लेकर किसान इतनी बड़ी संख्या में सड़क पर डटे हैं. इससे पहले शायद ही कभी इतनी बड़ी संख्या में किसानों को एकजुट होकर सरकार को चुनौती देते देखा गया होगा. नए कृषि कानूनों से नाराज उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा समेत अन्य राज्यों से आए किसान अब भी दिल्ली की सीमाओं को घेरे बैठे हैं. इस आंदोलन में शामिल लोगों की संख्या तकरीबन पांच लाख के करीब है, जो किसी भी हद तक जाकर तीनों नए कृषि कानूनों को वापस कराना चाहते हैं.

याद कीजिए जब इसी देश में 'लोकपाल' को लेकर तब की कांग्रेस सरकार के खिलाफ एक बड़ा आंदोलन खड़ा हुआ था. लेकिन उस वक्त कांग्रेस के पास पूर्ण बहुमत नहीं था और कुछ महीनों में ही लोकसभा के चुनाव होने वाले थे. यहीं वजह थी कि सरकार जनता के सामने झुक गई और लोकपाल बिल लेकर आई.  हालांकि नरेंद्र मोदी की सरकार झुकने वाली में से नहीं है. इनके पास पूर्ण बहुमत है और इन्हें सत्ता जाने का डर भी नहीं है, तभी तो सरकार तीनों कृषि कानूनों को लेकर अडिग है. ऐसा लगता है कि सरकार कसम खा चुकी है कि चाहे, जो हो जाए कृषि कानून वापस नहीं होगा.

किसान सरकार से दो-दो हाथ को तैयार

हाल के दिनों में देखा गया है कि सरकार के खिलाफ धीरे-धीरे ही सही आवाजें उठने लगी हैं. नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ भी शाहीन बाग में जोरदार प्रदर्शन हुए थे. एक तबका उस वक्त भी कानून को वापस कराने की मांग पर अड़ा था. वहीं दूसरी तरफ सरकार के समर्थन में लोग प्रदर्शन को नाजायज करार दे रहे थे. कभी प्रदर्शन में मौजूद महिलाओं पर सवाल उठ रहे थे, तो कभी पैसे लेकर प्रदर्शन में शामिल होने के. हालांकि कोरोना महामारी की वजह से लोगों को प्रदर्शन खत्म करना पड़ा. अब उसी राह पर किसान हैं और खुलेआम सरकार से दो-दो हाथ करने को तैयार हैं.

मोदी सरकार नाराज किसानों का मूड समझने में नाकाम

नागरिकता संशोधन कानून और कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शनों को करीब से देखा जाए, तो पता चलेगा कि मोदी सरकार लोगों का मूड समझने में नाकाम साबित हुई है. साथ ही मोदी सरकार के पास ऐसे आंदोलनों को विफल करने का कोई तजुर्बा भी नहीं है. गुजरात के सीएम रहते नरेंद्र मोदी शायद ही कभी ऐसे आंदोलन को हैंडल किए हों.

याद कीजिए वर्तमान गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि पहले नागरिकता संशोधन कानून आएगा फिर देश में एनआरसी, लेकिन जब प्रधानमंत्री पर दबाव पड़ा, तो खुले मंच से उन्होंने कहा कि एनआरसी शब्द पर कोई चर्चा नहीं हुई है. पीएम मोदी के नागरिकता संशोधन कानून पर दिए गए जवाब से समझा जा सकता है. सिर्फ मोदी की ही बात नहीं है. इससे पहले भी कई पार्टियों ने अपने मैनिफेस्टो में कई चीजों को जगह दी, लेकिन जब उस पर विवाद हुआ, तो वह पलट गई.

अब काफी देर हो चुकी है

जनता का मूड भांपकर चुनाव जीतने में माहिर मोदी सरकार जनता के आक्रोश को समझने में नाकाम साबित हो रही है. जब किसान कृषि कानूनों को लेकर रेल मार्ग और सड़क जाम कर रहे थे, साथ ही भाजपा नेताओं का घेराव कर रहे थे, तभी उन्हें समझ जाना चाहिए था कि ये छिटपुट प्रदर्शन बड़े आंदोलन में बदल सकते हैं और वहीं हुआ. खैर इसके बाद भी मोदी सरकार को नाराज किसानों को समझने का एक मौका मिला था, जब उसकी सहयोगी आकाली दल ने उसका साथ छोड़ दिया था.

नोट – उक्त आर्टिकल लेखक के निजी विचार हैं, इन विचारों से कृषि जागरण का दूर – दूर तक कोई सरोकार नहीं हैं.

English Summary: Where did PM Narendra Modi fail to understand angry farmers, here reason Keyword: Narendra Modi, Farmers act 2020, farmers, Protest Published on: 14 January 2021, 05:12 IST

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