संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन के अनुसार भारत में हर साल 14 डॉलर बिलियन का भोजन बर्बाद होता है. 194 मिलियन भारतीय हर साल भूखमरी का शिकार होते हैं. कुछ भारतीयों को यह अहसास होने लगा है कि जब भी हम खाना फेंकते हैं जिसे हम जरूरतमंद को दे सकते हैं तो हम बहुत गलत करते हैं. वहीं पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले के दमदम कैंटानोमेंट में एक फूड डिलीवरी एजेंट हर दिन फुटपाथ पर गुजर बसर करने वाले मासूम बच्चों का हर दिन पेट भर रहा है. इन गरीब बच्चों के बीच रोल काकू के नाम से मशहूर पथिकृत साहा दुनिया को सीखा रहे है कि अच्छाई का एक छोटा सा कदम समाज में एक बड़ा बदलाव ला सकता है.
नहीं होता खाना नसीब
ऐसे हजारों बच्चे है जिन्हें एक वक्त का खाना भी नसीब नहीं होता है यह बच्चे या तो कुपोषित होते हैं या फिर अपनी भूख को मिटाने के लिए नशे का शिकार हो जाते हैं. यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि यह दोनों ही बाते न हो। वो कहते हैं कि वह काफी खुदकिस्मत हैं कि मुझे काम के जरिए इन्हें खाना खिलाने का मौका मिला। उन्होंने बताया कि वह दम-दम कैंटोनमेंट रेलवे स्टेशन से गुजर रहे थे तब पोल्तु से मुलाकात हुई वह उनसे पैसे मांग रहा था. उस 6 साल के बच्चे को कुछ देर तक अनदेखा करने की कोशिश की गई. लेकिन वह यह कहता रहा कि उसकी मां उसको घर से निकाल देगी अगर वह आगे कुछ पैसे घर लेकर नहीं गया तो. इस घटना ने उन्हें गरीबों की दुर्दशा के बारे में सोचने पर मजबूर किया खासकर कि गरीब बच्चों की गरीबी के बारें में. इस घटना के बाद से ही उन्होंने बचे हुए खानों को बच्चों में बांटना शुरू किया गया था.
यह मिलता है खाने में
इसमें स्वादिष्ट बिरयानी, चायनीज खाना, रोल्स से लेकर रोटी, फ्राइड राइस आदि तक सभी व्यंजन लगभग 30 गरीब बच्चों में बांटे जाते हैं. साथ ही अब हर दिन बच्चों को खाना मिलता है. पथिकृत के प्रयासों के चलते उनके और 5 दोस्तों ने जरूरतमंदों को खाना बांटना शुरू किया है. जब भी कोई खाना का ऑर्डर कैंसिल होता है तो वह पथिकृत को खाना दे देते है ताकि वह उसको बच्चों तक पहुंचा सकें. पथिकृत बच्चों की पढ़ाई के लिए अनौपाचारिक तौर पर कक्षाएं भी चला रहे हैं. इन बच्चों की मदद के लिए पथिकृत ने हेल्प फाउंडेशन नाम से संस्था शुरू की है और रजिस्टर भी करवाया है. कहते हैं कि नीयत सच्ची हो तो आगे बढ़ाने के रास्ते खुद ब खुद खुल जाते है और यहां भी कुछ ऐसा ही हुआ है.
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