सावन का महीना भगवान शिव को प्रसन्न करने का महीना है. भोलेनाथ के बारे में तो वैसे भी कहा जाता है कि वह इतने जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं कि पल भर में खुशियां झोली में डाल देते हैं. भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए ना तो धन-संपत्ति या महंगें अनुष्ठानों की आवश्यक्ता है और ना ही किसी तरह की भव्य आडंबरों की. जगत के पालनहार तो भक्तों की शुद्ध मन से की गई श्रद्धा एवं भक्ति भाव से ही खुश हो जाते हैं. सावन के महीने में की जाने वाली कांवड़ यात्रा भी इसी का प्रतिक है.
सावन के इस सुंदर महीने में निकलने वाली शिवभक्तों की कांवड़ यात्रा भी इसी बात का एक प्रतीक है. लोग दूर-दूर से आकर कांवड़ में गंगाजल भर कर शिव का जलाभिषेक करते है. वैसे तो कांवड़ यात्रा संपूर्ण रूप से आडंबरों से दूर है, लेकिन फिर भी कुछ बातों का ध्यान जरूर रखा जाना चाहिए. जैसे महादेव को गंगाजल अर्पण करने से पूर्व कांवड़ को भूमि पर नहीं रखना चाहिए, क्योंकि जलस्रोत सीधे प्रभु से जुड़ा हुआ होता है. उसी तरह ध्यान रहे कि जल भरने के लिए जिस जलपात्र का उपयोग हो रहा हो, वह भले ही सस्ता हो लेकिन कहीं से टूटा-फूटा या पहले से उपयोग किया हुआ ना हो.
ध्यान रहे कि इस यात्रा के दौरान गंगाजल के लिए पसंद किए गए पात्र को साफ लकड़ी के डंडे पर रेशम या सूत की रस्सी से बांधना चाहिए. यात्रा के समय ध्यान प्रभु की भक्ति में लगाएं. किसी भी अपशब्दों का प्रयोग ना करें और ना ही किसी के लिए द्वेष भावना अपने मन में लाएं. कांवड़ यात्रा के दौरान व्रत रखें एवं यात्रा समूह में ही करें.
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