अगर आप कृषि क्षेत्र से जुड़ा बिज़नेस आइडिया (Buisness Idea) अपनाकर अपना नसीब आजमाना चाहते हैं, तो आपके पास कई विकल्प हैं, जिनके जरिए आप अच्छी कमाई कर सकते हैं. आज हम भी एक ऐसा कृषि क्षेत्र से जुड़ा बिजनेस आइडिया लेकर आए हैं, जो आपके लिए काफी लाभकारी साबित हो सकता है. दरअसल, हम अफीम की खेती (afeem farming ) की बात कर रहे हैं.
हालांकि, भारत में कुछ किसान अफीम की खेती (How to do afeem farming in india) करते हैं, लेकिन वे इससे तगड़ा मुनाफा कमाते हैं. मगर अफीम की खेती (Afeem Farming) करना इतना आसान नहीं होता है, क्योंकि इसके लिए तमाम नियम और शर्तों का पालन करना होता है और सबसे जरूरी है कि इसकी खेती के लिए सरकार से लाइसेंस लेना पड़ता है. तो चलिए आपको इससे जुड़ी सभी अहम जानकारी देते हैं.
अफीम की खेती का समय (Opium cultivation time)
इसकी खेती ठंड के दिनों में होती है. यानि आप अक्टूबर से नवंबर के बीच में फसल की बुवाई कर सकते हैं.
अफीम की खेती का तरीका (Opium cultivation method)
इसके लिए पहले खेत को 3 से 4 बार अच्छी तरह से जोता जाता है. इसके बाद गोबर की खाद या वर्मी कंपोस्ट डाली जाती है. मगर ध्यान दें कि इसकी खेती में एक न्यूनतम सीमा तक पैदावार करना जरूरी होता है, क्योंकि यदि ऐसा नहीं होता है आपका लाइसेंस कैंसल हो सकता है. इसके साथ ही जमीन में पर्याप्त मात्रा में पोषण होना चाहिए.
कहां से मिलता है लाइसेंस और बीज? (Where do I get licenses and seeds?)
आपको अफीम की खेती (Afeem Farming) के लिए सबसे पहले लाइसेंस लेना होगा. ये लाइसेंस कुछ खास जगहों पर ही मिलता है. आप कितने खेत में अफीम की खेती कर सकते हैं, ये भी पहले से ही तय किया जाता है. दरअसल, अफीम की खेती के लिए लाइसेंस वित्त मंत्रालय की तरफ से जारी होता है. आखिरी बार इसके लाइसेंस के लिए नियम और शर्तों की लिस्ट 31 अक्टूबर 2020 को जारी की गई थी. इसे क्राइम ब्यूरो ऑफ नारकोटिक्स की वेबसाइट से डाउनलोड कर सकते हैं. नारकोटिक्स विभाग के कई इंस्टीट्यूट अफीम पर रिसर्च करते हैं. यहां आपको अफीम का बीज भी मिल जाएगा. अफीम की कई किस्में काफी लोकप्रिय हैं, जैसे कि जवाहर अफीम-16, जवाहर अफीम-539 और जवाहर अफीम-540 किस्म.
अफीम की कटाई (Opium harvest)
अफीम के पौधे में लगभग 95 से 115 दिनों में फूल आने लगते हैं फिर धीरे-धीरे फूल झड़ जाते हैं और लगभग 15 से 20 दिन में पौधों में डोडे लग जाते हैं. बता दें कि अफीम की कटाई एक दिन में नहीं की जाती है, बल्कि कई बार में की जाती है. सबसे पहले डोडों पर दोपहर से शाम तक के बीच में चीरा लगाया जाता है फिर डोडे से एक तरल निकलने लगता है, जिसे पूरी रात निकलने के लिए छोड़ दिया जाता है. इसके अगले दिन तक तरल डोडे पर जम जाता है, जिसे धूप निकलने से पहले ही इकट्ठा किया जाता है. इस प्रक्रिया को तब तक दोहराया जाता है, जब तक डोडे से तरल निकलना बंद ना हो जाए.
अफीम की खेती में लागत और मुनाफा? (Cost and profit in opium cultivation?)
इसकी खेती के लिए किसान को प्रति हेक्टेयर लगभग 7 से 8 किलो बीज की जरूरत होती है. हालांकि, इसका बीज 150 से 200 रुपए प्रति किलो के हिसाब से मिल जाता है. वहीं एक हेक्टेयर से लगभग 50 से 60 किलो अफीम का लेटेक्स इकट्ठा होता है. यह लेटेक्स डोडे से निकले तरल के जमने से बनता है. इसके लिए सरकार की तरफ से लगभग 1800 रुपए प्रति किलो का भाव मिलता है. अगर इसे काले बाजार में बेचा जाए, तो 60 हजार रुपए से 1.2 लाख रुपए तक मिल जाते हैं.
अगर किसान एक हेक्टेयर में अफीम सरकार को बेचते हैं, तो उसे लगभग 1 लाख रुपए की आमदनी हो जाती है. इसमें से बीज का खर्च, खेती का खर्च और लेबर का खर्च निकालना होता है, जो मुमकिन नहीं होता है, इसलिए लोग अफीम की कालाबाजारी करते हैं. हालांकि, बाजार में किसान लेटेक्स के अलावा डोडे के बीज को बेचकर भी कमाई कर सकते हैं. इसे खस-खस कहते हैं. खस-खस को किचन में मसाले के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. बता दें कि हर साल अप्रैल में नार्कोटिक्स विभाग किसानों से अफीम खरीदता है.
ध्यान रहे कि चीरा लगाने से लगभग हफ्ते भर पहले सिंचाई करनी चाहिए, ताकि अच्छा उत्पादन मिल सके. जब फसल से तरल निकलना बंद हो जाए, तब फसल को सूखा दिया जाता है. इसके बाद डोडे तोड़कर बीज निकाला जाता है.
अफीम की खेती से जुड़ी विशेष बातें (Special facts related to opium cultivation)
अफीम की खेती हर जगह नहीं की जा सकती है. इसकी खेती यूपी, राजस्थान और मध्य प्रदेश की कुछ ही जगहों पर की जा सकती है. अगर राजस्थान की बात करें, तो इस राज्य के झालावाड़, भीलवाड़ा, उदयपुर, कोटा, चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़ जैसी जगहों पर खेती की जा सकती है.
इसके साथ ही यूपी में बाराबंकी में अफीम की खेती कर सकते हैं, तो वहीं मध्य प्रदेश में नीमच, मंदसौर जैसी जगहों पर अफीम उगाया जा सकता है. इसकी खेती के लिए नए लाइसेंस बहुत ही कम जारी किए जाते हैं, जबकि अधिकतर पुराने ही रीन्यू किए जाते हैं.
जानकारी के लिए बता दें कि अगर आप अफीम की खेती कर रहे हैं और ओलावृष्टि, बारिश या अन्य किसी वजह से फसल खराब हो जाए, तो आपको तुरंत नार्कोटिक्स विभाग को सूचित करना होता है. इसके साथ ही बेकार हो चुकी फसल को पूरी तरह नष्ट करना होता है, ताकि आपको मुआवजा मिल सके.
ध्यान रखें कि अफीम के डोडों में तोते फसल को बहुत नुकसान करते हैं. उन्हें शुरू से ही रोकने की कोशिश जरूर करें, क्योंकि अगर एक बार नशीले डोडों की लत लग जाती है, तो वह उन्हें खेत से दूर भगाना काफी मुश्किल होता है.
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