फसल उत्पादन की प्रक्रिया में दो महत्वपूर्ण जैविक आवश्यकतायें हैं एक है फूलों का पर-परागण जिसके फलस्वरूप बीज तथा फल का विकास होता है और दूसरा फसलों पर कीटों का नियंत्रण, जिसके अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के कीटनाशक रसायनों के प्रयोग से, इन बने हुए बीजों और फलों को कीटों से सुरक्षित रखा जाता है। यह दोनों फसल उत्पादन की ऐसी अनिवार्यतायें है जो यदि सामान्य रूप से देखी जाये तो एक दूसरे के विपरीत प्रतीत होती है परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है और यह दोनों प्रक्रियाएं फसल उत्पादन में एक दूसरे की पूरक है। फसल उगाने में परागण तथा कीट-व्याधि नियंत्रण दोनो ही महत्वपूर्ण कार्य हैं और भरपूर उपज लेने के लिए दोनो में पर्याप्त सामंजस्य होना अनिवार्य है। अनेक अवसर ऐसे आते हैं, जब किसान बंधु इस बात का ख्याल किये बिना कीटनाशक/कीटनाशकों का प्रयोग करते है जो मधुमक्खियों तथा अन्य परागण क्रिया में मदद करने वाले कारक को क्षति पहुचाते है। जब अपनी फसलों पर अंधाधुंध कीटनाशकों का छिड़काव करते है तो ऐसी स्थिति में लाभ कम और क्षति की संभावनायें अधिक होती है।
मौन प्रदूषण के श्रोत
मधुमक्खियों पर, विशेषतः पुष्पण के समय, फसलों पर कीटनाशकों के प्रयोग करने से घातक प्रभाव होता हैं। मुख्यतः विषैले रसायनों के चूर्णो का भुरकाव सर्वाधिक घातक होता है। घुलनशील कीटनाशक रसायनों के घोल के छिड़काव का प्रभाव, सूखे चूर्णो से कम होती हैं, यद्यपि इनका उपयोग फूल वाली फसलों पर, फूल की अवस्था में करना उचित नहीं है। घुलनशील अथवा तैलीय घोलों का प्रभाव अपेक्षाकृत कम होता है, क्योंकि ये पदार्थ पौधो की सतह से भीतर शीघ्र सोख लिये जाते है। जैसे दानेदार अथवा सर्वागी (सिस्टेमिक) कीटनाशकों का उपयोग अपेक्षाकृत सुरक्षित रहता है। मुख्य फसल पर पुष्प न हो, ऐसे समय पर जबकि उनके नीचे या साथ में कोई अन्य फसलों में फूल आ रही हो अथवा आकर्षक खरपतावार पर फूल हो तो भी छिड़काव किया जाना घातक होता है। पर्यावरण में कीटनाशक रसायन विभिन्न श्रोतों से पहुँचते है जैसे:
1‐ खेतों में कीटनाशकों का छिड़काव करने से,
2‐ मनुष्य एवं जानवरों में रोग फैलाने वाले कीटों को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशक रसायनों का प्रयोग करने से,
3‐ मिट्टी में कीटनाशकों को मिलाने से,
4‐ दानेदार दवा का प्रयोग करने से,
5‐ कीटनाशक वाले बर्तन तथा छिड़काव वाले मशीनों को धोने से
6‐ कीटनाशकों के उत्पादन संबंधित औद्योगिक इकाईयों से, इत्यादि।
यह कहना कठिन है कि कौन सा श्रोत महत्वपूर्ण है फिर भी कृषि में प्रयोग किये जाने वाले कीटनाशकों, जन स्वास्थ्य में प्रयोग होने वाले कीटनाशकों एवं औद्योगिक प्रतिष्ठानों से अपशिष्ट के रुप में निकलने वाले कीटनाशक इनकें मुख्य श्रोत है।
मौनों (मधुमक्खीयों) पर विषैले कीटनाशकों के प्रभाव का लक्षण
कीटनाशकों के द्वारा हुए विषैले प्रभाव के कारण मौनें तेजी से मौनगृह के सामने तथा उसके आस-पास मर कर गिरी हुई मिलती है (चित्र सं0 2)। भोजन संग्रह के लिए बाहर जाने वाली मौनों में, यह क्षति बहुत अधिक होती है। विष से प्रभावित मौनों का व्यवहार अत्यन्त उलझा हुआ रहता है, और वे दिशाविहीन होकर इधर-उधर असमान्य व्यवहार करते हुए उड़ती हुई पाई जाती है (चित्र सं0 1)। मौनें अपने गृह के अवतरण पट अथवा आस-पास गलत ढंग से सूचना-नृत्य करती है और मौंने भली-भांती अपने ही समुह के मौनों को पहचान भी नहीं पाती।
मौनपालकों के बीच रोकथाम की उचित जानकारी एवं जरूरी उपाय
मधुमक्खियों में अधिकतर नुकसान, अनुचित कीटनाशकों का चुनाव के अलावा, कीटनाशक दवाओं के असमय एवं अवैज्ञानिक तरीके से छिड़काव के दोषों के प्रति जानकारी के अभाव के कारण होता है। किसानों को अपनी फसलों में परागण के समय एवं प्रकार की आवश्यकताओं की पर्याप्त जानकारी रखनी चाहिए। इतना ही नहीं, अपने खेत में लगें मुख्य फसल पर फूल न होने के समय भी छिड़काव करते समय, इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उसके साथ लगी अन्य फसलों अथवा खरपतवारों में फूल तो नहीं है, और मधुमक्खियाँ उन पर बैठ तो नहीं रही है। जिन क्षेत्रों में मौनपालक, मौनवंश रखे हुए हों वहा छिड़काव करने से पूर्व उत्पादक को चाहिए कि वे अपने मौनपालकों को अपने कार्यक्रम की पूर्व सूचना आवश्य दे दें।
