कोरोना काल के बाद से हमारे ज़िंदगी में बहुत से बदलाव आए हैं. ख़ासकर रहन-सहन और रोज़गार की बात करें, तो इसमें काफी असर पड़ा है. लाखों की संख्या में बेरोजगार हुए लोगों ने खुद को एक बार फिर संभालते हुए कुछ नया करने का विचार किया है.
वहीं, कुछ लोगों ने इस खाली समय में कुछ ऐसा कर डाला है, जो कभी किसी ने सोचा भी नहीं होगा. कोरोना काल में या यूँ कहें, तो कोरोना काल के बाद एक चीज़ जो उभर कर हम सभी के सामने आई वो है देश के युवाओं का कृषि के क्षेत्र में दिलचस्पी.
अपनी रोज़ की ज़िंदगी और दिनचर्या से परेशान युवा जब कोरोना काल में घर बैठा तो उसने कुछ अलग हटकर करने की ठान ली. ऐसे में कृषि यानि खेती-बाड़ी भी उनकी पसंद में से एक था. कई लोगों ने खाली और फुर्सत भरे समय में घरों में बागवानी की. इसके चलते कृषि वर्तमान समय में रोजगार का सबसे बेहतर विकल्प है. यही वजह है कि काफी संख्या में युवा भी अब खेती से जुड़ रहे हैं और आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करके खेती कर रहे हैं.
उत्तर प्रदेश के जालौन जिल के रहने वाले सत्येंद्र सिंह भी एक ऐसे ही किसान हैं, जो एक ऑयल एंड गैस की इटालियन कंपनी में इंजीनियर के पद पर नौकरी कर रहे थे. उनकी पोस्टिंग इराक में थी, लेकिन लॉकडाउन के दौरान वो घर वापस आ गये. भारत में भी उन्हें कई कंपनियों से ऑफर मिले, लेकिन उन्होंने अपनी राह चुन ली थी और खेती करने का मन बना लिया था. गावं में आकर वो उन्नत नौकरी छोड़कर अपने गांव में आकर उन्नत तकनीक से खेती कर रहे हैं.
एक साल पहले उठाया था ये कदम
सत्येंद्र सिंह ने खुद की इस अनोखी सफलता को बताते हुए कहा कि कोरोना के कारण वो जब इराक में थे तब एक छोटे से हॉल में रहते थे. सिर्फ खाना और जिम जाना बस यही उनका काम था. इस दौरान उन्होंने सोचा कि यह लंबा चलेगा, इसके बाद वो वापस आ गये. क्योंकि अभी भी वहां पर सारा कार्य रुका हुआ है. इराक में रहने के दौरान उन्होंने यूट्यूब पर उन्नत खेती के बारे में जानकारी हासिल की. इसके बाद उन्होंने अपने गांव आकर खेती की शुरुआत की. सत्येंद्र सिंह ने जालौन के पिछले इलाके में खेती शुरू की, वहां पर उनके नाना जी की जमीन है. उन्होंने कहा कि स्थानीय किसानों को प्रोत्साहित करना यहां पर खेती करने का उनका प्रमुख उद्देश्य है.
शुरू की मल्टी लेयर फार्मिंग
सत्येंद्र सिंह ने बिना कुछ सोचे मंजिल की ओर निकल पड़े थे. पहली बार में ही रिस्क लेते हुए मल्टी लेयर फार्मिंग की शुरुआत की. हालांकि, पहली बार में ही इतने बड़े प्रोजेक्ट के साथ काम करना चुनौतियों भरा था. जिस बारे में उन्होंने बताते हुए कहा की शुरुआत में थोड़ा चुनौती भरा था, लेकिन उन्होंने इसे किया और लगभग 70 फीसदी तक सफलता हासिल कर ली है. शुरुआत में थोड़ी परेशानी भी हुई क्योंकि उनके पास इस काम को करने के लिए कुशल मजदूर नहीं थे. इसके बाद उन्होंने खुद से मजदूरों के प्रशिक्षित किया. आज उनकी वजह से वो सभी बेहतर कार्य कर रहे हैं. फिलहाल वो देसी मूंग और अरहर की खेती कर रहे हैं. इसके बाद वो केले की खेती करने की योजना बना रहे हैं.
