संग्रामपुर (मोतिहारी) के यतीन्द्र कश्यप हेचरी और मछली पालन से साल में 80 से 90 लाख रुपए की इनकम कर एरिया किसानों और बेरोजगारों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बने हुए हैं. इससे वे अच्छी आय कर रहे हैं. कश्यप मछली पालन को एक बिजनेस मान रहे हैं. उन्होंने बताया कि मछली पालन उनका पुस्तैनी पेशा है. कई पीढ़ियों से उनके यहां ये बिजनेस होता आया है. लेकिन वे इस पेशे में वर्ष 2012 में आए और मछली पालन के साथ हेचरी को टैग किया. हालांकि, शुरू में उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. लेकिन दो साल की मशक्कत के बाद आज उनकी इनकम अच्छी हो रही है.
सरकारी तौर सुविधा उपलब्ध
सरकार के द्वारा हेचरी और तालाब पर 50 प्रतिशत अनुदान की व्यवस्था की गई है. एक हेचरी लगाने में 12 से 15 लाख का खर्च आता है. लेकिन व्यवसाय चल जाने पर आमदनी इतनी अधिक होती है कि लोग खुद यह जोखिम उठा लेते हैं। शुरू के दो साल काफी सावधानी से निकालने पड़ते हैं.
5 साल पहले शुरू किया था बिजनेस
यतींद्र ने बताया कि उन्होंने पांच साल पहले हेचरी का बिजनेस शुरू किया था. जिसमें दो साल तक जानकारी के अभाव में उन्हें काफी नुकसान उठाना पड़ा. कई स्पेशलिस्ट से मिलकर इस बिजनेस के बारीकियों को जानने के बाद आज उनकी इनकम अच्छी है. उनकी हेचरी से एक हैच में जितना मछली का बच्चा पैदा होता है उसका बाजार मूल्य तीन से पांच लाख रुपया होता है. जबकि महीने में वैसे पांच हैच कराए जाते हैं जो आमदनी के रूप में लगभग 20 लाख रुपया देता है. पूरे साल में इसकी डिमांड बाजार में छह महीने तक रहती है. वे 25 एकड़ में फैले तालाबों से 50 टन मछली पालन करते हैं. जो बाजार के हिसाब से लगभग 75 लाख रुपए इनकम कराता है.
इनसे प्रेरित होकर इन्होंने शुरू किया मछली पालन
हेचरी और मछली पालन से होने वाले वाले लाभ को देखकर क्षेत्र के कई किसानों ने अपनी जमीन पर तालाब खुदवाकर मछली पालन शुरू किया और आज वे काफी खुशहाल हैं. इस बिजनेस को करने वालों की मानें तो यहां दस हजार एकड़ से भी अधिक भूमि मछली पालन के लिए उपयुक्त है. यदि सरकार यहां किसानों को सहूलियत और बढ़ावा दे तो पूरे बिहार में सबसे ज्यादा मछली का उत्पादन यहां हो सकता है. लेकिन सरकारी कर्मियों की लापरवाही और विभागीय उदासीनता के कारण लोग इस बिजनेस में आने में दिलचस्पी कम ले रहे हैं.
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