बिहार के सभी जिलों में अब जलवायु के अनुकूल खेती की जाएगी. यह फैसला मौसम आधारित खेती के पायलट प्रोजेक्ट के सफल होने के बाद लिया गया है. राज्य में अभी आठ जिलों में मौसम आधारित खेती की जा रही थी. अब अगले पांच सालों में सरकार द्वारा तीस जिलों में लगभग ढ़ाई अरब रुपय खर्च करने की योजना बनायी है. इस कार्य में प्रगति लाने के लिए बोरलॉग इंस्टीट्यूट फॉर साउथ एशिया (बीसा), डॉ राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर तथा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, पूर्वी क्षेत्र, पटना यह सभी बड़े संस्थान तकनीकि मदद कर रहे हैं.
इस योजना में इन 30 जिलों को शामिल किया गया है
मौसम आधारित खेती का पहला चरण 2019-20 में शुरू किया गया था और इसमें मधुबनी, खगड़िया, भागलपुर, बांका, मुंगेर, नवादा, गया तथा नालन्दा जैसे जिलों को शामिल किया गया था. इन सभी जिलों में पांच वर्षों के लिए लगभग 6065.50 लाख रुपये आवंटित किये गये थे. वहीं आगे 30 जिलों में कार्य के लिए वर्ष 2023-24 तक कुल 23,848.86 लाख रूपये की स्वीकृति दी गयी है.इस कार्य के लिए बड़े संस्थानों के वैज्ञानिकों के साथ विचार-विमर्श किया गया है जिसमें अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, मनीला एवं अंतर्राष्ट्रीय आलू अनुसंधान संस्थान पेरू के वैज्ञानिकों के नाम शामिल हैं. इस योजना में फसल अवशेष प्रबंधन, धान एवं आलू से संबंधित तकनीकी हस्तक्षेप को शामिल किया गया है. इसमें विज्ञान केंन्द्रों का इस्तेमाल किया जाएगा और किसानों की मदद के लिए दुनियाभर के वैज्ञानिकों की मदद सलाह ली जाएगी. इस कार्य के लिए बोरलॉग इंस्टीट्यूट फॉर साउथ एशिया को नोडल एजेन्सी बनाया गया है.
किसानों को दिया जा रहा है प्रशिक्षण
पूरे साल के लिए बीसा द्वारा 150 एकड़ में तीन अलग-अलग फसले पैदा की जाती है. गेहूं की बुआई बिना खेतों को जोते हुए जीरो टिलेज अथवा हैप्पी सीडर के द्वारा की जाती है. किसानों को यह सभी चीज़ें सीखायी जाती हैं कि जलवायु के अनुकूल फसल तथा फसल प्रभेद के व्यवहार, धान की सीधी बुवाई, संरक्षित खेती, फसल अवशेष प्रबंधन यह सभी चीजों को सीखायी जाती हैं.बता दें कि पांच वर्षों के लिए 6065.50 लाख रुपये की राशि आठ जिलों के लिए स्वीकृति दी गयी थी. वहीं अब इसके सफल परिणाम से उत्साहित होकर शेष 30 जिलों में भी इस योजना को लागू करने के लिये वित्तीय वर्ष 2019-20 से 2023-24 तक के लिए 23,848.86 लाख रूपये की स्वीकृति प्रदान की गई है.
यह लेख बिहार के कृषि मंत्री डॉ. प्रेम कुमार के पोस्ट से लिया गया है.
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