Success Story: वर्तमान में कृषि लगातार सिकुड़ती जा रही है. नतीजतन, सिर्फ खेती से गुजारा करना बहुत मुश्किल हो गया है. इसीलिए छोटे किसानों के लिए खेती के साथ-साथ आय के अन्य साधन जुटाना मौजूदा वक्त की बुनियादी जरूरत बन गई है. वहीं, हमारे देश में कई ऐसे किसान भी हैं जो सहायक व्यवसाय अपनाकर अपनी मेहनत और लगन से इतनी सफलता हासिल कर चुके हैं कि उनकी सफलता की कहानी दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुकी है. ऐसी ही कहानी पंजाब के बठिंडा जिले के भोडी पुरा गांव की रहने वाली स्वर्णजीत कौर बराड़ की है, जिन्होंने अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करने और अपनी आय बढ़ाने के लिए मधुमक्खी पालन को सहायक व्यवसाय के रूप में करना शुरू किया.
इस वजह से शुरू किया था शहद उत्पादन का काम
37 वर्षीय स्वर्णजीत कौर ने इस व्यवसाय को अपनाने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र बठिंडा से मधुमक्खी पालन का ट्रेनिंग लिया और एक सफल मधुमक्खी पालक बन गई. कृषि विज्ञान केंद्र के संपर्क में आने से पहले स्वर्णजीत कौर गृहिणियों की तरह सिर्फ घर का काम करती थीं. लेकिन आज हमारा समाज काफी आगे बढ़ चुका है और इस बढ़ते समाज में महिलाएं भी किसी से कम नहीं हैं. स्वर्णजीत कौर का घर खेती से जुड़ा है, लेकिन जमीन की कमी के कारण अकेले खेती से होने वाली आय से परिवार की जरूरतों को पूरा करना संभव नहीं था और दिन-ब-दिन बढ़ती महंगाई के कारण स्थिति और भी खराब होती जा रही है. इसलिए स्वर्णजीत कौर कुछ ऐसा करना चाहती थीं जिससे परिवार की आय बढ़े. उन्हें अपने एक पड़ोसी से कृषि विज्ञान केंद्र बठिंडा में चलाए जा रहे प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों के बारे में पता चला.
कृषि विज्ञान केंद्र बठिंडा से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद उन्होंने 8 साल पहले तीन बक्सों से मधुमक्खी पालन शुरू किया और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. कहा जाता है कि साहस, दृढ़ संकल्प और समर्पण से कुछ भी हासिल किया जा सकता है. स्वर्णजीत कौर बराड़ ने इस कथन को चरितार्थ किया और हर साल बक्सों की संख्या बढ़ाती रहीं. फिलहाल उनके पास 150 से ज्यादा बॉक्स हैं. शहद की बिक्री के लिए उन्हें किसी विशेष समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है. उनके द्वारा उत्पादित सारा शहद भोडीपुरा गांव और आसपास के गांवों में बेचा जाता है. उनकी इच्छा इस काम को और आगे बढ़ाने की है और इसलिए वह इस व्यवसाय की और बारीकियां सीखने की इच्छुक हैं. उनका अनब्रांडेड शहद 300-350 रुपये प्रति किलो बिकता है जो उनकी मेहनत का जीता-जागता सबूत है.
KVK की इस सलाह से बढ़ी कमाई
कृषि विज्ञान केंद्र के विशेषज्ञों ने उन्हें अपना शहद एक ब्रांड के तहत बेचने की सलाह दी, जिससे उनकी आय में और वृद्धि हो. जब पंखुड़ियों की कमी हो जाती है, तो स्वर्णजीत कौर अपने बक्से राजस्थान ले जाती हैं. जिसके कारण इनका शहद उत्पादन कभी नहीं रुकता. जब उन्होंने यह व्यवसाय शुरू किया तो उनकी कमाई पंद्रह सौ रुपये प्रति माह थी. लेकिन एफएसएसएआई से नंबर मिलने के बाद उन्होंने शहद को पैक करके बेचना शुरू कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें अपने उत्पादों की अधिक कीमत मिली और उनका मुनाफा बढ़ गया. वह अपना शहद 'आजीविका हनी' ब्रांड नाम से बेचती हैं. फिलहाल वह प्रति माह करीब पंद्रह से बीस हजार रुपये कमा रही हैं. इस काम में उनके पति भी उनका साथ देते हैं. भविष्य में उनकी योजना पराग इकट्ठा करने और बेचने की भी है.
लगभग 4 साल पहले वह एक स्वयं सहायता समूह का भी हिस्सा बनीं, जिसमें करीब 10 सदस्य थे. बाद में, उन्होंने कुछ अन्य महिला उद्यमियों के साथ मिलकर 'दी अजिविका रूरल प्रोड्यूसर्स कोऑपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड' के साथ किसान उत्पादन संगठन (डीएचएएफयू) का पंजीकरण कराया. वह लगातार कृषि विज्ञान केंद्र, बठिंडा से जुड़ी हुई हैं और पेशेवर मधुमक्खी पालन प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों के माध्यम से नए प्रशिक्षुओं के साथ मधुमक्खी पालन पर अपने विचार साझा करती हैं. वह वहां से नई जानकारी हासिल करने के लिए पंजाब कृषि विश्वविद्यालय और कृषि विभाग द्वारा आयोजित किसान मेलों और अन्य जिला स्तरीय शिविरों में नियमित रूप से जाती हैं.
दूसरी महिलाओं के लिए बनी प्रेरणा स्रोत
उन्होंने न केवल अपने परिवार को मधुमक्खी पालन के लिए प्रेरित किया है, बल्कि अपने आसपास की महिलाओं को भी इस काम के लिए हमेशा प्रेरित करती रहती है. स्वर्णजीत कौर जैसी महिलाएं समाज की अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं जो अपने परिवार की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करने में विश्वास रखती हैं. उनकी सफलता की कहानी गांव के अन्य लोगों, खासकर छोटे किसानों को अपनी मेहनत से अपने पैरों पर खड़े होने के लिए प्रेरित करती है.
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