1. Home
  2. ग्रामीण उद्योग

खरीफ प्याज की खेती, किसानों के लिए एक वरदान

भारत में उगाई जाने वाली फसलों में प्याज का महत्वपूर्ण स्थान है. इसका उपयोग विभिन्न तरीके जैसे सलाद, सब्जी, अचार तथा मसाले के रूप में किया जाता है. आजकल विदेशों में इसका उपयोग सुखाकर भी किया जा रहा है. यह गर्मी में लू लग जाने तथा गुर्दे की बीमारी वाले रोगियों के लिए भी लाभदायक रहता है.

KJ Staff
Onian Farming
Onian Farming

भारत में उगाई जाने वाली फसलों में प्याज का महत्वपूर्ण स्थान है. इसका उपयोग विभिन्न तरीके जैसे सलाद, सब्जी, अचार तथा मसाले के रूप में किया जाता है. आजकल विदेशों में इसका उपयोग सुखाकर भी किया जा रहा है. यह गर्मी में लू लग जाने तथा गुर्दे की बीमारी वाले रोगियों के लिए भी लाभदायक रहता है. अपने स्वाद, गंध, पौष्टिकता एवं औषधीय गुणों के कारण प्याज की मांग घरेलू तथा विदेशी बाजार में दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है.

उत्तर भारत में इसको अधिकतर रबी के मौसम में ही उगाया जाता है, जिससे इस समय इसकी अधिकता एवं भंडारण की समुचित अभाव के कारण किसान भाइयों को उचित मुनाफा नहीं मिल पाता है. अक्सर यह देखा जाता है कि नवंबर के बाद रबी की फसल का संग्रहित भंडार समाप्त हो जाता है. इसकी मांग और मूल्यों के उतार-चढ़ाव के कारण ही भारत सरकार को प्याज को आवश्यक वस्तु अधिनियम के अंतर्गत लाना पड़ा. प्याज की खेती मुख्यतः महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, बिहार, आंध्र प्रदेश, राजस्थान ,तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, हरियाणा आदि राज्यों में की जाती है. नवीनतम प्रजातियों और तकनीको के विकास से अब इसकी खेती खरीफ और पछेती खरीफ में भी की जा रही है.

खरीफ प्याज का उत्पादन कम होने के कारण दिसंबर और जनवरी में प्याज की आपूर्ति में कमी आ जाती है,  इससे इन दो महीनों में प्याज की कीमतों में वृद्धि आ जाती है. खरीफ के मौसम में प्याज उत्पादन लेने से बाजार में इसकी आपूर्ति लगातार बनाए रखने में सहायक होती है तथा अधिक लाभ भी कमाया जाता है, परन्तु खरीफ मौसम में बरसात का मौसम होने के कारण पानी का अधिक जमाव, रोगों एवं कीड़ो का प्रकोप एवं खरपतवार की समस्या अधिक होती है जिसके कारण उत्पादन कम मिल पाता है.

जलवायु एवं भूमि

प्याज के लिए समशीतोष्ण जलवायु अच्छी समझी जाती है. पौधों की आरंभिक वृद्धि के लिए ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है, लेकिन अच्छे व बड़े का निर्माण के लिए पर्याप्त धूप वाले बड़े दिन उपयुक्त रहते हैं. इसकी खेती दोमट से लेकर चिकनी दोमट मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन अच्छी पैदावार के लिए दोमट मिट्टी उपयुक्त रहती है . भूमि अधिक क्षारीय व अधिक अम्लीय नहीं होनी चाहिए अन्यथा कंदो की वृद्धि अच्छी नहीं हो पाती है. खेत में जल निकास का भी उचित प्रबंधन होना आवश्यक है.

उपयुक्त किस्में

हमेशा अपने क्षेत्र के लिए सिफारिश की गई उन्नत किस्मों का चयन करके ही बीजों की बुवाई करें खरीफ फसल हेतु किस्में:-  एग्रीफाउंड डार्क रेड, लाइन 883 ,एन -53, भीमा सुपर, भीमा रेड, भीमा डार्क रेड, भीमा शुभ्रा, भीमा श्वेता, भीमा सफेद, इत्यादि प्रमुख किस्में हैं.

एग्रीफाउंड डार्क रेड:-

यह प्रजाति राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान द्वारा विकसित की गई है. यह किस्म देश के विभिन्न प्याज उगाने वाले भागों में खरीफ मौसम में उगाने के लिए उपयुक्त है. इस प्रजाति के शल्क कंद गहरे लाल रंग के गोलाकार होते हैं, शल्के अच्छी प्रकार से चिपकी होती हैं तथा मध्यम तीखापन होता है. फसल रोपाई में 90 से 100 दिनों में तैयार हो जाती है.  पैदावार 250 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा कुल विलय ठोस 12 से 15% तक होता है.

