झारखण्ड के चतरा जिले के ग्रामीण परिवेश में किसान खेती के साथ-साथ छोटे पशुओं का भी पालन करते हैं जिसमें देशी नस्ल की गाय, बकरी, मुर्गी एवं शूकर मुख्य हैं। खासकर आदिवासी एवं अनुसूचित जाति के किसान शूकर एवं बकरी पालन करके ही अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं। इस कार्य में महिलाओं का योगदान सबसे ज्यादा रहता है। इस बात को ध्यान में रखते हुए कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों ने अग्रिम पंक्ति प्रत्यक्षण एवं प्रशिक्षण के माध्यम से शूकर पालन में काम करने के लिए सोचकर ग्राम बघमरी प्रखण्ड गिद्दौर जहां पर 25 जनजाति परिवार निवास करते हैं वहां भ्रमण कर अध्ययन किया एवं पाया कि शूकर पालन में कम आमदनी होने का मुख्य कारण देशी नस्ल रख-रखाव एवं प्रबंधन की कमी है।
बातचीत के दौरान यह भी पता चला कि शूकर पालन करने वाले सभी किसान इस कार्य को करने के लिए आर्थिक रूप से सक्षम भी थे लेकिन जानकारी के अभाव में वे शूकर पालन से पर्याप्त आमदनी नहीं प्राप्त कर रहे थे। उनके द्वारा पालन किए जाने वाले देशी नस्ल से केवल 4-5 बच्चे ही प्राप्त होते थे तथा मादा सुअर साल में एक ही बार बच्चा देती थी। अध्ययन के दौरान एक प्रगतिशील शूकर पालक प्रकाश पूर्ति ने अपने गांव में उन्नत नस्ल एवं कुशल प्रबंधन कर शूकर पालन की इच्छा जताई एवं शूकर पालकों का समूह बनाकर शूकर पालने की इच्छा जताई जिससे कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों ने उस गांव के 25 पुरूष एवं महिलाओं को श्री पूर्ति के नेतृत्व में तीन दिवसीय प्रशिक्षण का आयोजन किया जिसमें शूकर के संबंध में विस्तृत जानकारी दी गई।
प्रशिक्षण के दौरान यह महसूस किया गया कि यदि इन किसानों को प्रायोगिक प्रशिक्षण के लिए यदि पशु चिकित्सा महाविद्यालय, रांची के शूकर पालन प्रक्षेत्र में भेजा जाए तो ज्यादा लाभ होगा एवं प्रशिक्षण के दौरान उत्साहित प्रकाश पूर्ति एवं अन्य चार महिलाओं को विस्तृत प्रशिक्षण के लिए पशु चिकित्सा महाविद्यालय, रांची में 15 दिन के प्रशिक्षण के लिए भेजा गया।
प्रशिक्षण के तुरन्त बाद अग्रिम पंक्ति प्रत्यक्षण के अन्तर्गत पांच प्रशिक्षुकों को T x D प्रजाति की दो मादा एवं एक नर शूकर दी गई जो 3 महीने उम्र की थी। श्री पूर्ति एवं चार महिलाएं अपने ही घर में उपलबध मक्के का दाना, धान की भूसी, सब्जी के पत्ते इत्यादि बताए गए खिलाने के तरीके से खिलाकर एवं उचित प्रबंधन कर प्रति शूकर 8 बच्चे प्राप्त किए जो कि तीन महीने के बाद 1500 रूपये प्रति शूकर के दर से बेचकर 12,000 रूपये प्रति शूकर की आमदनी की जो कि पहले से चार गुणा अधिक था। T x D शूकर दो बार बच्चा देने लगी जिससे उन्हें प्रति शूकर साल में 24,000 रूपये की आमदनी होने लगी। प्रकाश पूर्ति द्वारा शूकर पालन में दक्षता होने के चलते इलाके के लोगों को प्रशिक्षक के रूप में उपयोग करने लगे हैं।
उक्त प्रत्यक्षण को जिला प्रशासन, आत्मा द्वारा देखने के बाद अपने कार्यक्रम में समावेश कर आज जिले के लगभग 50 किसान T x D नस्ल के पालन से अच्छी आमदनी कमा रहे हैं। श्री पूर्ति द्वारा उक्त नस्ल के प्रचार-प्रसार एवं अच्छी आमदनी के चलते बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति द्वारा भी सम्मानित किया गया है।
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