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भारत में कृषि बीज उद्योग की स्थिति, यहां जानें पूरी जानकारी

बीजों की अल्प निधानी आयु यानी सेल्फ लाइफ आमतौर पर प्रमाणित बीज केवल एक मौसम के लिए अच्छे होते हैं, और अगले मौसम में उपयोग करने से पहले उन्हें फिर से उपयोग योग्य की आवश्यकता होती है. बीजों को पूरे एक वर्ष तक भंडार रखने के लिए भंडारों में आवश्यक उपकरणों का अभाव है.

लोकेश निरवाल
भारत में बीज उद्योगों की स्थिति (Image Source: Pinterest)
भारत में बीज उद्योगों की स्थिति (Image Source: Pinterest)

भारत में बीज क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर के दो निगम अर्थात राष्ट्रीय बीज निगम और भारतीय राज्य फॉर्म निगम, 13 राज्य बीज निगम और लगभग 100 प्रमुख बीज कंपनियां शामिल है. गुणवत्ता आश्वासन और प्रमाणन के लिए 101 राज्य बीज परीक्षण प्रयोगशालाएं और 22 राज्य बीज प्रमाणन एजेंसियां हैं. राष्ट्र में बेचे जाने वाले बीजों की गुणवत्ता को नियंत्रित करना का आधार 1966 के बीज अधिनियम द्वारा प्रदान किया गया है. किसानों को हितों में बीज निर्यात को बढ़ावा देने के लिए बीजों के निर्यात की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित किया गया है.

निर्यात और आयात नीति 2022 व 07 के तहत प्रतिबंधित सूची में वन्य किस्में, जर्मप्लाज्म/ जननद्रव्यों, प्रजनक बीजों और प्याज के बीजों को छोड़कर विभिन्न फसलों के बीजों को ओपन जनरल लाइसेंस के तहत रखा गया है.

बीज उद्योग/Seed Industry

भारत में बीज उद्योग में विशेष रूप से पिछले 30 वर्षों में बहुत महत्वपूर्ण विकास हुआ है. राष्ट्रीय बीज परियोजना चरण- 1  (1977 - 78 ) चरण- 2 ( 1978 - 79 ) और चरण- 3 ( 1990 - 91 ) के माध्यम से भारत सरकार द्वारा बीज उद्योग को पुनर्गठन किया गया, जिसने बीज और अवसंरचना को मजबूत किया जो उन समयों में सबसे अधिक आवश्यक और प्रासंगिक थी. इसे एक संगठित बीज उद्योग को आकार देने में पहला मोड़ कहा जा सकता है. नई बीज विकास नीति (1988 - 1989 ) की शुरुआत भारतीय बीज उद्योग में एक अन्य महत्वपूर्ण मील का पत्थर थी. जिसने बीज उद्योग के रूपरेखा को ही बदल दिया. इस नीति ने भारतीय किसानों को दुनिया में कहीं भी उपलब्ध सर्वोत्तम बीज और रोपण सामग्री तक पहुंच प्रदान की.

इस नीति ने भारतीय बीज क्षेत्र में निजी व्यक्तियों, भारतीय कॉरपोरेट और बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा प्रशंसनीय निवेश को प्रोत्साहित किया, जिसमें से प्रत्येक बीज कंपनियों में उत्पाद विकास के लिए मजबूत अनुसंधान और विकास (R - D ) आधार के साथ अनाज और सब्जियों के उच्च मूल वाले संकर किस्म के साथ-साथ बीटी कपास जैसे उच्च तकनीकी वाले उत्पादों पर अधिक जोर दिया गया. इसके परिणाम स्वरुप किसानों के पास उत्पादों के व्यापक विकल्प हैं और बीज उद्योग आज किसान केंद्रीय दृष्टिकोण के साथ काम करने के लिए तैयार हैं और बाजार संचालित है. हालांकि बुनियादी ढांचे प्रौद्योगिकियों दृष्टिकोण और प्रबंधन संस्कृति के संदर्भ में राज्य बीज निगम को भी उद्योग के अनुरूप खुद को बदलने की तत्काल आवश्यकता है ताकि वे प्रतिस्पर्धी बाजार में जीवित रह सकें और खाद्य व पोषण सुरक्षा प्राप्त करने के लिए खाद्य उत्पादन बढ़ाने में अपना योगदान अधिक कर सकें.

