सूट-बूट में नजर आ रहे ये व्यक्ति न तो कारोबारी है और न ही सरकारी नौकर. कच्चे झोपड़े से इंजीनियरिंग कॉलेज और फिर वहां से खेती-किसानी के जरिये किसान समाज को गौरान्वित करने वाला यह व्यक्ति है - योगेन्द्र कौशिक. जो वर्ष 1971 में मैकेनिकल इंजीनियरिंग की उपाधि लेने के बाद नौकरी के ढेरों अवसरों को ठुकराता हुआ वापिस गांव लौट गया और जुट गया खेती-किसानी से जुड़े अपने सपनों को पंख देने के लिए. आपको बता दें कि खेती-किसानी के सफर में किसान योगेन्द्र ने वर्ष 2013 में रिकॉर्ड गेहूं का उत्पादन करके मध्यप्रदेश को राष्ट्रीय कृषि कर्मण पुरस्कार का गौरव दिलाया है. साथ ही, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली से कृषि अध्येता पुरस्कार भी हासिल किया है.
उज्जैन जिले के अजदावड़ा गांव के किसान योगेन्द्र बताते हैं कि परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत होने से पढ़ाई के दौरान आर्थिक अभाव का सामना नहीं करना पड़ा. गांव से निकलना और फिर मैकेनिकल इंजीनियरिंग के लिए शहर पहुंचना. पढ़ाई के दौरान ही मैने तय कर लिया था कि खेती-किसानी में ही अपनी अलग पहचान बनाऊंगा और शिक्षा के चलते इस मुकाम तक पहुंच गया. डिग्री पूरा करने के बाद गांव लौटा और परम्परागत फसलों के उत्पादन से खेती-किसानी का सफर शुरू किया.
वर्ष 2005 में कृषि विज्ञान केन्द्र , उज्जैन के वैज्ञानिको से सम्पर्क होने के बाद तकनीक आधारित खेती का श्रीगणेश हुआ. कृषि वैज्ञानिको के मार्गदर्शन, मेहनत और नवीन कृषि तकनीकी के प्रयोग से परम्परागत फसलो के उत्पादन में बढ़ोत्तरी नजर आने लगी. फसलो के बढे हुए उत्पादन ने हौंसले को पंख दिए. खेती करते हुए ऐसा भी मुकाम आया कि वर्ष 2013 में मध्यप्रदेश में मैने रिकॉर्ड गेहूं का उत्पादन कर दिखाया.
गेहूं किस्म एचआई-8663(पोषण) का 50 किलोग्राम बीज की बुवाई 0.4 हैक्टयर जमीन में की. फसल कटाई के समय गेहूं का उत्पादन 95.32 क्विटंल प्रति हैक्टयर रहा. रिकॉर्ड गेहूं उत्पादन के चलते मध्यप्रदेश सरकार के साथ मुझे भी राष्ट्रीय कृषि कर्मण अवॉर्ड से सम्मानित किया गया.
आपको बता दें कि किसान कौशिक के पास कुल 9.5 एकड़ कृषि भूमि है. इसमें गेहूं, चना, मसूर, अरहर, सोयाबीन, मक्का, उड़द, मूंग सहित दूसरी फसलों का उत्पादन कर लेते है. इन फसलो से सालाना 7-8 लाख रूपये की आय हो रही है.
अमरूद-अनार का बगीचा
उन्होंने बताया कि परम्परागत फसलों में सफलता मिलने के बाद स्थाई आय के लिए एक एकड़ कृषि भूमि में अमरूद-अनार का बगीचा लगाया है. पिछले साल से ही बगीचे से उत्पादन मिलना शुरू हुआ है. अमरूद-अनार की बिक्री से एक से सवा लाख रूपये की आय मुझे मिली. परम्परागत फसलों और बगीचे में सिंचाई के लिए ड्रिप का उपयोग कर रहा हॅू. आपको बता दें कि सिंचाई के लिए दो ट्यूबवैल और खेत तलाई(80 गुना 80 गुना 3 मी.) किसान कौशिक के पास है.
दुग्ध उत्पादन लाभकारी
उन्होंने बताया कि पशुधन में मेरे पास 4 भैंस और 5 गाय है. इनसे प्रतिदिन 44-45 लीटर दुग्ध का उत्पादन मिलता है. दुग्ध का विपणन क्षेत्र के मावा कोरोबारियों को 35 रूपये प्रति लीटर की दर से कर रहा हॅू. इससे प्रतिमाह 20 हजार रूपये का शुद्ध मुनाफा मिल रहा है. शेष राशि पशुआहार प्रबंधन पर खर्च हो जाती है. पशुओं का आवास और चारा भंड़ारण वैज्ञानिक तरीके से किया हुआ है. समय-समय पर पशु चिकित्सक से पशु स्वास्थ्य की जांच करवाता हूँ. वर्ष भर हरे चारे का उत्पादन लेता हॅू. ताकि, दुग्ध उत्पादन में गिरावट नहीं आए.
प्याज-लहसुन भंड़ार
उन्होंने बताया कि 1 हैक्टयर क्षेत्र में प्याज-लहसुन की फसल लेता हॅू. दोनो ही फसले किसान के लिए कैशक्रॉप है. बेहतर भाव लेने के लिए वैज्ञानिक तकनीक से भंड़ारण संरचना तैयार की हुई है. इससे बाजार भाव कम रहने की स्थिति में फसल को भंड़ारित कर देता हॅू.
पीयूष शर्मा
कृषि पत्रकार, जयपुर, राजस्थान
मो. 80588-35320
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