लाइन 883:-

यह प्रजाति राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान द्वारा 2015 मे विकसित की गई है. यह किस्म देश के विभिन्न प्याज उगाने वाले भागों में खरीफ मौसम में उगाने के लिए उपयुक्त है. इस प्रजाति के शल्क कंद गहरे लाल रंग के गोलाकार होते हैं, शल्के अच्छी प्रकार से चिपकी होती हैं तथा मध्यम तीखापन होता है फसल रोपाई में 80 से 85 दिनों में तैयार हो जाती है पैदावार 300 से 350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है.

भीमारेड

इस प्रजाति का प्याज एवं लहसुन अनुसंधान निदेशालय, राजगुरूनगर, पुने द्वारा सन् 2009 में विकसित किया गया.

  • कन्द आकर्षित लाल रंग के, गोलाकार होते है.

  • पौध रोपण के 100-120 दिनों में कन्द तैयार हो जाता है.

  • भण्डारण क्षमता साधारण होती है.

  • कुल विलेय ठोस 10-11% होता है.

  • औसत उत्पादन 250-300 कु./हे. होता है.

  • यह खरीफ मौसम के लिए जोन 6,7 एवं 8 के लिए अनुमोदित की गई है.

Onian Farming
Onian Farming

भीमासुपर

इस प्रजाति को प्याज एवं लहसुन अनुसंधान निदेशालय, राजगुरूनगर, पुने द्वारा सन् 2012 में विकसित किया गया है.

  • कन्द गोल और पतली गर्दन के होते हैं.

  • पौध रोपण के 110-115 दिनों मे कन्द तैयार हो जाता है.

  • भण्डारण क्षमता साधारण होती है.

  • कुल विलेय ठोस 10-11% होता है.

  • औसत उत्पादन खरीफ में 200-220 कु./हे. तथा पछेती खरीफ में 400-450 कु./हे. होता है.

  • यह खरीफ एवं पछेती खरीफ मौसम के लिए जोन 6,7 एवं 8 के लिए अनुमोदित की गई है.

बीज की मात्रा एवं बुवाई का समय

एक हेक्टेयर क्षेत्रफल की रोपाई के लिए 8 से 10 किलोग्राम बीज पर्याप्त रहता है. खरीफ में बीजों की बुवाई के लिए जून-जुलाई का समय सर्वोत्तम रहता है, जबकि पछेती फसल के लिए बीजों की बुवाई अगस्त- सितंबर तक कर सकते हैं.

पौध तैयार करने की विधि

गर्मियों में तेज हवा, लू एवं पानी की कमी के कारण खरीफ के मौसम में स्वस्थ पौध तैयार करना बहुत ही कठिन कार्य होता है, नतीजन इस मौसम में पौधों की नर्सरी में मृत्यु दर बहुत अधिक होती है. अतः हो सके तो नर्सरी किसी छायादार जगह अथवा छायाघर के नीचे तैयार करें. साथ ही इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए की इस समय वर्षा का दौर प्रारंभ होने वाला होता है जिससे समतल क्यारियों में ज्यादा पानी की वजह से बीज बह जाने का खतरा बना रहता है एवं खेतों में जल जमाव के कारण विनाशकारी काला धब्बा; एन्थ्रोक्नोजरोग का प्रकोप अधिक होता है. अतः पौधों को अधिक पानी से बचाने के लिए हमेशा जमीन से उठी हुई क्यारी (10 – 15 सेंटीमीटर ऊंची) ही तैयार करनी चाहिए. क्यारीयों की चौड़ाई 1 मीटर व लम्बाई सुविधा के अनुसार रख सकते हैं. दो क्यारियों के बीच में 30 सेंटीमीटर खाली जगह रखें जिससे खरपतवार निकालने वअतिरिक्त पानी की निकासी में सुविधा हो. एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में पौध रोपाई के लिए डायल 250 से 300 वर्ग मीटर क्षेत्र में पौधशाला की आवश्यकता होती है. जिसमें कि 80 से 100 (3 मीटर X 0.60 मीटर) क्यारियाँ पर्याप्त होती है. बीजों को किसी फफूंदनाशी दवा जैसेमेटा मेटाक्सिल 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज दर या ट्राईकोडर्मा मित्र फफूंदनाशी 4 - 6 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज दर उपचारित करके ही बुवाई के काम लेवें . बीज की बुवाई हमेशा लाइनों में ही करें.  इसके लिए 5 - 6 सेंटीमीटर दूरी पर लाइने तैयार करके बीजों की बुवाई करें. लाइनों को छनी हुई गोबर की खाद एवं मिट्टी द्वारा ढक देना चाहिए. नमी संरक्षण हेतु पौधशाला को सूखी घास द्वारा ढक देना चाहिए.  अंकुरण के बाद घास को हटा देते हैं. इस मौसम में तापमान को स्थिर रखने के लिए फवारे से पानी देते हैं. पौध को बीमारी से बचाने के लिए 2-3 ग्राम मात्रा  प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए.  ट्राईकोडर्मा विरिडी (5 ग्राम प्रति लीटर) का उपयोग आद्रगलन से बचाने के एवं स्वस्थ प्राप्त करने के लिए आवश्यक है. कई बार देखने में आता है कि पौध का विकास अच्छा नहीं हो पाता है एवं पौध पीली पड़ने लग जाती है इस स्थिति में पानी में घुलनशील एन.पी.के. उर्वरक (19:19:19 एन.पी.के 5 ग्राम प्रति लीटर पानी) का पर्णीय छिड़काव करने से वे जल्दी ठीक हो जाते हैं. पौधशाला मे 0.2 % की दर से मेटालेक्सिल के पर्णीय छिड़काव का मृदाजनित रोगों को  नियंत्रत करने के लिए सिफारिश की गई है. कीड़ों का प्रकोप अधिक होने पर 0.1 % फिप्रोनील का पत्तो पर छिडकाव करना चाहिए. खरीफ में 6-7 सप्ताह में जब पौध 15-20सेंमी. की हो जाये तो  रोपाई के लिए तैयार हो जाती है.

