हमारे देश भारत में कई तरह की सब्ज़ियों की खेती की जाती है. यही वजह है कि किसान इन सब्जियों की खेती कर कई बार मोटा मुनाफा भी कमाते हैं. ऐसे में हम भी आपको यहां एक ऐसी सब्जी की खेती करने की जानकारी देने जा रहे हैं जिसकी खेती कर किसान 6-7 महीने में ही मलामाल हो सकते हैं. साथ ही किसान तुरंत ही इसकी खेती शुरू कर सकते हैं.
जी हां, हम इस लेख में बात कर रहे हैं सेम की खेती जिसे बीन्स भी कहा जाता है और अगर अंग्रेजी भाषा में कहें तो इसे फ्रेंच बीन्स भी कहा जाता है. बीन्स में उच्च मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है. ये पौष्टिक होने के साथ ही स्वाद में बहुत ही स्वादिष्ट होता है. इसकी कोमल फलियां और परिपक्व बीज का उपयोग सब्जी के रूप में किया जाता है. ऐसे में इसकी डिमांड बाजार में हमेशा बनी रहती है. ऐसे में चलिए जानते हैं इसकी खेती से जुड़ी जरूरी जानकारी और इसकी खेती में लगने वाले लागत और इससे होने वाले मुनाफे के बारे में. तो सबसे पहले जानेंगे कि इसकी खेती का तरीका क्या है फिर जानेंगे इसमें लगने वाले लागत और होने वाले मुनाफे के बारे में-
बीन्स की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for beans cultivation)
इसकी खेती मुख्य रूप से भारत के समशीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में होती है. इसके लिए 21 डिग्री सेल्सियस के आस-पास का तापमान अच्छा माना जाता है. इसकी अधिक उपज के लिए लगभग 16 से 24 डिग्री सेल्सियस का इष्टतम तापमान बेहतर होता है. वहीं अच्छी फसल के लिए 50-150 सेमी वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है.
इसकी खेती ठंडी जलवायु में सफलतापूर्वक की जा सकती है, लेकिन ध्यान रहे कि पाला अधिक न पड़ता हो. इसके पौधों को पाले से बहुत नुक़सान होता है. इसे ठंड की शुरुआत से पहले काटा जाना चाहिए. बहुत अधिक वर्षा जल जमाव का कारण बन सकती है, जिससे फूल गिर जाते हैं. इसके साथ ही पौधे को विभिन्न रोग हो जाते हैं. इसके अलावा बीन्स की खेती (Bean Farming) फरवरी से मार्च के बीच पहाड़ियों में होती है और अक्टूबर से नवंबर में मैदानी इलाकों में की जाती है.
बीन्स की खेती के लिए उपयुक्त भूमि (Land suitable for beans cultivation)
इस फ़सल के लिए दोमट, चिकनी व रेतीली मिट्टी उपयुक्त मानी गई है. मगर ध्यान रहे कि भूमि उचित जल निकास वाली होनी चाहिए. बेहतर विकास के लिए इसका पीएच मान 5.3–6.0 होना चाहिए. साथ ही भूमि क्षारीय व अम्लीय नहीं होनी चाहिए.
बीन्स की उन्नत किस्में (Improved varieties of beans)
बीन्स की फलियां लंबी, चपटी, टेड़ी, हरे और पीले रंग की होती हैं. किसान भाई बीन्स की अच्छी उपज के लिए अर्का कोमली किस्म (Arka Komli variety), अर्का सुबिधा किस्म (Arka Subidha Variety), पूसा पार्वती किस्म (Pusa Parvati Variety), पूसा हिमालय किस्म (Pusa Himalaya Variety), वीएल बोनी 1 किस्म (VL Boni1 Variety), एनडीवीपी 8 और 10 किस्म (NDVP 8 And 10 Varieties) आदि किस्मों की बुवाई कर सकते हैं.
बीन्स की खेती के लिए खेत की तैयारी (Field preparation for beans cultivation)
पहाड़ी क्षेत्र में इसकी खेती के लिए मिट्टी को अच्छी तरह से खोदा जाता है और फार्म यार्ड खाद (FYM) के साथ मिलाया जाता है. इसके बाद उपयुक्त आकार के बेड बनाए जाते हैं. मैदानी इलाकों में, मिट्टी को दो बार जुताई करने की आवश्यकता होती है. इसके बाद लकीरें और खांचे बनाए जाते हैं. बारीक जुताई करने के लिए खेतों की 2 या 3 बार अच्छी तरह जुताई करना बहुत जरूरी है.
बीन्स की खेती के लिए बुवाई की प्रक्रिया (Sowing Process for Beans Cultivation)
इसकी खेती में एक हेक्टेयर क्षेत्रफल के लिए लगभग 20 से 30 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है. खेत की तैयारी करने के बाद लगभग 5 मीटर की चौड़ी क्यारियां बनाएं. इनकी गहराई 2 से 3 सेंटीमीटर की होनी चाहिए. बीजों को रोग से बचाने के लिए कवकनाशी से उपचारित अवश्य करें. एक सप्ताह के अंदर बीज अंकुरित हो जाएंगे. जब पौधे 15 से 20 सेंटीमीटर तक हो जाएं, तब एक स्थान में सिर्फ़ एक स्वस्थ पौधा छोड़ दें. बाक़ी पौधे उखाड़ दें. किसान भाई पौधों को बांस की बल्लियों से सहारा दे सकते हैं, इससे उनकी अच्छी बढ़वार होती है.
2 महीने में तैयार हो जाती है बीन्स की फसल
फसल की तुड़ाई क़िस्म व बुवाई पर निर्भर होती है. वैसे जब सेम की फलियां पूरी तरह विकसित हो जाएं, साथ ही कोमल अवस्था में आ जाएं, तब फसल की तुड़ाई कर लेनी चाहिए. ऐसा लगभग 50 से 60 दिनों में हो जाता है. बीन्स की एक फसल से आप करीब-करीब 5 से 6 महीनें तक लगातार उत्पादन पा सकते हैं. आकंड़े पर नजर डाले तो एक हेक्टेयर में अगर आप बीन्स की खेती करते हैं तो आप पूरी अवधि के दौरान 35 से 45 टन तक उत्पादन पा सकते हैं.
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