कृषि काम में ट्रैक्टर का उपयोग और ऐसे तकनीकी सुधार के माध्यम से अनेकानेक चुनौतियों से ऊपर उठकर उन्होंने स्वयं का व्यवसाय प्रस्थापित किया है। संतोष पूरी निष्ठा से मानते हैं कि जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए हमें अपनी कठिनाईयों को स्वीकार कर उन्हें पार करने का साहस रखना आवश्यक है। उन्होंने न केवल इन समस्याओं का सामना किया, परन्तु अपने प्रेरणादायक कदमों से गाँव के लोगों को भी प्रेरित किया है।
उनका सबसे बड़ा एवं प्रिय सपना है की पूरा गांव एक आत्मनिर्भर उद्यम बने। और इसके लिए वे अपना योगदान प्रतिदिन अपने कार्य के प्रति समर्पण से देते हैं। संतोष ने अपने पूरे गाँव को एक सशक्त और स्वयं निर्भर जीवन जीने के लिए प्रेरित किया है। उन्होंने यह सिद्ध किया कि यदि किसी में मानसिक सामर्थ्य, प्रियजनों का समर्थन, और सुयोग्य मार्गदर्शन हो, तो वे किसी भी कठिनाई को पार कर सकते हैं।
जीवन की हर एक चुनौती में अद्भुत विश्वास, साहस, और इच्छाशक्ति के बल पर किए गए कार्य सफलता की ऊँचाइयों को छूते हैं। यह कहानी मजबूत इच्छाशक्ति की ऐसी ही एक कथा है; कभी हार ना मानने का सबल प्रेरणा स्रोत है। संतोष काइट यह पांडुर्णा, केदारली के एक रहिवासी हैं। उन्होंने मजबूत इरादें और अद्भुत संघर्ष से अपनी दिव्यांगता पर विजय प्राप्त की। सुयोग्य मार्गदर्शन, प्रेरणा और सहायता से एक व्यक्ति विकलांगता पार कर सफलता की सीढ़ियां चढ़ सकता है।
संतोष के कार्य का प्रारम्भ उनके गाँव पांडुर्णा से हुआ। पांच साल की आयु में पोलियो हो जाने के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और अपने आत्मबल का सहारा लेना सीखा; अपने अस्तित्व को स्वीकार कर उसमें विशेष सामर्थ्य विकसित किया।
2006 में, जब संतोष के पिताजी का निधन हो गया, तब परिवार के लिए समस्याएँ बढ़ गयी। तब संतोष ने खेती काम को अपने व्यवसाय के रूप में जारी रखने का निश्चय किया और पूरी आस्था से आगे कदम बढ़ाएँ।
2014 में, फिर एक बार उनके विकलांगता के चलते उन्हें नयी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। कृषि काम में वृद्धि तो थी, परन्तु बैलों द्वारा खेती और श्रमिकों की अधिक आवश्यकता जैसी चुनौतियों के कारण संतोष को फिर एक बार काम में रुकावटें दिखने लगी। परन्तु इस कठिन समय को प्रेरणास्रोत बनाकर उन्होंने फिर सफलता की ओर एक कदम बढ़ाया। उन्होंने अपने सपनों की पूर्ति के लिए पुसद जाने का निर्णय लिया।
पुसद में उन्हें महिंद्रा के सदस्यों से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ | महिंद्रा टीम की मदद से, संतोष ने एक ट्रैक्टर खरीदा और उसका खेती के लिए उपयोग शुरू किया। इससे कुछ ही समय में उन्होंने खेती के काम में आने वाली कठिनाइयों को मात दे दी। एक ट्रैक्टर से प्रारम्भ होकर, आज उनके पास चार ट्रैक्टर हैं, अपना घर है, और एक सुस्थापित उद्योग है। संतोष मानते हैं की, आत्मनिर्भर बनना अत्यंत आवश्यक है। परन्तु यदि कोई कार्य किसी की सहायता से अधिक अच्छे प्रकार से परिपूर्ण होता है तो वह सहायता भी महत्त्वपूर्ण है।
संतोष ने न केवल अपने जीवन को सजीव बनाया, बल्कि गांव के सभी को भी समृद्धि और सफलता की दिशा में चलने की प्रेरणा दी। सफलता उसे मिलती है जो असफलता के विरूद्ध प्रयास करता है और सदा नए उचाईयों की खोज में रहता है, यह संतोष की विचारधारा है। संतोष के कार्य से हमें प्रेरणा मिलती है की, जीवन की सफल यात्रा के लिए हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए, परन्तु हर संकट को एक नई दिशा में बदलने का आत्मविश्वास रखना चाहिए।
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