किसान हमारे अन्नदाता है, वो जनता का पेट भरने के लिए अनाज उगाते हैं, किसान न होता तो लोगो का पेट कैसे भरता, किसान इस देश की धरोहर है, आम सभाओं में, पत्रिकाओं में, लेखों में और समाचार पत्रों में ऐसे बहुत सारे वाक्यांश पढने सुनने को मिल जाते हैं। यदि कोई चुनावी माहौल वो तो पार्टी के नेताओं का क्या कहना, इस तरीके से किसानों के बीच में अपना वोट बैंक बनाने के लिए इस तरह की मीठी बातो का पासा फेंकते हैं कि बेचारा किसान उसमें फंस जाता है फिर उसको पूरे पांच साल भुगतता है। सही में इस राजनीति ने तो कृषि और किसान दोनों की परिभाषा ही बदल दी।
हर एक नेता और मंत्री तो अपने आप को किसान बताने लगा, अरे भाई अगर आप किसान हो तो चंद लम्हे खेत में गुजारो दूसरे किसान साथियों के साथ, एसी वाली गाडी और बड़ी कुर्सी वाले ऑफिस को छोडकर जरा बैलगाड़ी की सवारी करके देखों, तपती धूप में दो चार घंटे खेत में काम करके देखों तब अपने आप को किसान कहो तो अच्छा भी लगे। जी हाँ दोस्तों आजकल हर कोई अपने आपको किसान और उसका बेटा कहता है। ऐसे नेताओ को किसान नेता कहते हुए भी अजीब सा महसूस होता है, ये किसान नेता बल्कि अपनी कमाई करने वाले नेता है। चौधरी चरणसिंह को किसानों का मसीहा कहा जाता है, और यह हकीकत भी है उन्होंने किसानों के लिए काम भी किया। उनके बाद हम आपको बता रहे हैं ऐसे किसान मसीहा के बारे में जिसने हकीकत में किसानों की लडाई लड़ी और उनकी एक आवाज़ में लाखों की संख्या में किसान इकठ्ठा हो जाते थे।
हम बात कर रहे हैं किसान नेता चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत की जो देश की आजादी से पहले 1935 में मुज़फ़्फ़रनगर के शामली के सिसौली गाँव में जन्में चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत एक ऐसे इन्सान थे जिन्होंने किसानों के लिए अपना पूरा जीवन न्योछावर कर दिया। जाट परिवार में जन्में महेंद्र सिंह टिकैत किसान परिवार से ताल्लुक रखते थे। किसानों के प्रति उनका समर्पण साल 1986 से शुरू हुआ। यह समय था जब देश में किसान और कृषि कुछ नया करने की कोशिश में थे ताकि देश के कृषि उत्पादन को अगले स्तर पर ले जाया जा सके। 1986 में ट्यूबवेल की बिजली दरों को बढाये जाने के बाद शामली में महेंद्र सिंह टिकैत ने एक किसान आन्दोलन शुरू किया।
इस किसान आन्दोलन के दौरान 1987 में किसानों ने एक विशाल प्रदर्शन किया। प्रदर्शन के समय पुलिस की गोलीबारी के दौरान दो किसानों और एक पीएसी के जवान की मौत हो गयी। इसके बाद महेंद्र सिंह टिकैत राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आये। इसके बाद से ही उन्होंने किसान मूवमेंट शुरू कर दी जहाँ पर भी किसानों को कोई समस्या होती वो उनका साथ देने के लिए पहुँच जाते थे। चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने उत्तर प्रदेश और हरियाणा के लोगो के बीच अपनी एक अलग पहचान बना ली थी। खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोगो के बीच उन्होंने अपने आप को पूरी तरह से समर्पित कर दिया था। बड़े.बड़े राजनेताओं पर उन्होंने अपना प्रभाव छोड़ा वो सिर्फ एक किसान नेता ही नहीं बल्कि एक साधारण प्रवर्ती इन्सान थे। उनके पहले किसान आन्दोलन के दौरान खुद उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह उनसे मिलने पहुंचे और किसानों को संबोधित कर उनको शांत कराया।
महेंद्र सिंह टिकैत के जैसा कोई किसान मसीहा शायद ही कोई हुआ हो। किसानों के मध्य उन्होंने अपनी एक ऐसी छवि बना ली थी कि उनकी एक आवाज पर लाखो किसान इकठ्ठा हो जाते थे। उन्होंने कई किसान आन्दोलन को अंजाम दिया। फिर चाहे के मूल्य को लेकर किसानों को समस्या रही हो या फिर पानी को लेकर किसानों के मध्य चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत को बाबा टिकैत के नाम से जाना जाता था। उनके हुक्के की गुडगुडाहट की आवाज से अच्छे-अच्छे अधिकारी पीछे हट जाते थे। चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने कहा था कि सरकार की गोली और लाठी किसान की राह न रोक सके हैं। किसानों के हित के लिए महेंद्र सिंह टिकैत सरकार से भी कई बार नाराज हुए और यही नहीं किसानों के लिए उन्होंने सरकार से कई बार आमना-सामना किया।
महेंद्र सिंह टिकैत ने 25 सालो तक किसानों की लडाई लड़ी। एक किसान होते हुए उनका जीवन कोई आसान नहीं रहा। एक बार मायावती सरकार ने उनके गाँव से चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत की गिरफ़्तारी के लिए पूरी पुलिस फ़ोर्स को सिसौली में लगा दिया इस दौरान लाठीचार्ज और पत्थरबाजी जैसी घटनाएं हुयी। लेकिन बाबा टिकैत के चाहने वालों ने पुलिस वालों को गाँव में घुसने तक नही दिया। इस दौरान कई बड़े राजनेता चौधरी महेद्र सिंह टिकैत के समर्थन में आये। यहाँ तक कि उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने भी उनकी गिरफ़्तारी का विरोध किया। बाबा टिकैत ने अपना पूरा जीवन बेबाकी के साथ एकदम बेधड़क होकर जिया। वो किसानों के लिए लड़े, उनको मजबूत बनाया, उनके लिए संघर्ष किया।
चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत का प्रभाव सूबे से लेकर देश की राजनीति तक था। लेकिन उन्होंने किसान आन्दोलन को राजनीति से बिल्कुल अलग रखा। किसानों के प्रति अपने आप को समर्पित करते हुए चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने साल 15 मई 2011 को अंतिम सांस ली। उनके निधन पर देश के प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, राजनेताओं और किसानों तक ने गहरी संवेदना व्यक्त करी। चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत आज हमारे बीच नहीं है लेकिन किसानों के बीच वो आज भी जिन्दा है। उन्होंने किसानों को एकजुट करने के लिए भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) की नीव रखी जिसकी कमान अब उनके पुत्र राकेश टिकैत के हाथ में हैं।
जाटों में था गहरा प्रभाव: एक किसान मसीहा होने के अलावा चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत का हरियाणा और उत्तर प्रदेश के जाटों में गहरा प्रभाव था। कोई भी समस्या या पंचायत होती थी तो चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत को उस वहां पर जरुर बुलाया जाता था। जाटों 32 खापों में उनका काफी रुतबा था।
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