Success Story of Punjab Progressive Farmer Sitinu Jain: पंजाब के अबोहर जिले के रहने वाले प्रगतिशील किसान स्टिनू जैन ने किन्नू की खेती में अपनी एक अलग पहचान बनाई है. खेती से गहरा लगाव और मेहनत के प्रति उनका समर्पण उन्हें अन्य किसानों से अलग बनाता है. छह साल पहले जब उन्होंने खेती शुरू की थी, तब उनके पास केवल सामान्य ज्ञान और परंपरागत तकनीकें थीं. लेकिन आज, उन्होंने अपनी सोच, अनुभव और आधुनिक कृषि तकनीकों के साथ किन्नू की खेती में कई मील के पत्थर स्थापित किए हैं.
वर्तमान में, वह 20 एकड़ जमीन पर खेती करते हैं, जिसमें से 8 एकड़ में उन्होंने विशेष रूप से किन्नू की खेती की है. उनकी खेती की पद्धतियों और नवाचारों ने न केवल उनकी आय बढ़ाई है, बल्कि उन्हें अपने क्षेत्र में एक प्रेरणा स्रोत बना दिया है. ऐसे में आइए प्रगतिशील किसान स्टिनू जैन की सफलता की कहानी के बारे में विस्तार से जानते हैं-
किन्नू की खेती के लिए उपयुक्त परिस्थितियां
कृषि जागरण से विशेष बातचीत में प्रगतिशील किसान स्टिनू जैन ने बताया कि किन्नू की खेती के लिए मिट्टी का पीएच स्तर 6.6 होना चाहिए. यह फसल 35 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान में बेहतर उगती है. इससे अधिक तापमान होने पर फसल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.
साथ ही, किन्नू की खेती उन क्षेत्रों में करना चाहिए जहां भूजल स्तर 15-20 फीट नीचे हो. वह अगस्त और सितंबर के महीने को किन्नू के पौधरोपण के लिए सबसे उपयुक्त मानते हैं. उनके अनुसार, पौधरोपण से पहले गड्ढों को खुला छोड़ने से सूर्य की तपिश और हवा मिट्टी में मौजूद हानिकारक कीट काफी हद तक खत्म हो जाते हैं.
किन्नू की बुवाई और प्रबंधन तकनीक
प्रगतिशील किसान स्टिनू जैन के बाग में पौधों के बीच उचित दूरी रखी जाती है. उनके अनुसार, 20x20 फीट की दूरी पर पौधे लगाने से बाग का बेहतर प्रबंधन होता है. इसके अलावा, उन्होंने अपने तीन एकड़ में हाई डेंसिटी खेती का प्रयोग किया है, जिसमें पौधों के बीच 20x10 फीट की दूरी रखी गई है. यह बाग नया है और आने वाले समय में उन्हें इससे बेहतर उत्पादन की उम्मीद है.
जैविक खाद और पोषण तकनीक
कृषि में जैविक खाद का महत्व समझते हुए, स्टिनू जैन अपने बाग में गोबर खाद का उपयोग करते हैं. हालांकि, सड़े हुए गोबर खाद को तैयार होने में समय लगता है और कच्ची गोबर खाद का उपयोग करने से दीमक और अन्य समस्याएं उत्पन्न होती हैं. इसे हल करने के लिए, वह ज़ायडेक्स कंपनी के गोधन का इस्तेमाल करते हैं.
यह उत्पाद गोबर खाद को महज 40-50 दिनों में पका देता है. फिर, वह गोबर खाद में जायटोनिक-एम को मिलाकर खेत में उपयोग करते हैं. यह खाद मिलाने के बाद प्रति एकड़ 4 टन की जगह पर केवल 1 टन गोबर खाद को डालना पड़ता है. इसके साथ ही, उपज में अच्छी वृद्धि होती है और फल का आकार और गुणवत्ता भी बेहतर होती है. ज़ायडेक्स कंपनी के उत्पादों का इस्तेमाल करने से उन्हें बहुत अच्छा लाभ मिल रहा है.
छिटकाव विधि से खाद डालने की तकनीक
स्टिनू जैन ने छिटकाव विधि से खाद डालने का तरीका अपनाया है. उनका मानना है कि खाद केवल पौधों की जड़ों तक सीमित न होकर उस पूरी जमीन में डाली जानी चाहिए जहां तक जड़ें फैली होती हैं. इससे पौधे का बेहतर विकास होता है और उत्पादन में वृद्धि होती है.
सिंचाई और जल प्रबंधन
किन्नू की खेती में जल प्रबंधन का विशेष महत्व है. स्टिनू अपने खेतों में फ्लड इरिगेशन तकनीक का इस्तेमाल करते हैं. वह सुनिश्चित करते हैं कि पानी बाग में ज्यादा देर तक न ठहरे, क्योंकि यह फसल के लिए हानिकारक हो सकता है.
फलों की गुणवत्ता और उत्पादन
किन्नू के पौधे तीसरे साल से फल देना शुरू करते हैं, लेकिन स्टिनू सलाह देते हैं कि चौथे साल से ही फलों की कटाई शुरू की जानी चाहिए. इससे पौधों का जीवनकाल, विकास और फल की गुणवत्ता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. शुरुआत में प्रति पेड़ 30-35 किलो फल प्राप्त होता है, लेकिन छह साल बाद यह बढ़कर 2-2.5 क्विंटल तक हो जाता है. पौधे का जीवनकाल 35-40 साल का होता है.
मिट्टी की उर्वरता और सॉइल टेस्टिंग
स्टिनू जैन नियमित रूप से सॉइल टेस्टिंग कराते हैं. इससे उन्हें यह समझने में मदद मिलती है कि उनकी मिट्टी में किन पोषक तत्वों की कमी है और इसे कैसे पूरा किया जा सकता है. यह वैज्ञानिक दृष्टिकोण उनके बाग के उत्पादकता को बढ़ाने में सहायक है.
सहफसली खेती का लाभ
अपने बाग में सहफसली खेती करते हुए, स्टिनू जैन सरसों, मूंग और अन्य छोटी फसलें उगाते हैं. यह न केवल मिट्टी की उर्वरता बनाए रखता है, बल्कि अतिरिक्त आय का स्रोत भी बनता है.
लागत और मुनाफा
किन्नू की खेती में प्रति एकड़ लगभग 40,000 रुपये का खर्च आता है. एक एकड़ में लगभग 150-170 क्विंटल तक उत्पादन होता है. उच्च गुणवत्ता और बड़े पैमाने पर उत्पादन के कारण स्टिनू को अच्छा मुनाफा होता है.
नवाचार और कीट प्रबंधन
स्टिनू अपने बाग में अनावश्यक पौधों को रोटावेटर से जुताई करके हरी खाद में बदल देते हैं. इसके अलावा, वह फ्रूट फ्लाई जैसे कीटों से फसलों की रक्षा के लिए विशेष तकनीक अपनाते हैं.
आधुनिक तकनीक से किसान कर सकते हैं वृद्धि
स्टिनू जैन का मानना है कि परंपरागत खेती के साथ आधुनिक तकनीकों और नवाचारों को अपनाकर किसान अपनी आमदनी में वृद्धि कर सकते हैं. उनकी यह सफलता कहानी अन्य किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत है. उनकी इस यात्रा से यह स्पष्ट है कि खेती को न केवल लाभदायक बनाया जा सकता है, बल्कि इसे एक सफल व्यवसाय के रूप में स्थापित भी किया जा सकता है.
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