बुलंद हौसले से हमेशा नयी उंचाइ पर पहुंच सकते हैं। विकास के नये आयाम बनते हैं। गांव हो या शहर कर्मठ ता संसाधन के लिए लालायित नहीं होती, बल्कि कर्मठ पुरु ष संसाधन तैयार कर लेता है। इन बातों के जीते-जागते उदाहरण हैं बिहार के आरा जिले के बिहिया प्रखंड के यादवपुर निवासी अखिलेश्वर प्रसाद सिंह । उन्होंने अपने दम पर पशुपालन, वर्मी कंपोस्ट सिह त गेहूं एवं धान की पारंपरिक खेती को ही नयी तकनीक अपना कर चार चांद लगा दि या है। प्रति वर्ष अपनी मेहनत के बल पर चार हजार मानव सृजन करते हैं। इस कारण अन्य लोग भी लाभान्वि त हो रहे हैं। शिक्षक पुत्र अखिलेश्वर ने स्नातक करने के बाद नौकरी के बदले कृषि की तरफ रूख कर लिया। शहर की चकाचौंध से दूर गांव में रहकर ही उन्होंने अपने जीवन को बेहतर बनाने का प्रण कर लिया और आज अपनी लगन और मेहनत के बल पर उसे पूरा कर रहे हैं। उनके पिता की इच्छा इनके द्वारा नौकरी करवाने की थी, पर कृषि क्षेत्न की प्रसि द्ध लोकोक्ति- उत्तम खेती, मध्यम वाण, नीच चाकरी भीख समान ने उनकी सोच की दिशा को मोड़ दिया तथा कृषि क्षेत्र में अग्रसर हो गये। शुरू में परिवार का विरोध ङोल ना पड़ा और बाद में लोगों ने उनका सहयोग करना शुरू कर दि या। प्रारंभ में उन्होंने पारंपरिक गेहूं एवं धान की खेती से किया। धीरे-धीरे वर्मी कंपोस्ट बनाने लगे। इसमें सफल ता मिलने के बाद पशुपालन की तरफ भी रूख किया और उसमें भी चार चांद लगा रहे हैं। पहले पैसे का अभाव रहता था, पर आज खुशहाली में पूरा परिवार जीवन व्यतीत कर रहा है।
कृषि वि ज्ञान केंद्र एवं आत्मा में प्रशिक्षण ले ने के बाद उनकी तकनीक एवं व्यवसाय में काफी निखार आया और हौसला भी बुलंद हो गया। आज वे खेती में इस तरह रम गये हैं कि नौकरी उनके लिए कोई मायने नहीं रखती है। बिहार सरकार ने 2207 में किसान श्री पुरस्कार से सम्मानित किया इनके सूझबूझ कृषि में किये जा रहे राज नये सफल प्रयोग, कर्मठता एवं लगन को देखते हुए वर्ष 2007 में बिहार सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र में दिये जाने वाले कई तरह के सम्मान दिया गया है। इसके साथ ही इन्हें कृषि के लिए प्रशिस्त पत्र भी दि या गया है। इससे इन्हें इस क्षेत्र में कार्य करने का साहस और भी बढ़ गया है। अखिलेश्वर बताते हैं कि कृषि कार्य किसी भी सूरत में दूसरे कार्य से कम नहीं है। जरूरत है लगन, मेहनत और हीन भावना से उबरने की।
आत्मा के प्रशिक्षण से बढ़ा उत्साह
अखिले श्वर ने बताया कि जब मैंने कृषि कार्य करने का संकल्प लिया, तो इसके बारे में बहुत अधिक जानकारी नहीं थी। गांव में जिस तरह पारंपरिक ढंग से खेती होती थी, उसी के बारे में थोड़ी जानकारी थी, पर जब आत्मा भोजपुर के बारे में पता चला, तो मैंने वहां संपर्क किया। आत्मा के उपपरियोजना नि देश क राणा राजीव कुमार ने मे रा हौसला बढ़ा या और प्रशिक्षण के लिए मुङो बुलाया गया. कृषि वि ज्ञान केंद्र में वैज्ञानि कों द्वारा विधिवत प्रशिक्षण दिया गया। इसके बाद मे रे कृषि कार्य में काफी विकास हुआ और आज मैं इस मुकाम पर हूं. प्रति वर्ष होती है चार लाख की आमदनी : वर्मी कंपोस्ट, सब्जी , पशुपालन एवं गेहूं की खेती से प्रति वर्ष चार लाख रु पये की आमदनी होती है। उन्होंने बताया कि मे रे द्वारा तैयार वर्मी कंपोस्ट गांव के किसान सहित आसपास के गांव के किसान भी खरीद कर ले जाते हैं। इससे उनलोगों के उपज में भी काफी बढोतरी होती है। उन्होंने बताया कि वर्मी कंपोस्ट से एक लाभ यह भी है कि इससे पैदा होने वाले अनाज से रोग होने का खतरा कम रहता है तथा अनाज भी स्वादिष्ट होता है। वहीं सब्जी की खेती से भी काफी लाभ होता है तथा इसमें वर्मी कंपोस्ट का उपयोग करने से उपज काफी बढ़ जाती है। पशुपालन के कारण मुङो काफी आमदनी है। लगभग 15 गाय पालते हैं तथा आधुनिक तरीके से उनका पालन पोषण होने से काफी मात्ना में दूध प्राप्त होता है। इसे डेयरी में बेच देता हूं. गेहूं व धान की खेती में आधुनिक तरीके एवं आधुनि क मशीनों से करने से काफी लाभ होता है।
संदीप कुमार
Share your comments