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बांस की खेती जलवायु परिवर्तन से लड़ने और किसानों की आजीविका के लिए ही सकती है रामबाण

किसानों की आय बढ़ाने का सबसे अच्छा रास्ता बांस की खेती है. इसकी खेती से सिर्फ किसान की आय ही नहीं बढ़ती बल्कि खेती जलवायु परिवर्तन और जल संरक्षण में भी काफी मदद करती है. आज हम आपको ऐसे ही एक किसान के बारे में बताने जा रहे हैं, जो बांस की खेती से हर साल मोटी कमाई कर रहे हैं.

लोकेश निरवाल
महाराष्ट्र के लातूर जिले के किसान शांतनु, फोटो साभार: कृषि जागरण
महाराष्ट्र के लातूर जिले के किसान शांतनु, फोटो साभार: कृषि जागरण

किसानों के लिए बांस की खेती काफी फायदेमंद मानी जाती है. दरअसल, इसकी खेती से जल संरक्षण करना काफी आसान हो जाता है. क्योंकि बांस की जड़ें पानी को अवशोषित करके उसे संग्रहीत करती हैं, जिससे किसानों को खेती में मदद मिलती है. अन्य पौधों की तुलना में बांस 30% अधिक ऑक्सीजन देता है और अधिक कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित करता है. महादेव गोमारे का मानना है कि “हमारे महानगरों में जल संकट के कारण वह समय दूर नहीं जब लोग गांवों की ओर पलायन करेंगे.

आर्ट ऑफ लिविंग के प्राकृतिक कृषि परियोजना प्रमुख महादेव गोमारे अपना अनुभव साझा करते हुए बताते हैं, "हम जहां भी यात्रा करते थे वहाँ से बांस के बीज एकत्रित करते थे. अब हमारे पास 1.5 लाख बांस के पौधे तैयार हैं जिन्हें इस जुलाई में लगाया जाएगा. ये बांस के पेड़, अगर खेतों के  किनारों पर लगाए जाएं तो ये अन्य फसलों को बचाने के लिए वायु अवरोधक के रूप में काम करेंगे. बांस किसानों के अंगरक्षक हैं."

बांस किसानों के लिए बहुत मूल्यवान

2018-19 में सरकार ने बांस मूल्य श्रृंखला के समग्र विकास को आसान बनाने के लिए राष्ट्रीय बांस मिशन शुरू किया. साथ ही, नीति आयोग बांस के फायदों को अधिकतम करने के लिए एक व्यापक नीति पर काम कर रहा है, जिसे 'हरित सोना' भी कहा जाता है. महादेव गोमारे आगे कहते हैं, “सरकार अब बांस के बारे में नीतियां बनाने पर ध्यान दे रही है और इससे बहुत कुछ किया जा सकता है. बांस से बना सुंदर बेंगलुरु हवाई अड्डा देखिए. बांस किसानों के लिए बहुत मूल्यवान है क्योंकि इसे हर साल काटा जा सकता है और इससे हर साल आय हो सकती है."

लातूर और उसके आस पास के क्षेत्रों के 400 किसान पहले से ही बांस की खेती के लाभ उठा रहे हैं. लातूर और व्यापक मराठवाड़ा क्षेत्र अक्सर गंभीर कृषि समस्याओं और जल संकट का सामना करते हैं. 2016 में, लातूर को ट्रेन के माध्यम से पानी मिला.  हाल की रिपोर्ट ऐसी चेतावनी देती हैं कि मराठवाड़ा और उत्तर महाराष्ट्र के अन्य जिले बीड, उस्मानाबाद, जलना, जलगांव, औरंगाबाद, नांदेड़, और धुले भी पानी को लेकर असुरक्षित हैं और इसके कारण कृषि समुदायों पर गंभीर प्रभाव पड़ने की संभावना है इसलिए यह बहुत महत्वपूर्ण है कि अधिक से अधिक लोग बांस उगाएं. यह मिट्टी के कटाव को रोकता है और जल संरक्षण में मदद करता है.

हाल ही में कृषि पैनल प्रमुख पाशा पटेल ने भी कहा, "बांस जलवायु परिवर्तन से लड़ने और किसानों को आजीविका प्रदान करने में मदद कर सकता है." महादेव गोमारे का मिशन सिर्फ पौधे वितरित करने और किसानों को उन्हें लगाने के लिए प्रेरित करने तक सीमित नहीं है. वे एक कौशल विकास केंद्र स्थापित करना चाहते हैं, जहाँ युवा और किसान बांस से बने उत्पाद बनाना सीख सकें और इससे हजारों लोगों को रोजगार मिल सके और उनकी आजीविका में सुधार हो सके.

आर्ट ऑफ लिविंग ने 22 लाख किसानों को प्राकृतिक खेती में किया प्रशिक्षित

इस परियोजना से लाभान्वित होने वाले एक किसान शांतनु कहते हैं, "मेरी जमीन की ऊपरी मिट्टी की सतह, जो मेरी सब्जियों की वृद्धि के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. पानी के प्रवाह के कारण बह जाती थी. मेरे पास सूखा प्रभावित लातूर जिले में 10 एकड़ जमीन है और पानी की थोड़ी सी बचत भी हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है. बांस लगाने के बाद, मैंने अपने बोरवेल में जलस्तर में वृद्धि देखी है. मेरी 10 एकड़ जमीन में 500 पेड़ हैं जो पूरी तरह से बढ़ने के बाद हर साल अतिरिक्त आय देंगे. इसलिए मैं पानी बचाता हूं. अपनी मिट्टी को बचाता हूं और अधिक पैसा कमाता हूं. यह हमारे जैसे किसानों के लिए एक स्वर्ण पौधा है."

अब तक आर्ट ऑफ लिविंग ने भारत में 22 लाख किसानों को प्राकृतिक खेती में प्रशिक्षित किया है. अब वे किसान पानी के संरक्षण के लिए बहुत जागरूक हैं और प्रशिक्षण में सीखी हुई तकनीकों से अपनी सामान्य आय से कई गुना अधिक मुनाफ़ा कमा रहे हैं.

English Summary: Bamboo cultivation is helpful in climate change and increasing farmers income bans ki kheti Published on: 07 June 2024, 12:17 PM IST

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