विश्व में भारत की पहचान एक समृद्ध कृषि प्रधान देश के रूप में हैं. हमारे खाने पीने से लेकर रोजमर्रा की बहुत सी वस्तुओं में हम कृषि पर ही निर्भर रहते हैं. लेकिन जनसँख्या के आधार पर हम किसानों को भी वर्गीकृत करते हैं. लेकिन क्या आधार होता होता है किसानों के वर्गीकरण का?
किसानों के वर्गीकरण का आधार
क्षेत्रफल और जनसंख्या के अनुपात को देखते हुए हम सभी किसानों को समान रूप में नहीं देख सकते हैं. समग्र विकास को देखते हुए भूमि की उपलब्धता को आधार मान कर किसानों को अलग-अलग तरह से विकास क्रम में जोड़ा गया है. इन्ही को आधार मान कर सरकार किसानों को लाभ पहुंचने वाली योजनाओं को किसानों तक उपलब्ध करने का काम करती है. किसानों को हम निम्न क्रम में वर्गीकृत करते हैं.
सीमांत या सूक्ष्म किसान –1 हेक्टेयर से कम भूमि रखने वाले किसान
लघु या छोटे किसान– 1 हेक्टेयर से लेकर 2 हेक्टेयर भूमि रखने वाले किसान
अर्द्ध मध्यम किसान– 2 से 4 हेक्टेयर भूमि रखने वाले किसान
मध्यम किसान– 4 से 10 हेक्टेयर भूमि रखने वाले किसान
बृहद या बड़े किसान- 10 हेक्टेयर और उससे अधिक भूमि रखने वाले किसान
किसानों के इस वर्गीकरण में अलग-अलग प्रदेशों में उपलब्ध भूमि के आधार पर भूमि का क्षेत्रफल थोड़ा कम या ज्यादा हो सकता है.
देश की अर्थव्यवस्था में 17 प्रतिशत से ज्यादा का योगदान देने वाले किसान ही होते हैं. जिनके कारण पूरा देश ही नहीं बल्कि विश्व के कई भागों तक भारत का अनाज, फल सब्जियां आदि पहुंचाई जाती हैं. भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि और उससे जुड़े व्यवसाय को देखें तो एक बहुत बड़ा हिस्सा रोजगार के क्षेत्र से जुड़ा हुआ है.
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भारत में औसतन भूमि की बात करें तो प्रति किसान के पास 1.08 हेक्टेयर की भूमि उपलब्धता निर्धारित है.
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