अरहर की खेती के लिए मटियार और नीची भूमि को छोड़कर बाकी सभी भूमि अच्छी मानी जाती है. दोमट मिट्टी, जहां पानी न रुके, सबसे उपयुक्त होती है. अफ्रीका को इसका उत्पत्ति स्थान माना जाता है, परंतु विगत 3000 वर्षों से भारत में इसकी खेती हो रही है. वर्षा के आरंभ में खरीफ की फसल के साथ बोई जाकर रबी की फसल के साथ मार्च तक तैयार हो जाती है. इसका पौधा लंबा तथा मझोले कद का फूल पीले,धूसर - हरी फलियां शाखा - प्रशाखाएं पर लगती है, तब अरहर का पेड़ झाड़ सरीखा लगता है. कच्ची फली के दाने तोतई और पकने पर पीले, लाल या काले हो जाते हैं. इसकी ज्यादातर दो ही किस्में होती हैं, जिसमें लाल और सफेद शामिल है. कड़के की ठंड में इसे पाले का डर रहता है. अरहर को तुवर भी कहा जाता है, पकने पर फसल को काटकर इससे दाने झाड़ लिए जाते हैं. इस खाद की जरूरत नहीं पड़ती बल्कि इसके बोने से खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती है.
गुणवत्ता
निघंटुकारों के अनुसार अरहर रूक्ष मधुर, कसैली, शीतल पचने में हल्की मला अवरोधक, वायु कारक, शरीर के वर्ण को सुंदर बनाने वाली, कफ एवं रक्त संबंधी विकारों को दूर करने वाली है. लाल अरहर की दाल मला रोधक,हल्की, तीक्षण और गरम बताई गई है. इसके अलावा, यह अग्नि को तेज करने वाली, कफ, विष, रक्त विकार, खुजली और पेट के कीड़ों को खत्म करने में सहायक है. अरहर की दाल को पथ्यकर (स्वास्थ्यवर्धक) माना गया है. यह हल्की वातजन्य समस्याओं को दूर करने, कृमिनाशक, त्रिदोष शमन, भूख बढ़ाने, बालों के लिए लाभकारी, बुखार नाशक, पित्त दोष और गुल्म रोगों में लाभकारी होती है. अरहर में प्रोटीन 21 से 26, चिकनाई 2. 50 कार्बो वेज 54. 6, कार्बोहाइड्रेट 60, खनिज लवण 5. 50 और जल की मात्रा 10% तक होती है.
उपयोगिता
अरहर की दाल खाने में बड़ी स्वादिष्ट होती है, इसकी उपयोगिता हर घर के रसोई में है. अरहर की कच्ची हरि फलियों में से दाने निकल कर उसकी स्वादिष्ट सब्जी बनाई जाती है तथा अन्य सब्जियों बैगन आलू आदि के साथ इसे बनाया जाता है. अरहर के दोनों को उबालकर प्राप्त जल में छौंककर स्वादिष्ट पतली तरकारी बनाई जाती है. इसकी दाल में पूरण बनाया जाता है. अरहर की दाल में इमली, आम की खटाई और गरम मसाले डालकर बनाने से ये बेहद रूचिकर बन जाती है. वैसे तो यह दाल पेट में गैस बनती है परंतु प्राप्त मात्रा में देसी घी डालकर खाने से यह गैस नहीं बनती. क्योंकि यह तिरी दोषनाशक है, इसलिए छोटे बड़े सभी के लिए अनुकूल है. यह दाल गर्म तथा रूक्ष तो होती ही है, जिनको इसकी प्रकृति के कारण नुकसान दे हो जाती है, वह लोग इस दाल को देसी घी में छौंकर सेवन करें.
दाल के अलावा अरहर के पौधों की कोमल टहनियां, पत्ते आदि दुधारू पशुओं को खिलाए जाते हैं. अरहर की सूखी लकड़ी गांव में मकान की छत पाटने झोपड़ी, छप्पर, बुर्ज तथा बाड़ बनाने में उपयोगी है. गांव में यह जलावन के रूप में सस्ता ईंधन है
औषधीय उपयोग
आयुर्वैदिक डॉक्टर के दृष्टि में अरहर का घरेलू चिकित्सा में अनेक के रूपों में उपयोग है यह गरीब से लेकर आमिर तक की रसोई में प्रमुखता से पकाई जाती है. यह अर्श ज्वर तथा गुल्म रोगों में बड़े फायदेमंद है. यह रक्त को ठीक करती है.