खेत की तैयारी

मिट्टी पलटने वाले हल से खेत की एक गहरी जुताई करके 2-3 जुताई देशी हल से कर लेवे, जिससे मिट्टी भूरी भुरभुरी हो जाए. खेत तैयार करते समय अंतिम जुताई के समय गोबर की खाद को भी अच्छी तरह मिला देना चाहिए . खरीफ के मौसम में पौध की बुवाई हेतु उठी हुई क्यारियां अथवा डोलियां अच्छी रहती हैं, जिससे पानी भरने की स्थिति में भी पौध खराब नहीं होती एवं फसल स्वस्थ रहती है.

पौध की रोपाई

जब पौध लगभग 6-7 सप्ताह में रोपाई योग्य हो जाती है. खरीफ फसल के लिए रोपाई का उपयुक्त समय जुलाई के अंतिम सप्ताह से लेकर अगस्त तक कर सकते हैं खरीफ मौसम में देरी करने से अथवा रबी मौसम में जल्दी रोपाई करने से फूल निकल आते हैं रोपाई करते समय कतारों से बीच की दूरी 15 सेंटीमीटर पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर रखता है. रोपाई के समय पौधे के शीर्ष का एक तिहाई भाग काट देना चाहिए जिससे उनकी अच्छी स्थापना हो सके . जड़ों को हमेशा फफूंद नाशी  घोल से 2 घंटे के लिए दोबारा डूब आने के बाद रोपित करें जिससे बीमारियों से बचाव हो सके.

उर्वरक एवं खाद

प्याज के लिए अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद 400 से 500 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से खेत तैयार करते समय मिला देवें, इसके अलावा 100 किलो नत्रजन 50 किलो फास्फोरस 50 किलो पोटाश की आवश्यकता होती है नत्रजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई से पूर्व खेत की तैयारी के समय देवें नत्रजन की शेष मात्रा रोपाई के 1 से डेढ़ माह बाद खड़ी फसल में दे दे जिनकी कमी वाले क्षेत्रों में रुपए से पूर्व जिंक सल्फेट 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर भूमि में मिलावे अथवा रोपाई की कमी के लक्षण दिखाई देने पर 5 किलोग्राम जिंक सल्फेट का पौधों के बाद 60 दिन बाद छिड़काव करें.

प्याज में पोटाश की कमी के लक्षण

इस पोषक तत्व की कमी के कारण पौधों के पत्तों के शिरे सूखने लग जाते हैं, साथ ही यह झुलसे हुए दिखाई देते हैं. कंद का आकार भी छोटा रह जाता है और उन में नमी भी ज्यादा होती है. ऐसे पौधों की बढ़वार रुक जाती है, जिससे यह कमजोर ही रह जाते हैं और उनकी कीड़े और सूखा सहन करने की क्षमता कम हो जाती है. कंद की गुणवत्ता व भंडारण क्षमता कम हो जाती है.

