1. Home
  2. मौसम

बदलते मौसम में फसलों की देखभाल कितनी जरूरी? ऐसे करें बीमारियों से रोकथाम

देश के अलग-अलग हिस्सों में वहां की जलवायु और मौसम के हिसाब से खेती करना फायदेमंद रहता है. मौसम के हिसाब से फसलों की देखभाव बहुत जरूरी है. कभी-कभी मौसम में अचानक परिवर्तन (weather change) आ जाता है

हेमन्त वर्मा
Crop damage by climate
Crop damage by climate

देश के अलग-अलग हिस्सों में वहां की जलवायु और मौसम के हिसाब से खेती करना फायदेमंद रहता है. मौसम के हिसाब से फसलों की देखभाव बहुत जरूरी है. कभी-कभी मौसम में अचानक परिवर्तन (weather change) आ जाता है या बिन मौसम बारिश से फसलें प्रभावित होती हैं. ज्यादा बारिश या बिन मौसम बरसात की वजह से मिट्टी में बहुत ज्यादा नमी आ जाती है. अधिक नमी के कारण फसल में कवक जनित रोगों (Fungal disease) एवं जीवाणु जनित रोगों (Bacterial disease) का प्रकोप होने की बहुत अधिक संभावना बढ़ रहती है. नमी की वजह से मिट्टी में कीटों (insect) का प्रकोप भी बहुत अधिक होने लगता है. अधिक बारिश के कारण मिट्टी का कटाव होता है, जिससे मिट्टी में पोषक तत्वों (Nutrient) की कमी हो जाती है. इन सभी कारणों से फसलों में पीलापन, पत्ते मुड़ना, फसल का समय से पहले मुरझाना, फलों का अपरिपक्व अवस्था (Immature stage) में ही गिरना, फलों पर अनियमित आकार के धब्बे (Spot) हो जाना आदि समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं. अतः कुछ कृषि कार्य (Agriculture activities) करके फसलों को होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है.

बारिश प्रभावित क्षेत्रों में किए जाने वाले कृषि कार्य (Agricultural work to be done in rain affected areas)

  • जल निकासी (Drainage system) के उचित प्रबंधन के लिए फसल के किनारे एक फीट गहरी नाली खोद दें ताकि पानी खेत में ज्यादा देर तक ना ठहरे और ज़मीन जल्दी सूख जाए.

  • जहां मटर (Pea), गेहूं (Wheat), जौ (Barley), ईसबगोल (Isabgol), जीरा (Cumin), खेतों में खड़ी सब्जियां हरी अवस्था में है वहां बारिश के बाद आसमान साफ़ होने पर रोगों से बचाव के लिए 30 ग्राम थायोफिनेट मिथाइल 70% WP या 250 मिली एजॉक्सीस्ट्रोबीन 11% + टेबुकोनाजोल 18.3 SC या 300 ग्राम क्लोरोथेलोनिल 75 WP नामक दवा को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें.

  • फसलों में इल्ली (Caterpillar) दिखाई देने पर 100 मिली लैम्ब्डा सायहेलोथ्रिन 4.6% + क्लोरेन्थानिलीप्रोल 9.3% ZC दवा को 200 लीटर पानी में घोल कर प्रति एकड़ छिड़काव करें.

  • फसल कटाई के बाद उपज को खुले खेत में न रखकर किसी सुरक्षित जगह पर रखें.

  • मिर्च (Chilli), टमाटर (Tomato) की फसल में भी जल निकास का उचित प्रबंधन करें ताकि खेत में पानी ज्यादा देर तक न रुक सके.

  • आसमान के साफ़ होने पर टमाटर और मिर्च के खेत में कवकनाशी अथवा फफूंदनाशी का प्रयोग करें. जिसमें 30 ग्राम थायोफिनेट मिथाइल 70% WP या 30 ग्राम मेटालैक्सील 4%+मैंकोजेब 64% WP नाम की दवा को 15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें तथा रस चूसक कीट (Sucking pest) आक्रमण न हो इसके लिए 100 ग्राम थायोमेथोक्सोम 25% WG या 100 ग्राम एसिटामिप्रिड 20% SP प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी के साथ छिड़काव करें.

