भारत की लगभग 65 प्रतिशत आबादी कृषि से जुड़ी है, लेकिन खेती से देश की कुल राष्ट्रीय आय का लगभग 24 प्रतिशत हिस्सा ही प्राप्त होता है. जबकि दूसरी और गैर कृषि क्षेत्र में लगे 35% श्रमिकों से कुल राष्ट्रीय आय का लगभग 60% हिस्सा प्राप्त होता है. कृषि क्षेत्र के श्रमिकों की उत्पादिता अत्यंत नीचे है. भारत में विभिन्न फसलों की औसत उपज अब भी अत्यंत कम है. गेहूं, चावल, गन्ना, कपास, तिलहन और दलहन आदि फसलों की प्रति हेक्टेयर औसत उपज कई देशों की औसत उपज से लगभग एक तिहाई कम है.
कृषि क्षेत्र में प्रयुक्त होने वाली परंपरागत उत्पादन प्रविधि, कृषि व्यवसाय का मात्र जीवन निर्वाह का व्यवसाय होना खाद्यान्न फसलों की प्रधानता इत्यादि इसके पिछड़ेपन के घोतक हैं. अब भी किसी-किसी वर्ष मानसून प्रतिकूल होने पर कृषि अर्थव्यवस्था चरमरा जाती है.
1. इस समय भारत की हालत यह है कि विपणन की समुचित व्यवस्था नहीं है. किसानों को विवशतापूर्ण अपनी फसलों की बिक्री करनी पड़ रही है. उन्हें बाजार कीमतों की समय से जानकारी नहीं हो पाती है. समान कृषकों की पहुंच बाजारों और मंडियों तक नहीं हो पाती है. इस कारण उसे अपनी उपज की उचित कीमत नहीं मिल पाती है. संग्रह करने की उचित व्यवस्था न होने के कारण फसल तैयार होने पर ही उसे बेचना आवश्यक हो जाता है.
2. किसी भी क्षेत्र में पूंजी निर्माण का व्यापक महत्व होता है. हालांकि कृषि क्षेत्र में पूंजी निर्माण बढ़ा है, लेकिन हाल के कुछ वर्षों में कृषि क्षेत्र में पूंजी निर्माण की वृद्धि दर अत्यंत कम हो गई है. राजकीय क्षेत्र के सापेक्ष प्रतिशत भी घट गया है. कृषि क्षेत्र के शक्ल पूंजी निर्माण में 1960 व 61 में राजकीय क्षेत्र का अंश 35.3 प्रतिशत का जो 2000 और 2001 में घटकर 24.2 प्रतिशत हो गया. कृषि क्षेत्र में किया जाने वाला कुल विनियोग 19,93,794 में सकल घरेलू उत्पाद का 1. 6% था जो क्रमशः घटकर 2000-01 में सकल घरेलू उत्पाद को 1. 3% हो गया.
3. भारत में जनसंख्या पहले से ही अधिक है और इसमें तेजी से वृद्धि भी हो रही है. इसलिए यहां भूमि पर प्रयोगकर्ताओं का दबाव अत्यधिक है साथ ही प्रति व्यक्ति भूमि की उपलब्धता भी अत्यंत कम है. भारत में विश्व के कुल क्षेत्रफल का केवल 4% भाग है, जबकि यहां विश्व की लगभग 16 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है. यहां प्रति व्यक्ति भूमि उपलब्धता केवल 0.14 हेक्टेयर है और कृषि पर अत्यधिक जनसंख्या के कारण खेतों का आकार अत्यंत छोटा हो गया है.
4. कृषि साख की मुख्य आवश्यकता कृषि अर्थव्यवस्था के लघु एवं सीमांत कृषकों के लिए है. भारत में कृषि क्षेत्र के लिए मात्रात्मक और गुणात्मक आधार पर साख सुविधाओं की कमी है. कमजोर आर्थिक आधार के कारण अपने संसाधनों से वे फसल के लिए आवश्यक कृषि निवेशों को पूर्ति नहीं कर पाते हैं और समांतर प्रतिभूति के अभाव में उन्हें मौद्रिक संस्थाओं से भी लोन नहीं मिल पाता है. यद्यपि संगठित आधार पर कृषि साख की आपूर्ति हाल के वर्षों में बढ़ी है. परंतु अब भी आवश्यकता के अनुसार अत्यंत कम है. कृषि अर्थव्यवस्था के अनुसार कमजोर वर्ग के लोगों को उत्पादक और सक्षम बनाने के लिए कृषि साख की आपूर्ति बढ़ाई जानी आवश्यक है.
5. भारत में कृषि के जोत का स्वरूप काफी छोटा है. इसी वजह से भी भारतीय कृषि का क्षेत्र पिछड़ा है. अनुमानतः भारत में लगभग 75% जोतों का आधार 5 एकड़ से कम है. जोत का छोटा आकार होने के कारण कृषक अपनी जोत पर आधुनिक कृषि निवेशों का सम्यक प्रयोग नहीं कर पाते हैं, क्योंकि इन जोतों पर आधुनिक कृषि निवेशों का प्रयोग और अनार्थिक हो जाता है. इसलिए उत्पादन और उत्पादिता नीचे रह जाती है. जोतों का आकार छोटा होने के साथ-साथ एक अन्य मुख्य समस्या यह है कि अब भी कृषकों के खेत बिखरे हुए हैं जिस पर कृषि कार्य करने से उनके समय और साधन का अपव्यय होता है. परिणाम स्वरुप उत्पादन के स्तर में कमी आ जाती है.
6.जो अधिक उपजाऊ किस्में इस समय उपलब्ध हैं वह सुनिश्चित और प्राप्त सिंचाई सुविधाओं के अपेक्षा करती है. अतः कम वर्षा और अल्प सिंचाई सुविधा वाले क्षेत्र के लिए अधिक उपजाऊ किस्में के प्रचार की आवश्यकता है देश के कुल 329 मिलियन हेक्टर भू क्षेत्र में 340 लाख हैक्टेयर क्षेत्र बाढ़ ग्रस्त है और 585 लाख हेक्टर क्षेत्र सुखे से पीड़ित है. इन क्षेत्रों की कृषि के पिछड़ेपन का समाधान करने और उसे सक्षम बनाने के लिए ऐसे बीजों की प्रचलन की आवश्यकता है. जो अपेक्षाकृत विषम परिस्थितियों में उपज दे सकें.
कृषि निवेशों के संदर्भ में सतत् स्थितिपरक अनुसंधान किए जाने की जरूरत है. विविधतापूर्ण भारतीय अर्थव्यवस्था में एक ही प्रकार के कृषि प्रणाली समान रूप से सभी राज्यों के लिए लाभदायक नहीं होगी. अतः यह आवश्यक है कि समरूप कृषि क्षेत्र का पता लगाया जाए और क्षेत्र की आवश्यकताओं और परिस्थितियों के अनुरूप बीजों और कृषि प्रणालियां का प्रचलन किया जाए. भारत में उपलब्ध जल संसाधनों द्वारा कुल 138 मिलियन हेक्टर भूमि सींची की जा सकती है, जबकि अब कुल सिंचित क्षेत्र केवल 90.7 मिलियन हेक्टेयर ही है. देश में अब भी से 60% कृषि क्षेत्र अधिक उपजाऊ किस्म के अधीन लाया जाना है. इससे उत्पादन वृद्धि की प्रचुर संभावना बनी हुई है.
रबीन्द्रनाथ चौबे
(ब्यूरो चीफ, कृषि जागरण, बलिया, उत्तरप्रदेश)
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