जल्द शुरू करेंगे अदरक और हल्दी की खेती
सत्येंद्र सिंह जालौन में अपने इलाके हल्दी और अदरक की खेती करने वाले पहले किसान हैं. उन्होंने कहा कि उनके इलाके में हल्दी और अदरक की खेती लोग नहीं करते हैं पर उन्होंने इसी खेती से इसकी शुरुआत की है. दोनों की पैदावार अच्छी हुई है. देसी मूंग की कटाई एक महीने बाद करेंगे. इसके बाद उसी खेत में खरबूज औऱ तरबूज की खेती करेंगे. उन्होंने कहा कि लॉकडाउन के दौरान धनिया की उपज अच्छी हुई थी पर अच्छे दाम नहीं मिल पायी. पचास डिसमिल जमीन में सात से आठ टन धनिया का उत्पादन हुआ था.
आज के समय में खेती को बिजनेस समझने की जरुरत है.
इस बदलते समय में ये जरुरी है समझना की खेती करने वाला आदमी गरीब नहीं होता. ये सच है की जब भी बात किसानों की आती है तो हम उन्हें गरीब मान कर कर या तो तरस कहते हैं या फिर घृणा वाली नजरों से देखते हैं. पर ऐसा बिलकुल नहीं है. उन्हें समझना होगा की खेती करना आसान नहीं होता है, क्योंकि यह एक आम मान्यता है कि जो लोग कुछ नहीं कर सकते हैं वो खेती कर लेंगे, पर सच्चाई यह है कि जो कुछ नहीं कर सकते हैं उनसे खेती तो बिल्कुल नहीं हो सकती है. उन्होंने बताया कि उन्होंने खेती करने के लिए मिनी ट्रैक्टर लिया है. हालांकि उनके घर में पहले से ही ट्रैक्टर है पर मल्टीक्रॉपिंग करने में मिनी ट्रैक्टर काफी लाभदायक साबित होती है. इसके अलावा आस-पास के किसान भी मिनी ट्रैक्टर का इस्तेमाल करने के लिए जाते हैं.
मल्टीलेयर फार्मिंग के फायदे
सत्येंद्र बताते हैं कि मल्टीलेयर फार्मिंग में फायदा काफी होता है. क्योंकि इसमें एक बार सेटअप लग जाने के बाद ज्यादा मेहनत और समय देने की जरूरत नहीं पड़ती है आसानी से समय रहते काम हो जाता है. इतना ही नहीं इसे रूटीन टाइम ती तरह से भी किया जा सकता है. उन्होंने बताया कि मल्टीलेयर फार्मिंग को ऑर्गेनिक तरीके से ही करना चाहिए क्योंकि इस खेती में कई ऐसे पौधे होते हैं जिन्हें कुछ रासायनिक उर्रवरक सूट नहीं करते हैं. जबकि ऑर्गेनिक उर्वरक सभी पौधों में एक समाम प्रभाव डालते हैं. उन्होंने कहा कि खेती में फायदा नुकसान होता रहता है, पर तीन साल का एक टर्म होता है, जो आपकी सभी नुकसान की भारपाई कर देता है.
मटर खेती के लिए देश भर में मशहूर है जालौन
उत्तर प्रदेश के जालौन जिला का जलवा चारो तरफ है. मटर की खेती के लिए देश भर में मशहूर जालौन को सब जानने लगे हैं. सत्येंद्र सिंह बताते हैं कि यहां पर प्रति एकड़ मटर की पैदावार सबसे अधिक होती है. जलौन और पंजाब के बीच सबसे पहले मटर को मंडी में लाने की होड़ रहती है. जालौन से देश भर में मटर सप्लाई की जाती है, इसके अलावा मटर की खेती के लिए भी देश भर मे बीज यहीं से भेजे जाते हैं. इसमें कमाई भी अच्छी होती है.
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