आपने यह कहावत तो सुनी ही होगी की मन में यदि कुछ करने का ढृढ़ संकल्प हो तो कोई काम कितना भी बड़ा हो वह आसान लगने लगता है. ऐसा ही कुछ कर दिखाया है मंडी जिले के डोढ़वां गांव की किसान कल्पना शर्मा ने अब कल्पना शर्मा की सफलता को पूरी दुनिया देखेगी. खेती को कवरेज़ देने वाली एक बड़ी चैनल के द्वारा कल्पना के जीवन पर डॉक्यूमेंट्री बनाई जाएगी. अगले महीने के चार तारीख़ को चैनल के स्टेशन के माध्यम से कल्पना शर्मा अपने संघर्ष को सांझा करेगी.
साल 2002 में कल्पना शर्मा के पति पेड़ से गिर पड़े थे और उनके रीढ़ की हड्डी टूट गई थी. जिसके चलते वह दिव्यांग हो गए. जिसके बाद से कल्पना के ऊपर घर की सारी जिम्मेदारी आ गई. तो अब कल्पना को अपने तीन बच्चो का पालन-पोषण, पढ़ाई और पति के इलाज पर होने वाले खर्च को उठाना काफी मुश्किल भरा होने लगा. बीए पास होने के बाद भी कल्पना के बहुत कोशिश करने के बाद भी कल्पना को कहीं भी नौकरी नहीं मिली.
जब कल्पना को अपना जीवन चलाने के लिए कोई साधन न मिला तो कल्पना ने अपने एक हेक्टेयर जमीन पर खेती करना चालू कर दिया. पहले तो कल्पना ने अपनी परम्परागत फसल मक्की, धान व गेहूं की खेती करना चालू किया. लेकिन इसको करने से उनके आर्थिक स्थित में कोई सुधार नहीं आया. उसके बाद कल्पना ने सब्जियों की खेती की तरफ अपना ध्यान दिया और इसकी खेती करना चालू कर दिया.
साल 2017 में कल्पना ने हिमाचल प्रदेश के कृषि वि० वि० से संरक्षित खेती करने के लिए प्रशिक्षण लिया. इतना ही नहीं कृषि विभाग की पॉलीहाउस परियोजना से अनुदान लेकर 250 वर्ग मीटर के पॉलीहाउस बनाया. सबसे पहले इन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र सुंदरनगर के तकनीकी सहयोग से पॉलीहाउस बनाकर शिमला मिर्च और खीरे की खेती करना चालू किया. यह काम करने के बाद कल्पना की आर्थिक स्थित सुधरने लगी. इसके बाद साल 2016 में कल्पना ने 250 वर्गमीटर के दूसरे तथा वर्ष 2018 में तीसरे पॉलीहाउस का निर्माण किया. अब कल्पना पॉलीहाउस में खेती करने वाली एक सफल महिला किसान हैं.
आप को बता दें की वर्तमान समय में कल्पना फसल, सब्जी उत्पादन व पशु पालन व्यवसाय तथा पॉलीहाउस से अपनी जीविका चला रही हैं. कल्पना अब लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बनकर सबके सामने उभर रही हैं. अभी हाल में ही कल्पना ने कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर में शून्य बजट की खेती का भी प्रशिक्षण लिया. खेती में लागत कम करने के लिए इस खेती की तकनीक को भविष्य में अपनाने व साथ ही घरेलू उद्योग जैसे अचार, बडिय़ां, शीरा आदि उत्पाद बनाकर बाजार में बेचने की योजना पर कार्य कर रही है.
सफल महिला किसान के अनुभव को देखते हुए कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर की लास्ट इयर के छात्रों में रूरल एग्रीकल्चरल वर्क एक्सपीरियंस के तहत कल्पना के साथ अटैच किया है. जिससे उनके अनुभवों को आगे प्रेक्टिकल के तौर पर लाभ उठा सकें.
प्रभाकर मिश्र, कृषि जागरण
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