फतेहपुर जिले में रहने वाले किसान पिछले 13 वर्षों से अमित पटेल पिछले 13 वर्षों से हरी धनिया की खेती कर रहे हैं। वह दिन में सिर्फ दो घंटे की मेहनत करके हरी धनिया बेचकर हर महीने 15 से 20 हजार रुपये आसानी से कमाने में लगे हुए है। अमित की बात के मुताबिक वह सालाना डेढ़ बीघा खेत से धनिया की खेती कर दो लाख रूपये महीने कमा रहे है। 12 महीने धनिया की फसल उगाने वाले 28 वर्षीय अमित पटेल उत्तर प्रदेश में फतेहपुर जिले से 26 किलोमीटर दूर मलवां ब्लॉक के रहने वाले हैं।
अमित पटेल बताते हैं, “हमारे यहाँ बंदर बहुत ज्यादा हैं। कोई भी फसल करो तो ये बहुत नुकसान करते हैं, इसलिए मैंने सोचा क्यों न धनिया की फसल की जाये। तब धनिया की खेती शुरू की और पिछले 13 वर्षों से धनिया की खेती कर रहा हूं और अच्छा मुनाफा मिल रहा है। वह आगे बताते हैं, “सुबह शाम मिलाकर दो घंटे ही खेत पर निराई करने जाता हूँ। बाजार से हर दिन भाव के हिसाब से 800 से लेकर 2000 रुपये तक कमा लेता हूं। पटेल बताते है कि वह एक बीघा में 40 क्यारी को बनाते है और इसके लिए बुवाई भी कर देते है। ऐसे में 40 दिन में धनिया बेचने के लिए तैयार हो जाती है।
वहीं, बाराबंकी के बेलहरा गाँव के 45 वर्षीय किसान रामकुमार बताते हैं, “हरी धनिया की फसल के लिए दोमट मिट्टी उत्तम है। धनिया की फसल में इस बात का ध्यान रखना है कि खेत में पानी न रुकता हो। जबसे हरी धनिया की खेती की है तबसे हर दिन 800-1200 रुपये तक की बिक्री हो जाती है।
धनिया की बुवाई और देखरेख का ये है तरीका
एक बीघा खेत में 10 किलो धनिये का बीज लगता है। धनिया बारह महीने चलता है इसीलिए इसकी बुबाई किसी भी महीने में की जा सकती है। बुवाई के दसवें दिन जैविक खाद और पहला पानी डाल सकते है। इसके बाद इसमें दूसरा पानी 20 दिनों के बाद आराम से डाल सकते है। दूसरे पानी के दौरान ही इसमें 30 से 40 किलो डीएपी इसमें डालने का कार्य तेजी से करते है। अगर तापमान डाउन है तो 25 दिन के अन्दर 250-300 ग्राम यूरिया का स्प्रे कर देते हैं।
एक टंकी में 16 लीटर पानी में 100 ग्राम यूरिया डालते हैं बीघे भर में तीन टंकी का छिड़काव करते हैं। जब गर्मी ज्यादा पड़ती है तो हफ्ते में दो बार पानी लगाना पड़ता हैं। इस बारे में किसान अमित पटेल बताते हैं कि जिस दिन भी धनिया बोयें उसके 40वें दिन वो तैयार मिलेगी। इसके बाद फिर उसी क्यारी में धनिया बो दें। धनिया बोते समयांतराल का विशेष ध्यान रखें
किशन अग्रवाल, कृषि जागरण
Share your comments