  • सब्जियों के खेत में भी जल निकास का अच्छा प्रबंधन कर लें और रोग से बचाव के लिए 300 ग्राम थायोफिनेट मिथाइल (Thiophanate methyl) 70% WP या 250 मिली एजॉक्सीस्ट्रोबीन 11% + टेबुकोनाजोल 18.3 SC या 300 ग्राम क्लोरोथेलोनिल 75 WP नामक दवा को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव कर दें.

  • सब्जियों की फसल में इल्ली दिखाई देने पर 100 मिली लैम्ब्डा सायहेलोथ्रिन 4.6% + क्लोरेन्थानिलीप्रोल 9.3% ZC दवा को 200 लीटर पानी में घोल कर प्रति एकड़ खेत में छिड़काव कर दें.

  • मटर, टमाटर या चने की फसल में फल छेदक इल्ली का प्रकोप होने पर रोकथाम के लिए फूल आने से पहले और फली लगने के बाद क्यूनोल्फोस (Quinalphos) 25 EC 300 मिली या एमामेक्टीन बेंजोइट 5 SG की 200 ग्राम मात्रा प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें. 

  • बारिश की वजह से भूमि में अत्यधिक नमी होने के कारण प्याज़ और लहसुन के पौधे मे आर्द्र विगलन (Damping off), कांलर रोट (Collar rot) रोग का प्रकोप होने का डर रहता है. आर्द्र विगलन और कांलर रोट रोग में पौधे गलने लकर नष्ट होने लगता है. इससे बचाव के लिए कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% @ 30 ग्राम/पंप या थायोफिनेट मिथाइल 70% W/W @ 50 ग्राम/पंप (15 लीटर) या मैनकोज़ेब 64% + मेटालैक्सिल 8% WP @ 60 ग्राम/पंप की दर से छिड़काव करें.

  • बदलते मौसम में प्याज़ (Onion) एवं लहसुन (Garlic) की फसल बहुत अधिक प्रभावित होती है, बिन मौसम बरसात की वजह से सबसे पहले प्याज़ एवं लहसुन की फसल में पत्ते पीले दिखाई देते हैं और धीरे-धीरे किनारों से पत्ते सूख जाते हैं. प्याज़ एवं लहसुन की फसल में इसके कारण पत्तियों पर अनियमित धब्बे दिखाई देते हैं. इन सभी समस्याओं के समाधान के लिए कासुगामाइसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP@ 300 ग्राम/एकड़ या थायोफिनेट मिथाइल 70%W/W@ 300 ग्राम/एकड़ खेत में 200 लीटर पानी मिलाकर स्प्रे करना उपयोगी रहता है.

  • मौसम में आए अचानक परिवर्तन से कई बार फसल में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है, और चने की फसल में फूल गिरने की समस्या शुरू हो जाती है. अतः सीवीड एक्सट्रेक्ट @ 400 मिली या ह्यूमिक एसिड (Humic acid) 100 ग्राम प्रति एकड़ की दर से उपयोग करने से फसल में बढ़वार अच्छी होती है.

  • बारिश के बाद मिट्टी में बहुत अधिक नमी होने की वजह से आलू (Potato) और अन्य फसलों में खरपतवार बहुत ज्यादा होने लगती है. जिसके लिए निराई की जा सकती है.

  • अनाज और फसलों को अच्छे से सुखाने के बाद ही भंडारण करें, फसल को कटाई के बाद उसे खुले में ना छोड़े, इससे फसल के बारिश में भीकर बर्बाद होने का डर रहता है.

English Summary: Agricultural activities during the Weather Change Published on: 12 December 2020, 05:46 PM IST

Like this article?

Hey! I am हेमन्त वर्मा. Did you liked this article and have suggestions to improve this article? Mail me your suggestions and feedback.

Share your comments

हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें. कृषि से संबंधित देशभर की सभी लेटेस्ट ख़बरें मेल पर पढ़ने के लिए हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें.

Subscribe Newsletters

Latest feeds

More News