बीज उद्योग से संबंधित सांख्यिकी

  • देश में बीज उत्पादन में सार्वजनिक क्षेत्र की हिस्सेदारी सन 2017 व 18 में 42. 72% से घटकर सन 2020 व 21 में 35. 54% हो गई. इसी अवधि के दौरान निजी क्षेत्र का हिस्सा 57. 28% से बढ़कर 64. 46% हो गया, यह भारत के बीज क्षेत्र में निजी कंपनियों की बढ़ती भूमिका को उजागर करता है.

  • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अनुसार बीज आपूर्ति की कुल औपचारिक व्यवस्था में सार्वजनिक क्षेत्र की हिस्सेदारी 53. 25 प्रतिशत और निजी क्षेत्र की 46. 75% है.

  • सन 2022 तक संयुक्त राज्य अमेरिका 27 प्रतिशत चीन 20% फ्रांस 8% और ब्राजील 8% प्रतिशत के बाद भारतीय बीज क्षेत्र अब दुनिया का पांचवा सबसे बड़ा बीज बाजार है.

  • भारतीय बीज बाजार 2017 में 3. 6 बिलियन अमेरिकी डॉलर (36000 लाख रुपए) के मूल्य पर पहुंच गया, जिसमें 2010 से 2017 तक 17% से अधिक सीएजीआर की वृद्धि हुई है, और 2018 से 2023 तक 14. 3% की सीएजीआर से बढ़ने का अनुमान है जो 8 बिलियन अमेरिकी डॉलर (80000 लाख रुपए) से अधिक के मूल्य तक पहुंच जाएगा.

  • निर्यात के संदर्भ में भारत का बीज निर्यात प्रतिवर्ष (2020 तक) रुपए 1, 000 करोड़ से कम था. वार्षिक वैश्विक बीज व्यापार में  $ 14 बिलियन है. भारत में निश्चित रूप से 10% हिस्सेदारी हासिल करने की क्षमता है जो 2028 तक $ 1,4 विलियन या  रूपए 10,000 करोड़ है.

बीज उद्योग के समक्ष चुनौतियां

वितरण की समस्या

बीजों की अल्प निधानी आयु यानी सेल्फ लाइफ आमतौर पर प्रमाणित बीज केवल एक मौसम के लिए अच्छे होते हैं, और अगले मौसम में उपयोग करने से पहले उन्हें फिर से उपयोग योग्य की आवश्यकता होती है. बीजों को पूरे एक वर्ष तक भंडार रखने के लिए भंडारों में आवश्यक उपकरणों का अभाव है.

मांग की अनिश्चितता प्रकृति की अप्रत्याशितता, कमोडिटी की कीमतों में बदलाव और अन्य कारकों के कारण निजी या सहकारी के लिए प्रमाणित बीजों की मांग का सटीक अनुमान लगाना बेहद मुश्किल है.

प्रभावी निगरानी तंत्र का अभाव

जब बिक्री स्थान पर बीजों की गुणवत्ता को विनियमित करने की बात आती है तो कोई विश्वसनीय निगरानी प्रणाली मौजूद नहीं है. यहां तक कि जिन बीजों को नमूने एसएससी प्रयोगशाला परीक्षणों में विफल रहे, उन्हें भी विक्रेताओं द्वारा बेचा जाता है. एक बार जब कोई उत्पाद बिक जाता है तो बीज उत्पादक और विपणन कंपनियों का उसे पर अधिक नियंत्रण नहीं रह जाता है. यह मुख्य रूप से बीजों की बिक्री को विनियमित करने में होने वाले खर्चों के कारण होता है.

अवसंरचना की कमी

भारत में बीज उद्योग में प्राप्त बुनियादी ढांचे का अभाव है, जिसमें भंडारण सुविधा, प्रशिक्षण प्रयोगशालाएं और बीज प्रसंस्करण केंद्र शामिल है. इससे बीज की गुणवत्ता खराब होती है और उपज कम होती है.

खराब विस्तार सेवाएं

एक फॉर्म जिसे खुद को भारत में बीच बाजार में स्थापित करना है तो अपने उत्पाद को बेहतर उपज या कीट प्रतिरोध जैसे सहायक लाभ प्रदान करने के मामले में कुछ अलग करने की आवश्यकता है.

लेखक:

रबीन्द्रनाथ चौबे, ब्यूरो चीफ, कृषि जागरण, बलिया उत्तरप्रदेश

English Summary: Agricultural Seed Industry in India farmers Published on: 02 July 2024, 03:08 PM IST

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