कीटनाशकों का उचित उपयोग
फसल पर कीटनाशकों का छिड़काव ऐसे समय पर ही किया जाना चाहिए, जब कि उसका सही लाभ मिलने की सम्भावना हो। उत्पादन के आर्थिक क्षति के स्तर से, बहुत पहले अथवा बहुत बाद छिड़काव करने का पूरा लाभ नहीं मिलता। फूल के समय फल वृक्षों अथवा फसलों पर यथासम्भव छिड़काव करने का प्रयास नहीं किया जाना चाहिए। यदि ऐसी दशा मे छिड़काव करना ही पड़े तो कीटनाशको का सही चयन करके सुरक्षित समय पर अनुशंसित मात्रा में उसका छिड़काव किया जाना चाहिए। कीटनाशकों का चुनाव मौनों के प्रति विषैलेपन के अनुसार कीटनाशकों की सूची निम्न हैः-
तालिका 1: कीटनाशकों का उचित चुनाव एवं उपयोग
(क) | कारटॉप हाईड्रोक्लोराइड, क्लोरोपाइरीफॉस, एजिनोफॉस, कार्बोफ्युरान, डायमेथेयेट, फेमसल्फोथियन, मालाथियन् | फूल के समय कभी न छिड़के। |
(ख) | कार्बोफेनिथियन, डाइसिस्टोन, फोसालोन, साइपरमेथ्रिन, परमेथ्रिन, डेल्टामेथ्रिन, थायोमेथाक्सॉम | सायंकाल एवं प्रातः काल छिडकाव कर सकते हैं। |
(ग) | निकोटीन सल्फेट, पाइरेथ्रम, रोटेनान रैनिया, एजाडिरेक्टीन प्रोफेनोफॉस, इमिडाक्लोप्रिड, फ्लुबेन्डिंयामाइड, क्लोरानट्रानीलीप्रोल, टेट्रानीलीप्रोल | सायंकाल के समय छिड़काव कर सकते हैं। |
भारत में हुए कुछ परिक्षणों के आधार पर इन्डोसल्फान, मेनाजोन, फोरमीथियन, फोसालीन, पाइरेथ्रम् निकोटिन सल्फेट, एजाडिरेक्टीन आदि कीटनाशक अपेक्षाकृत सुरक्षित है। कीटनाशक का स्वरूप भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। घुलनशील तथा दानेदार पदार्थ अधिक उपयोगी है।
उपचार का समय
सामान्य फूलों पर कीटों तथा मधुमक्खियों के बैठकर रस चूसने के समय कदापि कीटनाशक का छिड़काव नहीं करना चाहिए। फूल वाली फसलों पर अथवा इनके आस पास क्षेत्रों में ऐसे समय का पता लगाकर छिडकाव करना चाहिए, जब मक्खियाँ सायंकाल लगभग 4 से 4:30 बजे के बाद नहीं बैठती है। सायंकाल के समय छिड़काव कर सकते हैं। जहाँ मौनवंश हो, छिड़काव के पूर्व मौनपालको को सूचित कर मौनवंशों के बक्सें को बंद करा देनी चाहिए।
किसानों को चाहिए कि जहाँ भी बिना कीटनाशकों के कीट नियंत्रण की सम्भावनाये हो, उनका पूरा लाभ उठाया जाना चाहिए। कुछ ऐसे तैलीय पदार्थ होते है जिनको मिला देने से, कीटनाशकों का पौधों की सतह में सोखे जाने की गति बढ़ जाती है और मौनों की सुरक्षा भी हो जाती है जिसका प्रयोग यथासंभव करे।
निष्कर्ष
उपरोक्त के अतिरिक्त, मौनपालकों को ऐसे समय में छिड़काव करना चाहिए, जबकि उगाये जाने वाले पौधों एवं फसलों में फूल न हों। इसके अतिरिक्त, मौनपालकों को शहद (मधु) उत्पादन में जंगली पुष्पों का प्रयोग करना चाहिए, इसमें कीटनाशकों के सम्भावित छिड़काव से सुरक्षा होगी तथा जंगली फूलों का लाभ पाकर मौनवंश अधिक सुदृढ़ होंगें और अधिक शहद (मधु) का उत्पादन होगा।
नोट: कृषि रसायनों के प्रयोग के पूर्व वैज्ञानिक या विशेषज्ञ से सलाह अवश्य लें।
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डॉ. मुकेश कुमार सिंह1, डॉ. राजीव कुमार श्रीवास्तव2 एवं डॉ. सुधानंद प्रसाद लाल3
1सहायक प्राध्यापक, कीट विज्ञान विभाग, स्नातकोत्तर महाविद्यालय,
डा0 राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर (बिहार)-848125
2सहायक प्राध्यापक-सह-वैज्ञानिक (सस्य विज्ञान), निदेशालय बीज एवं प्रक्षेत्र,
तिरहुत कृषि महाविद्यालय परिसर, ढोली, मुजफ्फरपुर-843121, बिहार
(डा0 राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर)
3सहायक प्राध्यापक-सह-वैज्ञानिक, प्रसार शिक्षा विभाग (पीजीसीए),
डा0 राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर (बिहार)-848125
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