आज हम आपको रांची के एक ऐसे दम्पत्ति से मिलाते हैं जिसे लोग स्मार्ट किसान के नाम से जानते हैं. हम बात कर रहे हैं बीरेंद्र कुमार और उनकी पत्नी यमुना कुमारी की. आज के समय में नई तक़नीकों के आगमन ने हर क्षेत्र में विकास के नये-नये आयाम गढ़े हैं. कृषि क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है.
झारखंड की राजधानी रांची के कुदारखो गांव के रहने वाले युवा किसान बीरेंद्र कुमार आधुनिक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर केला और स्ट्रॉबेरी का समेत कई व्यावसायिक फ़सलों का जमकर उत्पादन कर रहे हैं. इन फ़सलों के उत्पादन से बीरेंद्र ख़ूब मुनाफ़ा भी कमा रहे हैं. वो सोलर एनर्जी, ड्रिप इरिगेशन, पॉलीहाउस का उपयोग कर खेती कर रहे हैं. युवा किसान बीरेंद्र कुमार की पत्नी यमुना कुमारी जो कि उच्च शिक्षा हासिल कर रही हैं. वो खेती में अपने पति का हर क़दम साथ देती हैं.
व्यावसायिक खेती से परिवार की आर्थिक हालत पहले के मुक़ाबले अब काफ़ी बेहतर है. पूरा इलाक़ा बीरेंद्र के परिवार की तारीफ़ करता है. लोग इस परिवार को स्मार्ट किसान परिवार के नाम से जानते हैं.
पहले होती थी परम्परागत खेती
स्मार्ट किसान बीरेंद्र कुमार का परिवार पहले से ही कृषि के पेशे से जुड़ा है. पहले परिवार पारम्परिक खेती कर गेहूं, धान, आलू, प्याज़ की पैदावार करता था. बीरेंद्र की मां बताती हैं कि बेटे की समझ से जब हमने आधुनिक खेती का रुख़ किया जिससे लाभ ही लाभ हो रहा है. बीरेंद्र के परिवार की माली हालत अब अच्छी है और इलाक़े में इस परिवार की पहचान भी है.
आधुनिक खेती और पारम्परिक खेती में फ़र्क़
आजकल कृषि से जुड़े लोग पारम्परिक खेती से इतर आधुनिक खेती की ओर रुख़ कर रहे हैं. मॉडर्न टेक्नोलॉजी ने खेती-किसानी में कई अहम और निर्णायक बदलाव किए हैं. चलिए समझते हैं कि इन दोनों कृषि पद्धतियों में अंतर क्या है?
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जहां आधुनिक या मॉडर्न खेती अत्याधुनिक मशीनों से की जाती है वहीं पारम्परिक खेती में आज भी हल और बैल का इस्तेमाल होता है, इसीलिए खेती की यह विधि स्लो मानी जाती है.
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पारम्परिक खेती का फ़ोकस जहां जैविक खेती की ओर होता है वहीं आधुनिक खेती में जैविक खेती को कम तरजीह दी जाती है.
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आधुनिक खेती में रासायनिक कैमिकल्स का इस्तेमाल बहुत होता है इसलिए ये सेहत के नज़रिये से अच्छी नहीं मानी जाती है, दूसरी ओर पारम्परिक खेती स्वास्थ्य के लिए अच्छी मानी जाती है.
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- आधुनिक खेती में सिंचाई के लिए कई तरीक़ों का इस्तेमाल होता है जैसे ड्रिप इरिगेशन, नलकूप और ट्यूबवेल के माध्यम से सिंचाई, जबकि पारम्परिक खेती में सिंचाई के लिए आज भी कुओं और तालाबों के भरोसे रहना पड़ता है.
- पारम्परिक खेती, फ़सल उत्पादन की एक स्लो प्रक्रिया है जबकि मॉडर्न या आधुनिक खेती तीव्र है. जिससे इसमें उत्पादन भी बढ़िया होता है.
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