आपने अभी तक बहुत कम ही सुना होगा कि राजनेताओं को अपने जीवन में बहुत कठिन स्थिति से गुजरना पड़ता है लेकिन नेहरू-गांधी परिवार के सदस्य वरुण गाँधी को यह कहना पड़ रहा है कि भारतीय जनता पार्टी ने उनका और उनकी माँ मेनका गांधी का बहुत सम्मान किया है. जिसके चलते बीजेपी से अलग होने के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं है लेकिन यह बात अब कहने सुनने की बात लगती है.
यह भी पढ़ें- मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार ने किया किसानों का कर्ज माफ़
जब से 2014 का लोकसभा चुनाव हुआ था तब से लगभग प्रतिदिन ये खबर आ रही है कि वरुण गांधी बीजेपी से अलग हो रहे हैं. साल 2013 भाजपा के इतिहास में पहली बार हुआ था जब सबसे कम उम्र के वरुण गाँधी को पार्टी महासचिव और पश्चिम बंगाल का प्रभारी घोषित किया गया था लेकिन जैसे ही साल 2014 का लोकसभा चुनाव हुआ उनसे सारी जिम्मेदारी छीन ली गई.
अगर देखा जाए तो देश को जिस परिवार ने सबसे ज्यादा राजनेता दिए उस परिवार से आया 40 साल का युवा सिर्फ सुल्तानपुर का सांसद ही बन कर खुश रहे यह बात सुनकर कुछ अटपटा नहीं लगता. अब ये भी ख़बर मिल रही है कि इस बार उन्हें सुल्तानपुर से टिकट नहीं मिल रहा है. यही बात सक्रिय बुद्धिजीवी और स्तंभकार वरुण गांधी पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर रहा है. जिसको लेकर पार्टी अभी संतुष्ट नहीं है.
यह भी पढ़ें- अब किसानों के हाथों में सीधा कैश देगी मोदी सरकार
इसका दूसरा पहलू यह भी माना जा रहा है जो जमीनी स्तर से ज़्यादा जुड़ा हुआ है. अमेठी के राजपरिवार और असम से कांग्रेस के राज्यसभा सांसद संजय सिंह की पत्नी साल 2014 में वरुण के खिलाफ लोकसभा चुनाव और साल 2017 में विधान सभा चुनाव भूतपूर्व पत्नी (गरिमा सिंह ) के खिलाफ चुनाव लड़कर हारी थीं. सुल्तानपुर के आसपास यह स्पष्ट चर्चा सुनने में आ रही है कि अपना असर बचाने के लिए संजय सिंह बीजेपी के प्रभाव क्षेत्र में जा सकते हैं.
एक बात तो सबने देखा ही है कि वरुण गाँधी सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के खिलाफ मुंह नहीं खोलते हैं. तो बीजपी के लिए उनकी उपयोगिता बची ही नहीं है. अब वे दिन जा चुके हैं जब परिवार में भीतरी तनाव के कारण यूपी के मुख्यमंत्री पद के लिए संभावित चार-पांच नामो में उनका नाम भी आ जाता था. अभी तो वे सांसदों की वेतन वृद्धि के खिलाफ बयान देते हैं तो बीजेपी की सांसद मीनाक्षी लेखी इसे गांधी-नेहरू परिवार के ‘अनाप-शनाप पैसे’ से जोड़ देती हैं. इस बात पर किसी को शक भी नहीं होना चाहिए कि प्रियंका गांधी के रिश्ते वरुण गांधी के साथ काफी अच्छे रहे हैं. प्रियंका के कांग्रेस महासचिव बनने से वरुण के कांग्रेस में आने के द्वार खुल गए हैं.
यह भी पढ़ें- देश भर के किसानों का कर्ज माफ करेगी मोदी सरकार?
Share your comments