कटे-फटे एवं घाव - अरहर के पत्तों को पीसकर लुगदी से बना लें इसे कटे फटे एवं घाव पर बांधने से घाव जल्दी ठीक हो जाते हैं.
नशा मुक्ति के लिए - अरहर के ताजा पत्तों का रस बार-बार पिलाने से अफीम तथा विष का असर कम हो जाता है. इसके अलावा अरहर की दाल को पानी में कुछ देर भिगोकर बारीक पीस लें फिर इसे छानकर पिलाने से भांग का नाश शीघ्र उतर जाता है.
आंख पर फुंसी - अरहर की दाल को साफ पानी में पीसकर अथवा पत्थर पर घिसकर आंख के फुंसी पर दिन में दो से तीन बार लगाने से ठीक हो जाती है.
आधासीसी दर्द - अरहर को ताजा पत्तों का रस और दूब रस सम मात्रा में मिलाकर नस्य देने से छींक आती है और फिर आधासीसी दर्द शांत हो जाता है. यह प्रयोग लगातार 3 दिन करें.
रक्त एवं पित्त - अरहर के ताजा पत्तों का रस 10 ग्राम तथा देसी घी 30 ग्राम मिलाकर पीने से रक्त पित मिट जाता है, मुंह तथा नाक से होने वाला रक्तस्राव भी बंद हो जाता है.
खाज और खुजली - अरहर के पत्तों को जलाकर राख बना लें, इस राख को ताजा दही में मिलाकर खाज खुजली पर लगाने से खुजली शांत हो जाती है.
हड़फूटन कंपकंपी - अरहर की दाल को नमक और सौंठ में मिलाकर छौंक लें की लुगदी बनाकर शरीर की मालिश करने से हड़फूटन मिटती है. सर्दी की कंपकंपी भी दूर हो जाती है.
सोज पर - अरहर की दाल को साफ पानी के साथ पीसकर पुल्टिस बना लें फिर इसे हल्का गर्म करके सूजने वाले स्थान पर बांधे इसे दो-चार बार प्रयोग करने से सोज उतर जाती है.
मुंह के छाले - छिलके सहित अरहर की दाल को एक गिलास पानी में भिगोकर इस पानी से दिन में दो-तीन बार कुल्ला गरारा करने से मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं. इससे शरीर और पेट की गर्मी भी शांत होती है. इसके अलावा अरहर की ताजा कोमल पत्ती चबाने से मुंह के छालों में आराम मिलता है.
रक्त प्रदर - अरहर के ताजा कोमल 20 ग्राम पत्तों को शुद्ध जल के साथ पिस लें अब इसे एक गिलास पानी में घोलकर छान लें मिश्री या गुड में डालकर रोगी को पिला दे, इसकी एक ही खुराक में आराम दिखने लगेगा.
खांसी एवं गले की खिचखिच - अरहर के कोमल पत्ते तथा मिश्री को मुंह में रखकर धीरे-धीरे पान की तरह चबाते हुए इसका रस चूसते रहें इससे गले की खिच खिच तथा खांसी का लाभ होता
दुधारू वृद्धि के लिए - अरहर की दाल को सूप बनाएं उसमें शुद्ध देसी घी मिलकर शिशु को दूध पान करने वाली माता को नित सेवन करना चाहिए. इससे स्तनों में दूध की मात्रा बढ़ जाती है.
अरहर की शुद्ध दाल का करें सेवन
अरहर के बिना छिलके वाली दाल में प्रोटीन वसा विटामिन ए बी खनिज लवण कार्बो वेज फास्फोरस लोह तत्व प्राप्त मात्रा में होते हैं. ज्यादा खाने पर यह पेट में गैस पैदा करती है, अतः देसी घी का तड़का लगाकर खाएं. व्यापारी इसकी दाल में प्रतिबंधित खेसारी का दाल की मिलावट कर देते हैं. अरहर की शुद्ध दाल का ही सेवन करें.
लेखक: रबीन्द्रनाथ चौबे, ब्यूरो चीफ, कृषि जागरण, बलिया उत्तरप्रदेश.
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