जैसे-जैसे गर्मी बढ़ रही है, वैसे-वैसे पहाड़ों में भी कई दिक्कतें सामने आने लगी हैं. जहां एक ओर गर्मी बढ़ने से पानी का संकट देखने को मिल रहा है, तो वहीं दूसरी ओर किसानों की मौज हो गई है, लेकिन किसानों की ये मौज सभी के लिए आफत बनी हुई है.
बेमौसमी धान की खेती बनी मुसीबत(Unseasonal paddy cultivation became a problem)
दरअसल,पहाड़ों में गर्मी बढ़ने से पानी की किल्लत (Water Crisis) देखने को मिल रही है. बावजूद इसके तराई में जिस स्तर पर किसान बेमौसमी धान की खेती कर रहे हैं, उससे हालात के और बदतर होने की संभावना बन रही है. ऐसी भी आशंका है कि आने वाले दिनों में लोगों के लिए प्यास बुझना भी मुश्किल हो सकता है.
किसानों की वजह से भूजल का दोहन(exploitation of ground water due to farmers)
ऐसा इसलिए क्योंकि किसान भले की तराई में पानी की उपलब्धता का फायदा उठा कर बेमौसमी धान की खेती कर रहे हो, लेकिन इससे इलाके के भूजल का स्तर और भी कम होता जा रहा है, जिससे पानी की किल्लत में और इजाफा हो सकती है.
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सरकारी जमीनों पर भी बेमौसमी धान की खेती(Off season paddy cultivation even on government lands)
सबसे हैरानी की बात तो ये है कि ये बेमौसमी धान की खेती ना सिर्फ आम किसान कर रहे हैं, बल्कि पंतनगर जैसी यूनिवर्सिटी के साथ ही कई सरकारी विभागों की जमीनों पर भी ये बेमौसमी धान लहराते हुए नजर आ रहे हैं. ये वही पंतनगर यूनिवर्सिटी है, जिसके वैज्ञानिक हमेशा से किसानों को बेमौसमी धान की खेती नही करने की सलाह देते हैं, लेकिन खुद पंतनगर यूनिवर्सिटी की धरती में बेमौसमी धान चारों ओर नजर आ रहे हैं.
बेमौसमी धान की खेती से दिक्कत क्यों?( Why is there a problem with off-season rice cultivation?)
आपको यहां बता दें कि बेमौसमी धान की खेती तराई में करने से किसानों को बहुत फायदा पहुंचता है और इससे करीब डेढ़ से दो गुना तक उत्पादन होता है, लेकिन किसानों के लिए मुनाफे का सौदा बनी बेमौसमी धान की खेती जमीन की उर्वर क्षमता को कमजोर कर देती हैं. साथ ही वहां के भूजल स्तर को भी कम कर देती है. क्योंकि विशेषज्ञों का कहना है कि इस खेती में बड़े पैमाने पर कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाता हैं, जिसका असर ना सिर्फ हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है बल्कि इससे जमीन की मिट्टी भी खराब होती है.
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