सिंचाई

प्याज की फसल को प्रारंभिक अवस्था में कम सिंचाई की आवश्यकता होती है. बुवाई या रोपाई  के साथ एवं उसके तीन-चार दिन बाद हल्की सिंचाई अवश्य करें ताकि मिट्टी नम रहे. परंतु बाद में सिंचाई की अधिक आवश्यकता रहती है. कंद बनते समय पर्याप्त मात्रा में सिंचाई करनी चाहिए.फसल तैयार होने पर पौधे के शीर्ष पीले पडकर गिरने लगते हैं इस समय सिंचाई बंद कर देनी चाहिए.

खरपतवार नियंत्रण

पौध को मुख्य खेत में लगाने के कुछ समय पश्चात उनके आस-पास विभिन्न प्रकार के खरपतवार भी उगाते हैं जो कि पौधों के साथ-साथ पोषक तत्वों, स्थान, नमी आदि के लिए प्रतिस्पर्धा करते रहते हैं, इसके साथ ही यह विभिन्न प्रकार की कीट एवं बीमारियों को आश्रय देते हैं. प्याज के पौधों की आपस की दूरी कम एवं जड़े अपेक्षाकृत कम गहराई तक जाती है, जिसके कारण अच्छी पैदावार के लिए निराई -गुड़ाई ,खरपतवार की रोकथाम समय से होनी चाहिए.अतःओक्सीडाइजिल (0.5 मिली प्रति लीटर पानी) का उपयोग  रोपाई के समय करना चाहिए और फिर रोपाई के 40 से 60 दिनों के बाद एक बार हाथ से निराई – गुडाई की आवश्यकता होती है.

पौध संरक्षण

बैंगनी धब्बा या स्टेमफीलियम झुलसा रोग से बचाव के लिए मैन्कोज़ेब 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर 10 से 15 दिनों के अंतर पर छिड़काव करें. छिड़कने वाले घोल में चिपकने वाली दवा अवश्य मिलाएं. उपरोक्त कीट एवं बीमारियों में दोनों दवाएं एक साथ मिलाकर छिड़क सकते हैं. प्याज खोदने के 10 दिन पूर्व छिड़काव बंद कर देना चाहिए.

फसल को थ्रिप्स नामक कीड़े से बचाने के लिए इमिडाक्लोरोप्रिड 17.8SL(1मिली प्रति लीटर पानी में) का छिड़काव करना चाहिए.

खुदाई व उपज

खरीफ प्याज की फसल को तैयार होने में बुवाई से लगभग 5 माह लग जाते हैं, क्योंकि गांठे नवंबर में तैयार होती हैं जिस समय तापमान काफी कम होता है. पौधे पूरी तरह से सूख नहीं पाते हैं, इसलिए जैसे ही गांठे अपने पूरे आकार की हो जाएं एवं उनका रंग लाल हो जाए, तो करीब 10 दिन खुदाई से पहले सिंचाई बंद कर देनी चाहिए. इससे गांठे सुडौल एवं ठोस हो जाती हैं तथा उनकी वृद्धि रुक जाती है. जब गांठे अच्छी आकार की होने पर भी खुदाई नहीं की जाती तो वह फटना शुरू कर देती हैं. खुदाई करके इनको कतारों में रखकर सुखा देते हैं. पत्ती को गर्दन से 2.5 सेंटीमीटर ऊपर से अलग कर देते हैं और फिर 1 सप्ताह तक सुखा लेते हैं. सुखाते समय सड़े हुए, कटे हुए, दो- फाड़े, फूलों के डंठल वाली एवं अन्य खराब गांठे निकाल देते हैं.

प्याज की फसल 90 से 110 दिन में तैयार हो जाती है, खरीफ मौसम में पत्तियां गिरती नहीं है. अतः जब गांठो का आकार 4 से 6 सेंटीमीटर व्यास वाला हो जाए तो पत्तियों को पैरों से जमीन पर गिरा देना चाहिए जिससे पौधे की वृद्धि रुक जाए एवं गांठे ठोस हो जावे. खरीफ में 200-250 कंदो की प्रति हेक्टर तक उपज प्राप्त हो जाती है.

लेखक: कामिनी पराशर,  आभा पराशर, ओमप्रकाश*, प्रेरणा डोगरा, रमेश कुमार आसिवाल 
कृषि विज्ञानं केंद्र, सिरोही (एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, जोधपुर)
कॉलेज ऑफ़ एग्रीकल्चर, लालसोट ( श्री कर्ण नरेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय, जोबनेर) 
[email protected]

English Summary: Complete information on onion cultivation Published on: 26 March 2021, 05:08 PM IST

Like this article?

Hey! I am KJ Staff. Did you liked this article and have suggestions to improve this article? Mail me your suggestions and feedback.

Share your comments

हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें. कृषि से संबंधित देशभर की सभी लेटेस्ट ख़बरें मेल पर पढ़ने के लिए हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें.

Subscribe Newsletters

Latest feeds

More News