कैमूर जिले के भभूवा में काशीराम नामक मिठाई की दुकान है. वैसे तो ये दुकान आम मिठाई दुकानों की तरह ही है, लेकिन यहां की हरी जलेबी आस-पास के कई जिलों में प्रसिद्ध है. इस दुकान को फिलहाल अजय कुमार संभालते हैं, जो काशीराम के पौत्र हैं. बात करने पर मालूम हुआ कि हरी जलेबी बनाने की कला उन्हें विरासत में अपने बाप-दादा से मिली है.
आजादी के समय से चल रही है दुकान
अजय बताते हैं कि उनकी दुकान पर आजादी के समय से जलेबियां बनती आ रही है, इसलिए जिले में उनकी अच्छी प्रसिद्धि है. वैसे तो हर तरह की मिठाई यहां मिलती है, लेकिन सबसे अधिक लोग हरी जेलबी खाने यहां आते हैं. कैमूर आने वाला आदमी एक बार काशीराम की दुकान पर आकर इन जलेबियों को जरूर खरीदने की कोशिश करता है.
इस तरह बनाते हैं हरी जलेबी
अजय बताते हैं कि हरी जलेबी को भी बिलकुल आम जलेबी की तरह ही बनाया जाता है. इसमें लगने वाली सामग्री भी आम जलेबियों में लगने वाले सामग्रियों की तरह ही है. बस हरा रंग देने के लिए ग्रीन फूड कलर का उपयोग किया जाता है.
अजय बताते हैं कि आज रेडीमेड फूड कलर मार्केट में उपलब्ध है, लेकिन पहले के समय जलेबी को हरा रंग देने के लिए हरे फल-सब्जियों का उपयोग किया जाता था. हरे पत्तों वाली सब्जियों से निकला रस, जलेबियों को खास पहचान देता था.
हर महीने होती है लाखों की कमाई
हरी जलेबियों की मांग कितनी अधिक है, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि हर माह अजय को 2 लाख से अधिक का मुनाफा सिर्फ इसी से हो जाता है. वो कहते हैं कि “लोगों की जरूरतों और समय को देखते हुए हमने जलेबियों में कुछ बदलाव जरूर किए हैं, लेकिन हमारी कोशिश रही है कि इसके मूल स्वरूप के साथ किसी तरह की छेड़छाड़ न होने पाए. जलेबी में शुद्धता का वादा हमारे पूर्वजों द्वारा लोगों को दिया गया है, उसी विश्वास पर आज लोग यहां इन जलेबियों को खरीदते हैं, जिसे टूटने नहीं दिया जा सकता.”
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