Dairy Farming: बिहार के गया जिले के खरखुरा निवासी किसान सुबोध कुमार सिंह ने बी०ए०एल० एल० बी० पास होने के बावजूद सरकारी रेलवे की नौकरी को छोड़ अपनी एक अलग पहचान बनाने के उद्देश्य से पशुपालन व्यवसाय को चुना. किसान को इस बात का कोई पछतावा नहीं है कि उन्होंने सरकारी नौकरी के सुरक्षित अवसर को छोड़कर को पशुपालन व्यवसाय को आजीविका के रूप में अपनाया. जीवन के इस मोड़ पर उन्होंने खुद को डेयरी व्यवसाय में मजबूती से स्थापित किया. 1998 में उन्होंने तीन गायों के साथ डेयरी फार्मिंग शुरू की. किसान को डेयरी फार्मिंग का कोई पिछला अनुभव नहीं था, सिवाय इसके कि उनके परिवार के सदस्यों की दूध की आवश्यकता को पूरा करने के लिए कुछ गायों का पालना किया जाता था.
3 गायों के साथ बिजनेस की शुरूआत
डेयरी फार्मिंग के दौरान अपने परिवार की तीन गायों के साथ डेयरी बिजनेस की शुरूआत की. किसान को अनेक कठिनाइओं का सामना करना पड़ा जिनमें तकनीकी एवं व्यवसायिक ज्ञान की कमी, आर्थिक रूप से मजबूत नहीं होना, उन्नत कृत्रिम गर्भाधान करने वाले का अभाव था. कृषि विज्ञान केंद्र (KVK ), मानपुर द्वारा सिंह को प्रदान किए गए डेयरी फार्मिंग में प्रशिक्षण के अवसर ने डेयरी फार्मिंग को आजीविका व्यवसाय के रूप में शुरू करने के उनके निर्णय में मुख्य रूप से योगदान दिया. कृषि विज्ञान केंद्र से प्रशिक्षण उपरांत डेयरी व्यवसाय शुरू करने के बारे में दृढ़ता से उन्होंने निर्णय लिया.
कृषि विज्ञान केंद्र से मिली सहायता
कृषि विज्ञान केंद्र ने किसान को इस बिजनेस को शुरू करने में आवश्यक तकनीकी और वैज्ञानिक सहायता प्रदान की. राज्य सरकार से उन्हें 20 गायों के लिए लगभग 14 लाख रुपये का लोन प्राप्त हुआ एवं आर्थिक अभाव में कमी हुई. इनके द्वारा डेयरी में पशुओं को शुद्ध एवं गुणवत्ता युक्त दाना उपलब्ध कराने के लिए एक चक्की भी लगाई गई है, जिससे मकई का दर्रा, चना, मुंग, मसूर और अरहर जैसे अनाजों को पीस कर उसका मिश्रण स्वयं तैयार कर सकें.
गायों और भैंसों की संख्या में वृद्धि
किसान सुबोध कुमार सिंह अपने पशुओं के फार्म में सफाई की विशेष व्यवस्था रखते हैं, जिससे पशुओं में बिमारियां होने की संभावना कम से कम हो. डेयरी के माध्यम से तैयार दूध एवं पनीर की आपूर्ति-खाने की दुकानों, होटलों और रेस्तरां में करते हैं और दूध को गुणवत्ता और आवश्यक तापमान को बनाए रखने के लिए वह मोटी गेज धातु से बने कंटेनर का उपयोग करते हैं. किसान ने अपनी कमाई को आगे बढ़ाते हुए गायों और भैंसों की संख्या में वृद्धि की और डेयरी फार्म के वैज्ञानिक प्रबंधन के लिए आवश्यक मशीनों और उपकरणों की खरीदा.
इन नस्लें के मवेशियों का करते हैं पालन
मवेशियों में किसान सुबोध कुमार सिंह के पास एचएफ क्रॉस, जर्सी क्रॉस, साहीवाल और रेड सीधी नस्लें शामिल हैं. अपनी कम उत्पादक गायों को उन्नत करने के लिए उनके पास एचएफ नस्ल का एक प्रजनन सांड भी है. सिंह के डेयरी फार्म में कृत्रिम गर्भाधान की सुविधा और जरूरत पड़ने पर मवेशियों को प्राथमिक चिकित्सा प्रदान करने की सुविधा है. अपने मवेशी स्टॉक की वंशावली को बनाए रखना उनके लिए उपयोगी साबित हुई है. डेयरी गतिविधियों के समुचित प्रबंधन के लिए उन्होंने अपनी डेयरी में सीसीटीवी कैमरे लगाए हुए है.
वर्तमान में हैं 100 गाय और 25 भैसें
किसान के डेयरी फार्म में सेंट्रल मिल्किंग, चिलर मशीन और फॉगिंग मशीन रखी है. फार्म में मवेशियों के स्टॉक के लिए संतुलित चारा तैयार करने में मशीनों के उपयोग से उन्हें दूध की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद मिलती है और इससे उनकी लाभप्रदता में वृद्धि हुई है. जानकारी के अनुसार, वर्तमान में किसान सुबोध कुमार सिंह के पास 100 गाय और 25 भैस है, जिनसे प्रतिदिन औसतन 800 से 900 लीटर दूध का उत्पादन होता है. डेयरी में उत्पादित कुल दूध में से लगभग 250 लीटर उनकी डेयरी से आठ किलोमीटर के दायरे में स्थित गया शहर के लगभग 150 घरों में आपूर्ति किया जाता है. बचा हुआ दूध बड़ी मात्रा में फूड आउटलेट्स, होटलों और रेस्टोरेंट्स में सप्लाई किया जाता है. अपनी डेयरी में लगभग 30 किलोग्राम पनीर का उत्पादन भी करते हैं.
डेयरी बिजनेस से सालाना 70 लाख की आय
किसान सुबोध कुमार सिंह ने अपनी डेयरी फार्म से 14 लोगों को स्थायी एवं अंशकालीन रोजगार उपलब्ध कराया है. औसतन डेयरी व्यवसाय से प्रति वर्ष 70 लाख रुपये की सकल शुद्ध आय प्राप्त करते हैं. भविष्य में मिल्क चिलिंग प्लांट स्थापित करने के अलावा अपनी डेयरी के ब्रांड नाम के साथ दुग्ध उत्पाद लॉन्च करने का विचार है. डेयरी फार्मिंग के क्षेत्र में उनके समर्पण और कड़ी मेहनत के लिए 2011 में राष्ट्रीय डेयरी पुरस्कार मिला. उनकी मेहनत को बिहार कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) ने भी सराहा है. उन्हें बीएयू, सबौर (भागलपुर) में आयोजित किसान मेले में पूर्व में सर्वश्रेष्ठ किसान का पुरस्कार दिया गया.
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