राजस्थान के कोटा जिले के पीपल्दा गाँव के प्रोग्रेसिव फार्मर मनोज खंडेलवाल ने हाल ही में कृषि जागरण के ‘फार्मर फर्स्ट’ कार्यक्रम में अमरुद की बागवानी पर अपनी बात रखीं. उन्होंने बताया कि उनका बागवानी पर विशेष ध्यान है. पिछले साल से ही उन्होंने बागवानी शुरू की है और फिलहाल लगभग 40 बीघा में अमरूद के पौधे लगाएं हैं. इसके लिए उन्होंने अमरुद की पांच उन्नत किस्मों का चुनाव किया है. अमरूद के अलावा वे एप्पल बेर, सीताफल, पपीता की बागवानी भी कर रहे हैं.
उन्होंने बताया कि वे अमरूद की ताईवान पिंक, एल-49, वीएनआर, बरफ खान, वन केजी, अर्का किरण जैसी किस्मों की बागवानी कर रहे हैं. उनके मुताबिक एक अमरूद का वजन ढाई सौ ग्राम से लेकर एक किलो तक रहता है. जहां ताईवान पिंक किस्म के फल 400 से 500 ग्राम के होते हैं. वहीं, एल 49 के फल लगभग 300 ग्राम का होता है. सबसे ज्यादा वजन के फल वीएनआर किस्म के पौधे से मिलते हैं, जो लगभग 700 ग्राम से 1 किलो के होते हैं.साथ ही मनोज जी ने बताया कि इस साल मौसम अच्छा होने की वजह से ज्यादा पैदावार मिलने की उम्मीद है. उनके मुताबिक अमरूद के पौधे 6X6 फीट से 18X18 फीट की दूरी पर लगाए जाते हैं. वहीं, सिंचाई के लिए वह ड्रिप इरिगेशन पद्धति अपनाएं हैं. उन्होंने 10 बीघा में राज्य सरकार की मदद से तथा 30 बीघा में खुद के रुपयों से ड्रिप इरिगेशन लगवाई.
इसके अलावा उन्होंने राज्य सरकार की मदद से 5 एचपी के सोलर पंप भी लगवाया है. उन्होंने बताया कि जो किसान ड्रिप इरिगेशन पद्धति और बागवानी के पौधों पर सब्सिडी लेना चाहते हैं उन्हें सरकार की गाइड लाइन को फॉलो करना चाहिए. बागवानी पर सरकारी सब्सिडी लेने के लिए पौधे को उचित दूरी जैसे 6X6, 8X8, 10X10, 12X12,18X18 लगाना चाहिए. सरकारी गाइडलाइन को पूरा किये बगैर पौधों और ड्रिप इरिगेशन पर सब्सिडी नहीं ले सकते हैं.
उन्होंने बताया कि ताईवान पिंक किस्म में 6 महीने बाद ही फल आने शुरू हो जाते हैं. जबकि वीएनआर किस्म में एक साल, बरफ खान और एल49 में दो साल बाद फल आने लगते हैं. पहले साल एक पौधे से 20 से 25 किलो, दूसरे साल 30 से 40 किलो फल मिलते हैं. जो बढ़ते-बढ़ते एक क्विंटल तक पहुंच जाता है. अमरुद की ताईवान पिंक किस्म से 7 साल, वीएनआर किस्म से 12 साल, बरफखान और एल 49 किस्मों से 20 साल तक लगातार फल लिए जा सकते हैं.
अपने उत्पादन बाजार तक पहुंचाने के बारे में उन्होंने बताया कि पहले फलों की तुड़ाई कराई जाती है. जिसके बाद 20-20 किलो बॉक्स तैयार करके अमरुद को बाजार में बेचा जाता है. ताईवान पिंक और वीएनआर किस्म के फल पर पौधे पर कवर लगा दिया जाता है. मनोज ने बताया कि अमरूद की अधिक पैदावार के लिए समय-समय पर पौधे की कटिंग बेहद जरूरी होती है. ताईवान पिंक और वीएनआर किस्म के पौधे की जितनी अधिक कटिंग की जाती है फल उतने ही ज्यादा आते हैं. इन दोनों किस्मों से 12 महीने ही फल लिए जा सकते हैं. एल-49 और बरफ खान का फल 3 दिन, ताईवान पिंक का 7 दिन और वीएनआर किस्म का फल एक महीने तक खराब नहीं होता है.
उन्होंने बताया कि किसानों को अपनी आय बढ़ाने के लिए बागवानी करना चाहिए. साथ ही किसानों को समय-समय प्रयोग करते रहना चाहिए. अमरूद की बागवानी के लिए प्रति पौधे 100 रूपये का खर्च आता है. जिसमें पौधे, जैविक खाद, निराई-गुड़ाई और कटाई जैसे खर्च आदि शामिल हैं. अमरुद में फल छेदक, फल फटन और फल पर दाग जैसे रोग लगते हैं जिसके लिए जैविक कीटनाशकों का छिड़काव किया जाता है. मनोज खंडेवाल का कहना हैं कि ताईवान पिंक प्रति एकड़ 1300 पौधे, वीएनआर किस्म प्रति एकड़ 500 पौधे और एल-49 और बरफ खान किस्म के प्रति एकड़ 250 पौधे लगते हैं. मुनाफे की बात की जाए तो अमरुद की बागवानी से प्रति एकड़ 1.5 से 2.5 लाख रूपये की कमाई की जा सकती है. वहीं हर साल इसमें प्रति एकड़ 25 से 30 हजार रूपये की लागत आती है.
इसके अलावा मनोज औषधीय फसलों की खेती भी करते हैं. वे औषधीय फसलों में सफेद मूसली, अकरकरा, अश्वगंधा की खेती करते हैं. इस बार 4 बीघा में उन्होंने सफेद मूसली लगाया था. जिससे प्रति बीघा डेढ़ क्विंटल का उत्पादन हुआ है. सफेद मूसली की खेती से प्रति बीघा 40 से 50 हजार का शुद्ध मुनाफा हो जाता है.
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