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देशी पद्धति को अपनाकर दे रहे है पर्यावरण संरक्षण संदेश

छत्तीसगढ़ के बलोड में गांव टेकापार के पास लगभग 55 किलोमीटर दूर गांव के किसान केमिकल मुक्त खेती करने का कार्य कर रहे है. सबसे खास बात तो यह है कि यहां के किसान केमिकल मुक्त तकनीक के सहारे देशी पद्धति से आम को उगा रहे है और उन्हें पका कर खा रहे है. साथ ही ऐसा करके वह पर्यावरण संरक्षण का बेहद ही अनूठा संदेश देने का कार्य कर रहे है. इस तरह के संदेश के सहारे उनके आम की मार्केटिंग अब गांव के अलावा शहरों तक हो रही है. उन्होंने शहर के जयस्तंभ चौक के पास केमिकल मुक्त आम का स्टॉल लगाया था. केवल एक घंटे के भीतर ही लोगों ने 10 किलो से ज्यादा आम को खरीद लिया है.

किशन

छत्तीसगढ़ के बलोड में गांव टेकापार के पास लगभग 55 किलोमीटर दूर गांव के किसान केमिकल मुक्त खेती करने का कार्य कर रहे है. सबसे खास बात तो यह है कि यहां के किसान केमिकल मुक्त तकनीक के सहारे देशी पद्धति से आम को उगा रहे है और उन्हें पका कर खा रहे है. साथ ही ऐसा करके वह पर्यावरण संरक्षण का बेहद ही अनूठा संदेश देने का कार्य कर रहे है. इस तरह के संदेश के सहारे उनके आम की मार्केटिंग अब गांव के अलावा शहरों तक हो रही है. उन्होंने शहर के जयस्तंभ चौक के पास केमिकल मुक्त आम का स्टॉल लगाया था. केवल एक घंटे के भीतर ही लोगों ने 10 किलो से ज्यादा आम को खरीद लिया है.

आम की कई वैरायटी का हुआ उत्पादन

टेकापार के 2 किसान लीलाधर गोटे और पन्नालाल उइके ने अपनी बंजर जमीन पर कुल 3 साल से मेहनत करके लगाए हुए आम को उगाया था. किसानों का कहना था कि उनकी जमीन 3 साल पहले पहाड़ी क्षेत्र में पथरीली हुआ करती थी लेकिन किसानों ने मेहनत करके यहां पर दशहरी और अन्य प्रजाति के आम के पौधे लगाए है. बाद में यह पौधे पेड़ बन गए और उसी साल से उनमें फल आना शुरू हो गया है. उन्होंने कुल 8 एकड़ रकबे में आम की फसल लगाई थी जिसमें 8 क्विंटल से ज्यादा उत्पादन हो चुका है.

रसायनों के प्रभाव का बुरा असर

किसानों ने यह जानकारी दी है कि आज तेजी से बढ़ते रसायन के इस्तेमाल से लोगों के स्वास्थय पर बुरा प्रभाव पड़ा है. ऐसे माहौल में हमारे केमिकल मुक्त आम को खरीदने के लिए लोग काफी उत्सुक रहते है, इसीलिए गांव से शहर तक आसानी से मार्केटिंग को शुरू किया है. अब वह अलग-अलग जगह पर जाकर आम का स्टॉल लगा रहे है. ताकि बिक्री को बढ़ाने के साथ लोगों में केमिकल की खेती के प्रति जागरूकता आए. आम के फल यहां रसीले और मीठे है.

जानवरों का खतरा फिर भी खेती हो रही

किसानों का कहना है कि हमारे यहां के अधिकतर जंगलों और पहाड़ियों से घिरे हुए है. साथ ही यहं की जमीन भी चटट्ने भी है. बरसात को छोड़ अन्य मौसम में यहां ठीक से खेती चट्टानों में नहीं हो पाती है. उनका कहना है कि आसपस जंगली जानवरों के कारण भी उन्होंने खेती करना नहीं छोड़ा है लगातार फसलों को उगाते रहे है. आज उनको फल देखकर काफी ज्यादा खुशी होती है. उनको देखकर काफी प्रेरणा भी मिलती है कि मेहनत करके हर चीज आसान हो जाती है. आसपास के 100 से ज्यादा किसान भी केमिकल मुक्त खेती की ओर अग्रसर है.

English Summary: Farmers doing farming with the help of native method Published on: 12 June 2019, 12:53 PM IST

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