देश के भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने चने की दो उन्नत किस्मों को विकसित किया है. बता दें कि आईसीएआर के अनुसार यह किस्में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश सहित अन्य छह राज्यों में खेती के लिए काफी उपयुक्त है. आईसीएआर और कर्नाटक के रायचुर में स्थित कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय ने अंतर्राष्ट्रीय क्रॉप रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर द सेमी एरिड ट्रॉपिक्स के साथ मिल कर जिनोम हस्तक्षेप के माध्यम से पूसा चिकपी - और सुपर एन्नीगिरी -किस्म के चने के बीज विकसित किए जाते है. चने की इन किस्मों को आंध्रप्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र के किसान इसकी बुआई कर सकते है.
गुजरात और यूपी के बुंदेलखंड
यहां के एक अधिकारी ने कहा कि पूसा चिकपी- 10216 सूखे क्षेत्रों में काफी बेहतर उपज देती है. इसकी औसतन पैदावार 1,477 किलो प्रति हेक्टेयर होती है. देश के मध्य के इलाकों में नमी की उपलब्धता की कमी की स्थिति में यह पूसा -372 की तुलना में 11.9 फीसदी अधिक पैदावार हो रही है. यह 110 दिन में पककर तैयार हो जाती है और इसके 100 बीजों का वजन लगभग 22.2 ग्राम तक होता है. बता दें कि इस नई किस्म में फुसरैरियम, सूखी जड़, सड़न और स्टंट रोगों के प्रति मध्यम प्रतिरोधी क्षमता होती है. इसकी खेती को गुजरात, महाराष्ट्र, गुजरात समेत कई तरह के बुंदेलखंड के इलाके के लिए उपयुक्त माना जाता है.
आंध्र प्रदेश के लिए भी उपयुक्त
चने की दूसरी नई किस्म सुपर एन्नीगेरी-1, को आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र और गुजरात में जारी करने के लिए उपयुक्त पाया गया है. भारत ने दलहन उत्पादन में काफी देर में आत्मनिर्भरता को हासिल किया है. यहां पर सरकार की पहल के कारण दालों का उत्पादन, जुलाई में समाप्त हुए फसल वर्ष 2018-19 के दौरान 232.2 लाख टन होने का अनुमान है.
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