बोयिनी लक्षमम्मा तेलंगाना के झारसंगम तालुका के बिदाक्काने गाँव की रहने वाली 45 वर्षीय महिला हैं। 15 साल पहले उन्होंने अपने पति को हमेशा के लिए खो दिया था। उनके 3 बेटे और बेटी हैं। लक्षमम्मा के पति के देहांत के बाद उनके पास बस दो एकड़ जमीन ही थी जो उन्हें उनके ससुराल से मिली थी। चूंकि उनके पास पैसों की तंगी थी इसलिए उन्हें इस भूमि को ऐसे ही छोड़ना पड़ा क्योंकि न तो वे इस भूमि पर अधिक खर्च कर सकती थीं और न ही काम करने के लिए उनके पास कोई मजदूर थे।
किसानों के लिए काम करने वाली संस्था अरन्या एग्रीकल्चर अल्टरनेटिव्स और लिविंग इकोलॉजी संस्था ने एकसाथ मिलकर परमाकल्चर को किसानों के मध्य प्रसारित करने के लिए पहल की और इस प्रोजेक्ट को ऐसे छोटे किसानों जो आर्थिक रूप से अक्षम हैं और खासतौर से महिला किसानों के बीच लाॅन्च किया। इस प्रोजेक्ट में लक्षमन्ना एकमात्र ऐसी महिला थीं जिनका इस कार्यक्रम के लिए पूरे गांव से चयन हुआ था। लक्षमम्मा ने बताया कि उन्होंने अपनी भूमि का एक छोटी-सी समीक्षा की। उन्होंने कहा कि हमारे पास अपने बच्चों को सही पोषण देने के लिए भी पैसे नहीं थे लेकिन मैं उनके लिए कुछ अच्छा कर रही हूं। खेती के रूप में मुझे एक ऐसी शक्ति मिली है जिससे कि मेरे बच्चों को भविष्य में अधिक पैसे तो नहीं लेकिन अच्छा खाना और जिंदगी मिल सकती है।
अरन्या ने लक्षमम्मा की जमीन और खेती सुधार में काफी मदद की। लक्षमम्मा ने वाटर हार्वेस्टिंग, फेंसिंग, जुताई, पौधरोपण आदि सीख लिया है। उन्होंने अपने 2 एकड़ खेत में आंवला, निम्बू, आम, करौंदा, अंजीर, चीकू और काजू जैसी फसलों का प्लांटेशन किया है। चूंकि उनके पास पर्याप्त सिंचाई का पानी उपलब्ध नहीं है ऐसे में उन्होंने मटका सिंचाई तकनीक से अपनी फसल को व्यवस्थित कर रखा है ताकि फसल को पर्याप्त मात्रा में पानी मिल सके। इस काम को उनका पूरा परिवार बहुत ही गंभीरता से ले रहा है।
इसमें सिर्फ लक्षमम्मा ही नहीं बल्कि उनके परिवार के सभी सदस्य खेत में काम करने में जी-जान से जुटे हैं क्योंकि उनको इसमें मजा आ रहा है। यही नहीं इसमें अन्य लोग भी उनकी सहायता कर रहे हैं। सलाम है ऐसे जज्बे को जिसने लक्षमम्मा को अपने ही क्षेत्र में नायक बना दिया है।
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