भले ही भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक अपेक्षाकृत उज्ज्वल स्थान पर है, लेकिन पश्चिम में इसके अधिकांश बड़े व्यापारिक साझेदार और चीन गहरी मंदी के दौर से गुज़र रहे हैं और कुछ मामलों में मंदी के लिए तैयार हमें भी होना है.
वित्त मंत्री जी का जनलुभावन बजट पेश करना और भी जटिल हो सकता है क्योंकि इस साल शीत ऋतु में एक बार भी बारिश नहीं होने के कारण कुछ हिस्सों में कृषक वर्ग परेशान हैं हांलाकि प्राप्त सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस वर्ष रबी फसलों का रकवा पिछले सालों के रकवे से 3% अधिक होने के कारण बम्पर उत्पादन होने के कयास लगाये जा रहे हैं. परन्तु मौसम परिवर्तन से नुकसान को भी किसान समझ रहे हैं.
साल 2022-23 में भी जलवायु परिस्थितियों के कारण चावल और गेहूं की फसलों को काफी नुकसान हुआ था. अत: इस साल के सलाना बजट से हमें कृषि क्षेत्रों के लिए बहुत उम्मीद है.
आर्थिक दृष्टिकोण से वर्ष 2023-24 के अत्यधिक अनिश्चित रहने की संभावना है.
जलवायु परिवर्तन, गेहूं और खाद्य तेलों की वैश्विक कीमतों में भारी वृद्धि, यूक्रेन पर रूसी आक्रमण ने, कच्चे तेल की कीमतों में उछाल ने इसे और भी जटिल बना दिया है. कई विकसित देशों की अर्थव्यवस्था मंदी की प्रवृत्ति का सामना कर रही है. अनिश्चितता के इस परिदृश्य में भारतीय निर्यात पर भारी असर दिख रहा है. इसलिए मेरा मानना है कि इस साल के बजट में वित्त मंत्री जी को कृषि के क्षेत्र में कुछ महत्वपूर्ण निर्णय लेने होंगे
2022-23 के बजट में, पीएम किसान योजना के लिए 65,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, जबकि पीएम फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) के लिए प्रीमियम सब्सिडी 16,000 करोड़ रुपये प्रदान की गई थी. अल्पावधि ऋणों पर ब्याज अनुदान के लिए 19,468.31 करोड़ रुपये आवंटित किए गए. 2023-24 के बजट में इन योजनाओं के आवंटन में किसी कटौती की संभावना मुझे दिखाई नही दे रही है.
कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, 2020 के पीछे एक उद्देश्य एपीएमसी के बाहर कृषि उपज में व्यापार को सुविधाजनक और प्रोत्साहित करना था परंतु किन्ही वजहों से कानून को निरस्त कर दिया गया. उम्मीद है कि 2023-24 के केंद्रीय बजट में अति आवश्यक बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए एपीएमसी को अनुदान देने की योजना की घोषणा की जाएगी.
मत्स्य पालन, मांस और पोल्ट्री के लिए, अधिकांश मंडियों में जहां उनका व्यापार होता है, बुनियादी सुविधाएं को दुरूस्त करने की आवश्यकता हैं. गेहूं, धान और गन्ना के साथ मत्स्य क्षेत्र पर अधिक ध्यान देने के जरूरत है क्योंकि यह न केवल 28 मिलियन लोगों को आजीविका प्रदान करती है बल्की यहाँ ज्यादातर कमजोर समुदायों से किसान आते हैं.
मांस एक और अत्यधिक उपेक्षित क्षेत्र है और ऐसा देखा गया है कि किसानों द्वारा अपने पशुओं की बिक्री से प्राप्त आय में गिरावट आई है. अतः हम उम्मीद करते हैं कि हमारी वित्त मंत्री इन स्थितियों पर ध्यान देंगी और संभवतः इस स्थिति को सुधारने के लिए सरकार द्वारा अतिरिक्त फंड आवंटित करने पर विचार कर सकती हैं.
जलवायु परिवर्तन के कारण हमें ड्रिप सिंचाई, मल्चिंग और जल प्रबंधन तकनीक पर अधिक ध्यान देना होगा, हम मानते हैं कि आने वाले बजट में सरकार इस पर अधिक ध्यान दे सकती है और कम वर्षा वाले क्षेत्र को कवर करने के लिए अतिरिक्त धन आवंटित कर सकती है.
सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्र की विस्तार सेवाओं ने उत्पादन प्रणालियों में प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. पीपीएस, उद्यमशीलता, स्टार्टअप्स को बढ़ावा देकर उन्हें और मजबूत करने की जरूरत है.
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बाजार एकीकरण, आईसीटी एप्लिकेशन, प्रिंट मीडिया बैक अप, ग्रामीण युवाओं के लिए प्रशिक्षण और व्यवसाय के अवसर, एफओ और एफपीसी की अधिक संख्या को बढ़ावा देना, आदि को शामिल करने की संभावना है इसके लिए केंद्रीय और केंद्र प्रायोजित योजनाओं के माध्यम से विस्तार सेवाओं के लिए बजटीय सहायता में वृद्धि की आवश्यकता है. मेरे विचार से इस वर्ष चुनावी वर्ष होने के कारण वे कृषि क्षेत्र को अधिक महत्व दे सकते हैं जैसा कि हम पिछले कुछ वर्षों से देख रहे हैं.
लेखक
डॉ. पी. के. पंत
सीओओ, कृषि जागरण
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